राम की नगरी अयोध्या में बन रहे नए राम मंदिर में 22 जनवरी 2024 को भगवान राम विराजमान होंगे. प्राण-प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी जोर-शोर से की जा रही है. इसमें आने के लिए निमंत्रण भेजा जा रहा है. इसी बीच शंकराचार्यों की चर्चा हो रही है. आइए जानते हैं कौन हैं चार शंकराचार्य और किन मठों के मठाधीश को दी जाती है यह उपाधि?
कौन थे आदि शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे. उन्हें भगवान शंकर का अवतार माना जाता है. आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए. चारों मठों में प्रमुख को शंकराचार्य कहा गया. इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य से मानी जाती है. इन मठों की स्थापना करके आदि शंकराचार्य ने उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया. तबसे ही इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है. हर मठ का अपना एक विशेष महावाक्य भी होता है.
मठ या पीठ का क्या है मतलब
सनातन धर्म में मठ या पीठ का अर्थ ऐसे संस्थानों से है जहां गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा, उपदेश आदि देने का काम करते हैं. यहां मुख्यतः आध्यात्मिक शिक्षा दी जाती है. बौद्ध मठों को विहार कहते हैं. ईसाई धर्म में इन्हें मॉनेट्री, प्रायरी, चार्टरहाउस, एब्बे इत्यादि नामों से जाना जाता है. हमारे देश में चार प्रमुख मठ द्वारका, ज्योतिष, गोवर्धन और शृंगेरी पीठ हैं.
कैसे बनते हैं शंकराचार्य
देश की चारों पीठों पर शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए व्यक्ति को त्यागी, दंडी संन्यासी, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत ब्राह्मण, ब्रह्मचारी और पुराणों का ज्ञान होना बेहद जरूरी है. इसके साथ ही, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन, मुंडन, पिंडदान और रूद्राक्ष धारण करना अहम माना जाता है. शंकराचार्य बनने के लिए ब्राह्मण होना अनिवार्य है, जिन्हें चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञाता होना चाहिए. जिन्हें शंकराचार्य बनाया जाता है, उन्हें अखाड़ों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सहमति के साथ और काशी विद्वत परिषद की स्वीकृति की मुहर भी चाहिए होती है. इसके बाद ही शंकराचार्य की पदवी मिलती है. हर शंकराचार्य को अपने जीवनकाल में ही सबसे योग्य शिष्य को उत्तराधिकारी बनाना होता है.
ये हैं देश के चारों कोने पर स्थित चार माठ
1. शृंगेरी मठ: दक्षिण भारत रामेश्वरम में शृंगेरी मठ स्थित है. यहां दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती और पुरी लगाया जाता है. इस मठ के पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वरजी थे, जिनका पूर्व में नाम मंडन मिश्र था. इस मठ के अंतर्गत यजुर्वेद को रखा गया है. अभी यहां के शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ हैं.
2. गोवर्धन मठ: ओडिशा के पुरी में गोवर्धन मठ स्थापित है.यहां के संन्यासियों के नाम के बाद अरण्य लगाया जाता है. इस मठ के अन्तर्गत ऋग्वेद को रखा गया है. गोवर्धन मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद आचार्य थे. वर्तमान में निश्चलानंद सरस्वती इस मठ के शंकराचार्य हैं.
3. ज्योतिर्मठ: उत्तराखंड के बद्रीनाथ में ज्योतिर्मठ स्थित है. यहां अथर्ववेद को रखा गया है. यहां दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद गिरि, पर्वत और सागर लगाया जाता है. ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक थे. वर्तमान में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज शंकराचार्य हैं.
4. शारदा मठ: गुजरात के द्वारकाधाम में शारदा मठ स्थित है. इस मठ के संन्यासियों के नाम के बाद तीर्थ या आश्रम लगाया जाता है. यहां सामवेद को रखा गया है. शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे. वर्तमान में सदानंद सरस्वती इस मठ के शंकराचार्य हैं.
वैष्णव संत-मंहतों ने नहीं निकाली कोई खामी
चार मठों के शंकराचार्य के राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होने की खबर अलग-अलग तरह से सुनने को मिल रही है. कहा जा रहा है कि शंकराचार्य कह रहे हैं कि अयोध्या में बना राम मंदिर अभी पूर्ण रूप से बनकर तैयार नहीं हुआ है. इसलिए अपूर्ण मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा उचित नहीं है. हालांकि वैष्णव संत-मंहतों ने राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर कोई खामी नहीं निकाली और कहा कि देश-दुनिया में वर्तमान में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है और दशकों पहले प्राण-प्रतिष्ठा हो चुकी है.
खुले तौर पर किया है स्वागत
इस बीच विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि चार में से दो शंकराचार्यों ने राम मंदिर में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह का खुले तौर पर स्वागत किया है. लेकिन वे किसी कारण से प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. स्वामी अविमुक्तेश्वारनंद और निश्चलानंद स्वामी महाराज का कहना है कि अभी प्रतिष्ठा शास्त्रों के हिसाब से नहीं हो रही है, इसलिए उसमें जाना उचित नहीं है. स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि आमंत्रण आया है. इसमें कहा गया है कि एक व्यक्ति के साथ आ सकते हैं. एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि कौन मूर्ति का स्पर्श करे और कौन ना करे, इसका ध्यान रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि पुराणों में लिखा है कि देवता (मूर्ति) तब प्रतिष्ठित होते हैं, जब विधिवत हों. यदि ये ढंग से न किया जाए तो देवी-देवता क्रोधित हो जाते हैं.