सनातन पंचांग की तिथि पर 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाने का विधान बताया गया है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य के गोचर से जहां खरमास खत्म हो जाएगा, वहीं वसंत ऋतु के आगमन का भी संकेत मिलता है. पौराणिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने से जीवन के सारे पाप कट जाते हैं. मकर संक्राति पर दिया गया दान पुण्य में सौ गुने की बढोत्तरी करता है.
इस त्योहार को पूरे देश में अलग अलग नामों से जानते हैं. कहीं इसे मगही कहते हैं तो कहीं माघे संक्रांति कहते हैं. मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य का उत्तरायण आरंभ होता है. जिसकी वजह से दिन बड़ा तो रात छोटी होना शुरू हो जाती है. शीतकाल से अंत का आरंभ हो जाता है. मकर संक्रांति का ये त्योहार अंधकार से रोशनी की ओर जाने वाला त्योहार माना जाता है. लेकिन साल 2022 की मकर संक्रांति की तिथि इस बार बहुत बड़ा संयोग साथ ला रही है.
क्यों खास है इस बार की मकर संक्रांति ?
यह अद्भुत संयोग 30 साल बाद बन रहा है. मकर राशि में सूर्य का प्रवेश हो रहा है. मकर शनि देव की राशि है और शनि भगवान सूर्य के पुत्र हैं. यानी पिता-पुत्र का मिलन हो रहा है. शनि देव अपनी ही राशि मकर में हैं. स्वग्रही शनि से सूर्य देव का मिलन हो रहा है. ऐसा संयोग 30 साल बाद बन रहा है. रोहिणी नक्षत्र में सूर्य संक्रांति हो रही है.
संक्रांति के दिन से ही खरमास के वक्त बंद सभी शुभ काम फिर से शुरू हो जाते हैं. मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में जो कोई साधक पुण्य काल और महा पुण्य काल के मुहूर्त में पूजा आराधना उपासना औऱ दान करता है उसका फल उसके मुक्ति मोक्ष के द्वार खोल देता है.
मकर संक्रांति का ये त्योहार ज्योतषीय गणना के हिसाब से पिता पुत्र के मिलन का त्योहार है. साल में 12 बार भगवान सूर्य अपनी राशि परविर्तन करते हैं इसे संक्रांति कहते हैं. लेकिन जब भगवान सूर्य शनि देव की राशि मकर में प्रवेश करते हैं तो उसे मकर संक्रांति कहते हैं.
मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथा कहती है कि ये तिथि उत्तरायण की तिथि होती है. महाभारत की पौराणिक कहानी इस तिथि को पितामह भीष्म से जोड़ती है. भीष्म पितामह को वरदान मिला था कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी. जब वे बाणों की सज्जा पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने मकर संक्रांति की तिथि पर ही अपना जीवन त्यागा था.
कहते हैं कि इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई. मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य की आराधना हर किसी को मोक्ष दिला सकती है.
मकर संक्रांति के दिन क्या करें ?
- प्रातः काल स्नान करके, सूर्य देव को अर्घ्य दें
- इसके बाद सूर्यदेव और शनिदेव के मन्त्रों का जप करें
- सम्भव हो तो गीता का पाठ भी करें
- पुण्यकाल में नए अन्न, कम्बल और घी का दान करें
- इस बार तिल और गुड़ का दान करना भी विशेष शुभ होगा
- साथ में इस बार एक पीपल का पौधा भी लगवा देना चाहिये
- भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनायें
- भोजन भगवान को समर्पित करके प्रसाद रूप से ग्रहण करें
यह वह दिन होता है जब सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है. मकर संक्रांति त्यौहार सभी को अँधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ने की प्रेरणा देता है.
मकर संक्रांति के दिन गुड़, घी, नमक और तिल के अलावा काली उड़द की दाल और चावल को दान करने का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर में जाते हैं.
ज्योतिष में उड़द की दाल को शनि से संबन्धित माना गया है. ऐसे में उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से शनिदेव और सूर्यदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है. इसके अलावा चावल को चंद्रमा का कारक, नमक को शुक्र का, हल्दी को गुरू बृहस्पति का, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है. वहीं खिचड़ी की गर्मी से इसका संबन्ध मंगल से जुड़ता है. इस तरह मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में करीब करीब सभी ग्रहों की स्थिति बेहतर होती है.
गोरखनाथ के समय से शुरू हुई थी खिचड़ी बनाने की प्रथा
कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी बनाने की प्रथा बाबा गोरखनाथ के समय से शुरू हुई थी. बताया जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे ही लड़ाई के लिए निकल जाते थे. उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ पकाने की सलाह दी थी. ये झटपट तैयार हो जाती थी. इससे योगियों का पेट भी भर जाता था और ये काफी पौष्टिक भी होती थी.
बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा. खिलजी से मुक्त होने के बाद मकर संक्रान्ति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया और उस दिन खिचड़ी का वितरण किया. तब से मकर संक्रान्ति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा की शुरुआत हो गई. मकर संक्रान्ति के मौके पर गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेला भी लगता है.