सूर्य का किसी राशी विशेष पर भ्रमण करना संक्रांति कहलाता है. सूर्य हर माह में राशि का परिवर्तन करता है,इसलिए कुल मिलाकर वर्ष में बारह संक्रांतियां होती हैं. परन्तु दो संक्रांतियां सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं-मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति. सूर्य जब मकर राशि में जाता है तब मकर संक्रांति होती है. मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है.
मकर संक्रांति का ज्योतिष से क्या सम्बन्ध है?
सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है. कहते हैं इसी त्यौहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं. इसी समय धनु खरमास समाप्त होता है इसलिए यहाँ से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है. अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं. जहाँ पर परिवार में रोग कलह तथा अशांति हो वहां पर रसोई घर में ग्रहों के विशेष नवान्न से पूजा करके लाभ लिया जा सकता है.
क्या है इस बार की मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त
सूर्य का किसी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है. सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है. इस बार सूर्य 14 जनवरी को रात्रि 08.57 पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इसलिए उदया तिथि में संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी. पुण्यकाल में संक्रांति मनाना श्रेष्ठ माना गया है. अतः 15 जनवरी को प्रातः 07.14 से सायं 05.45 तक स्नान, ध्यान और दान का प्रयास करें. संक्रांति पर सूर्य शनि का संयोग भी बना रहेगा. शनिदेव अपनी स्वयं की राशि मकर में सूर्य के साथ विद्यमान रहेंगे. इसलिए इस बार शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है.
सामान्य रूप से मकर संक्रांति को क्या करें ?
प्रातः काल स्नान करके, सूर्य देव को अर्घ्य दें. इसके बाद सूर्यदेव और शनिदेव के मंत्रों का जप करें. संभव हो तो गीता का पाठ भी करें. पुण्यकाल में नए अन्न,कम्बल और घी का दान करें. इस बार तिल और गुड़ का दान करना भी विशेष शुभ होगा. साथ में इस बार एक पीपल का पौधा भी लगवा देना चाहिए. भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनायें. भोजन भगवान को समर्पित करके प्रसाद रूप से ग्रहण करें.