सनातन धर्म में विवाह पंचमी का बहुत महत्व है. क्योंकि कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्री राम का विवाह माता जानकी के साथ हुआ था. हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन विवाह पंचमी का त्योहार मनाया जाता है.
इस साल विवाह पंचमी आठ दिसंबर को मनाई जा रही है. आपको बता दें कि विवाह पंचमी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों जैसे नेपाल में भी धूमधाम से मनाई जाती है. नेपाल के जनकपुर धाम में यह उत्सव बहुत ही जोर-शोर से मनाया जाता है.
सीता मां की जन्मस्थली है जनकपुर:
नेपाल स्थित जनकपुर को मां सीता की जन्मस्थली कहा जाता है. कहते हैं कि त्रेता युग में यह जगह मिथिला की राजधानी हुआ करती थी और माता जानकी ने विवाह से पहले ज्यादा समय यहीं बिताया था. इसलिए यहां पर विवाह पंचमी की तैयारियां देखते ही बनती हैं.
इस साल विवाह पंचमी के लिए जनकपुर धाम को दुल्हन की तरह सजाया गया है. हालांकि कोविड-19 को देखते हुए सादगी पूर्वक ही यह पर्व मनाया जाएगा. जनकपुर में विवाह पंचमी के एक सप्ताह पूर्व से ही अलग-अलग वैवाहिक आयोजन आरम्भ हो जाते हैं.
नेपाल के अलग-अलग जिलों के अलावा भारत और अन्य देशों से भी भक्त इस पर्व को मनाने के लिए जनकपुर धाम पहुंचते हैं.
क्यों मनाई जाती है विवाह पंचमी:
भगवान राम का विवाह इसी दिन जनक नंदिनी सीता (किशोरी) जी से हुआ था. इस वैवाहिक तिथि को हिन्दू धर्म मे बहुत महत्व दिया जाता है और विवाह पंचमी के नाम से उत्सव मनाया जाता है.
लेकिन कहा जाता है कि नेपाल में यह पर्व भले ही बहुत धूमधाम से मनता हो लेकिन कोई भी माता-पिता इस दिन अपनी बेटी का ब्याह नहीं करते हैं. इसका मुख्य कारण है कि माता सीता को बहुत से कष्ट झेलने पड़े थे और इसलिए कोई भी अपनी बेटी का विवाह उसी मुहूर्त में नहीं करना चाहता है.
इस दिन जगह-जगह राम मंदिरों में कीर्तन किया जाता है. राम-सीता विवाह की झांकियां निकाली जाती हैं. श्रद्धालु इस दिन खूब नाचते-गाते हैं.
दुल्हन की तरह सजता है जानकी मंदिर:
जनकपुर धाम में दूर-दूर से लोग जानकी मंदिर पहुंचकर त्योहार का आनंद लेते हैं. और राम-सीता का जाप करते हुए पुण्य कमाते हैं. बताया जाता है कि जानकी मंदिर का निर्माण साल 1911 में हुआ था. लगभग 4860 वर्ग फ़ीट में फैले इस मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु ने करवाया था.
कहते हैं कि बहुत पहले इस इलाके में सिर्फ जंगल हुआ करता था. शुरकिशोर दास तपस्या-साधन करने पहुंचे थे. इस दौरान उन्हें एक दिन माता सीता की एक स्वर्ण मूर्ति मिली और उन्होंने मूर्ति को इसी इलाके में स्थापित कर दिया. जिसके बाद इस इलाके की मान्यता बढ़ गई.
एक बार टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु इस इलाके में गई और संतान प्राप्ति की मन्नत मांगी. रानी ने प्रण लिया था कि अगर उन्हें संतान हुई तो वह यहां मंदिर बनवाएंगी. और माता सीता की कृपा से उनकी मन्नत पूरी हुई. जिसके बाद उन्होंने यहां भव्य जानकी मंदिर बनवाया.
इस मंदिर के निर्माण में लगभग नौ लाख रुपए खर्च हुए थे. इसलिए इस मंदिर को ‘नौलखा’ मंदिर भी कहा जाता है.
(गणेश शंकर की रिपोर्ट)