जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर पायलट बाबा का दिल्ली के अपोलो अस्पताल में निधन हो गया. बाबा काफी समय से बीमार चल रहे थे. पायलट बाबा इंडियन एयरफोर्स में विंग कमांडर थे. उन्होंने पाकिस्तान और चीन के युद्ध में भारतीय सेना की तरफ से फाइटर जेट उड़ाए थे. उन्होंने पाकिस्तान में बमबारी भी की थी. पायलट बाबा बिहार के सासाराम के रहने वाले थे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी.
क्या था पायलट बाबा असली नाम-
जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर पायलट बाबा का असली नाम कपिल सिंह था. कपिल सिंह का जन्म 15 जुलाई 1938 को बिहार के सासाराम में हुआ था. उनकी पढ़ाई-लिखाई लोकल लेवल पर हुई. उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से एमएससी की डिग्री हासिल की. पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1957 में पायलट बाबा एयरफोर्स में शामिल हो गए.
पाकिस्तान युद्ध में हुए थे शामिल-
पायलट बाबा ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में फाइटर पायलट की भूमिका निभाई थी. उन्होंने साल 1965 और साल 1971 युद्ध में जेट फाइटर उड़ाए थे. सेना में उनकी भूमिका के लिए उनको शौर्य चक्र जैसे पदक से सम्मानित किया गया. 33 साल की उम्र में वो एयरफोर्स से रिटायर हुए.
पायलट बाबा बनने की कहानी-
बताया जाता है कि एक बार जब वो फाइटर जेट उड़ा रहे थे तो उनके विमान में खराबी आ गई. उनका जेट कंट्रोल से बाहर हो गया था. उन्होंने जिंदा रहने की सारी उम्मीदें छोड़ दी थी. इस दौरान उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु हरि बाबा को याद किया. इस दौरान उनको हरि बाबा के मौजूद रहने का अहसास हुआ और फाइटर जेट की सुरक्षित लैंडिंग हुई. इसके बाद कपिल सिंह ने आध्यात्मिक जीवन जीने का फैसला किया.
33 साल की उम्र में उन्होंने एयरफोर्स को अलविदा कह दिया और संन्यास धारण कर लिया. पायलट बाबा तिब्बत के राजेश्वरी मठ में रहकर अध्ययन किया. उन्होंने हिमालय की नंदा देवी घाटी में 16 साल तक समय बिताया. पायलट बाबा ने हिमालय में 7 साल में 1600 मील की यात्रा की. वे कभी भी 10 हजार फीट से नीचे नहीं उतरे.
कई देशों में पायलट बाबा के आश्रम-
पायलट बाबा ने देश में कई आश्रम स्थापित किए. इसमें सासाराम, हरिद्वार, नैनीताल और उत्तरकाशी जैसी जगहें शामिल हैं. इसके अलावा पायलट बाबा के जापान और नेपाल जैसे देशों में भी आश्रम हैं. पायलट बाबा ने कई किताबें भी लिखी थीं. इसमें कैलाश मानसरोवर, डिस्कवर द सीक्रेट्स ऑफ हिमालय के अलावा पर्ल्स ऑफ विजडम जैसी किताबें शामिल थीं.
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