
काशी में रंगभरी एकादशी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. आज के दिन से ही काशी में होली का शुभारंभ होता है, जिसमें भगवान शिव और माँ पार्वती का विशेष श्रृंगार किया जाता है और चिता भस्म से होली खेली जाती है. इस परंपरा के पीछे पौराणिक कथा है कि भगवान शिव विवाह के बाद माँ पार्वती को लेकर काशी आए थे और गुलाल अर्पित किया था. इस दिन को रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है.
रंगभरी एकादशी का महत्त्व-
काशी में रंगभरी एकादशी का खास महत्व है. पंडित अरविंद शुक्ला ने बताया कि आज का दिन खास है, क्योंकि यह अमलिका एकादशी है. इस दिन आंवले की पूजा का विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि आंवला को अमृतमयी कहा गया है. आंवले की जड़ में भगवान विष्णु, पत्तों में ब्रह्मा और डालियों में भगवान शिव का वास होता है.
भगवान शिव का विशेष श्रृंगार और चिता भस्म की होली-
रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ और माँ पार्वती का स्वागत होता है और सवारी निकाली जाती है. इस दिन महादेव श्मशान की राख से होली खेलते हैं. पंडित शुक्ला के मुताबिक भगवान शिव जब काशी पहुंचे तो माँ पार्वती के साथ होली खेली थी और भस्म की होली का महत्व बताया.
आंवले की पूजा और व्रत का महत्व-
पंडित अरविंद शुक्ला ने बताया कि आंवले की पूजा और सेवन विशेष पुण्यदायी होता है. एकादशी व्रत को व्रतराज कहा गया है. भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि मैं व्रतों में एकादशी व्रत हूँ. एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति को परमगति प्राप्त होती है.
होली की शुरुआत और परंपराएं-
रंगभरी एकादशी से होली की विधिवत शुरुआत मानी जाती है. इस दिन शिव भक्तों के लिए विशेष महत्त्व होता है. काशी में महा श्मशान पर चिता भस्म की होली खेली जाती है. उन्होंने बताया कि भगवान शिव और माँ पार्वती ने काशी में होली खेली थी और इस दिन से होली का पर्व शुरू होता है.
काशी में होली के इस अनूठे उत्सव को देखने के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव और माँ पार्वती के आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य मानते हैं.
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