नवरात्रि इस बार 15 अक्टूबर से आरंभ हो गई है. इसका समापन 23 अक्टूबर 2023 को होगा. नवरात्रि के नौ दिन, पूजा उपासना और साधना के सर्वोत्तम दिन हैं. इन दिनों में साधना से हर तरह की मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं. नवरात्रि के अलग-अलग दिन अलग-अलग तरह की शक्तियां प्रवाहित होती हैं. हर दिन की शक्ति को समझकर उसके अनुसार कामना की जाय तो कामना निश्चित रूप से पूर्ण होती है. इसके अलावा नवग्रहों से संबंधित समस्याएं भी इन दिनों में दूर की जा सकती हैं. आइए जानते हैं नवरात्रि में किस दिन मां दुर्गा के किस रूप की होती है पूजा और क्या है माता रानी की महिमा?
मां शैलपुत्री
नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन स्वास्थ्य की शक्ति प्रवाहित होती है. इस दिन मां की उपासना लाल फूलों से करनी चाहिए. साथ ही उन्हें गाय के दूध का शुद्ध घी अर्पित करना चाहिए. देवी का यह स्वरूप इच्छाशक्ति और आत्मबल को दर्शाता है. मां शैलपुत्री को वृषोरूढ़ा, सती, हेमवती, उमा के नाम से भी जाना जाता है. घोर तपस्या करने वाली मां शैलपुत्री सभी पशु-पक्षियों, जीव की रक्षक मानी जाती हैं. मां शैलपुत्री श्वेत वस्त्र धारण कर वृषभ की सवारी करती हैं. मां शैलपुत्री को स्नेह, करूणा, धैर्य और इच्छाशक्ति का प्रतीक माना जाता है.
माता ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन 16 अक्टूबर को माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी. इस दिन मां की उपासना सफेद फूलों से करनी चाहिए. साथ ही उन्हें शक्कर का भोग लगाना चाहिए. ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करने वाली, यानी जो तप का आचरण करने वाली हों, उन्हें माता ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. मान्यता है कि माता पार्वती के हजारों साल कठोर तप करने के बाद उनके तपेश्वरी स्वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया. वे इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं और सफेद रंग के वस्त्र धारण करती हैं. माता के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है.
माता चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन 17 अक्टूबर को मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की उपासना की जाएगी. इस दिन माता की पूजा लाल फूलों से करें. साथ ही माता को दूध या दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं. माता चंद्रघंटा का स्वरूप साहस, वीरता और निर्भयता का प्रतीक है. उनका शरीर स्वर्ण की तरह चमकीला है और मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र बना है. वे बाघ की सवारी करती हैं. पौराणिक कथा के अनुसार दैत्यों और असुरों के साथ युद्ध में देवी ने घंटों की टंकार से ही असुरों का नाश कर दिया था.
मां कूष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन 18 अक्टूबर को मां कूष्मांडा की पूजा की जाएगी. मां के इस स्वरूप की पूजा करने से बुद्धि, वाणी और प्रखरता की शक्ति मिलती है. माना जाता है कि मां कूष्मांडा ने ही पिंड से लेकर ब्रह्मांड तक का सृजन किया था. शास्त्रों में मां कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी संबोधित किया गया है. इनके हाथों में धनुष, बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल सुशोभित है. आठवें हाथ में वे सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला धारण करती हैं. माता कूष्मांडा शेर की सवारी करती हैं. इस दिन माता की उपासना हरी वस्तुओं से करें और साथ ही माता को मालपुए का भोग लगाएं.
मां स्कंदमाता
नवरात्र के पांचवें दिन 19 अक्टूबर को मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाएगी. माता के इस स्वरूप की पूजा करने से संतान संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं. इस दिन माता की उपासना पीले फूलों से करें. साथ ही माता को केले का भोग अर्पित करें. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्कंदमाता, मां पार्वती का ही रौद्र रूप हैं. इस संबंध में यह कथा बताई गई है कि एक बार कुमार कार्तिकेय की रक्षा के लिए जब माता पार्वती क्रोधित होकर आदिशक्ति रूप में प्रगट हुईं तो इंद्र भय से कांपने लगे. इंद्र अपने प्राण बचाने के लिए देवी से क्षमा याचना करने लगे. चूंकि कुमार कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है तो सभी देवतागण मां दुर्गा के रूप को मनाने के लिए उन्हें स्कंदमाता कहकर पुकारने लगे और उनकी स्तुति करने लगे. तभी से मां दुर्गा मां के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाने लगा.
मां कात्यायनी
नवरात्रि के छठे दिन 20 अक्टूबर को मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाएगी. होती है। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी रखा गया. इस स्वरूप की पूजा-अर्चना करने से शीघ्र विवाह का वरदान मिलता है. इस दिन भी माता की उपासना पीले फूलों से करें. साथ ही माता को शहद का भोग लगाएं. मां कात्यायनी स्त्री ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं और स्त्री ऊर्जा का स्वरूप भी हैं. मान्यता है कि देवी कात्यायनी जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मां कालरात्रि
शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन 21 अक्टूबर को देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाएगी. माता रानी के इस स्वरूप की पूजा करने से रोग, शोक और बाधाओं का नाश होता है. इसके अलावा नकारात्मक ऊर्जा और तंत्र मंत्र से छुटकारा मिलता है. इस दिन माता की उपासना सुगंध और धूपबत्ती से करें. साथ ही माता को गुड़ का भोग अर्पित करें. माता कालरात्रि को काली, चंडी, धूम्रवर्णा, चामुंडा आदि नामों से भी जाना जाता है.
माता महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन 22 अक्टूबर को मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा होगी. माता महागौरी के भी आभूषण और वस्त्र सफेद रंग के हैं. इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भोलेनाथ को पाने के लिए मां गौरी ने सालों तक कड़ी तपस्या की थी. इस घोर तप में मां गौरी धुल-मिट्टी से ढंक गयी थीं. इसके बाद शिव जी ने स्वयं अपनी जटाओं से बहती गंगा से मां के इस रूप को साफ किया था. माता के रूप की इस कांति को शिवजी ने पुनर्स्थापित किया इसी कारण उनका नाम महागौरी पड़ा. माता के इस स्वरूप की पूजा करने से मनचाहे विवाह और सुखद वैवाहिक जीवन का वरदान मिलता है. इस दिन माता की पूजा सफेद फूलों से करें. साथ ही माता को नारियल का भोग अर्पित करें.
मां सिद्धिदात्री
नवरात्रि के नौवें दिन 23 अक्टूबर को मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाएगी. मां सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं. माता के इस स्वरूप की पूजा से मुक्ति मोक्ष और समस्त सिद्धियां मिलती हैं. इस दिन माता की पूजा विभिन्न रंग के फूलों से करें. इसके साथ ही माता को काले तिल का भोग लगाएं. शास्त्रों के अनुसार महादेव ने भी माता सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर इनसे सभी आठ सिद्धियां प्राप्त की थीं. मां सिद्धिदात्री कमल पुष्प पर आसीन होती हैं. इनका भी वाहन सिंह है. मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं. इनकी दाहिनी ओर की पहली भुजा में गदा और दूसरी भुजा में चक्र है. बांई ओर की भुजाओं में कमल और शंख है.