आध्यात्मिक गुरु श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद (Srila Bhakti Siddhanta Saraswati Goswami Prabhupad) की 150वीं वर्षगांठ पर दिल्ली के प्रगति मैदान में भारत मंडपम (Bharat Mandapam) में विश्व वैष्णव सम्मेलन (World Vaisnava Association) चल रहा है. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) भी शामिल हुए. इस दौरान पीएम मोदी ने आध्यात्मिक गुरु के सम्मान में एक स्मारक टिकट और एक सिक्का भी जारी किया. यह सम्मेलन 3 दिन तक चलेगा. इसका मकसद दुनिया में चैतन्य महाप्रभु (Chaitanya Mahaprabhu) के उपदेशों को आगे बढ़ाना है. चलिए आपको आचार्य श्रील भक्तिसिद्धांत प्रभुपाद के बारे में बताते हैं.
कौन थे श्रील भक्तिसिद्धांत प्रभुपाद-
श्रील प्रभुपाद भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद का जन्म 6 फरवरी 1874 को पुरी में हुआ था. उनके पिता श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जगन्नाथ पुरी मंदिर के अधीक्षक के तौर पर सेवारत थे. उनकी माता का नाम श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर था. उनके बचपन का नाम बिमला प्रसाद था. बिमला प्रसाद के पिता श्रील भक्तिविनोद ठाकुर ने कई किताबें लिखीं. इसके साथ उन्होंने गौड़ीय वैष्णव सिद्धांत पर कई लेख भी लिखे. उन्होंने अपने बेटे बिमला प्रसाद को छपाई और प्रूफ-रीडिंग में पारंगत होने की ट्रेनिंग दी.
7 साल में याद किए 700 संस्कृत के श्लोक-
श्रील प्रभुपाद भक्तिसिद्धांत गोस्वामी जब 7 साल के थे तो उनको भगवदगीता के 700 संस्कृत के श्लोक कंठस्त हो गए थे. अभी बिमला प्रसाद की उम्र 25 साल भी नहीं हुई थी, उससे पहले ही उन्होंने संस्कृत, गणित और ज्योतिष शास्त्र में विद्वान के तौर पर फेमस हो गए थे. जब उनका ज्योतिषीय आलेख और सूर्य सिद्धांत छपा तो उनको सिद्धांत सरस्वती की उपाधि दी गई.
सज्जन तोषणी पत्रिका के संपादक बने-
साल 1905 में श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ने अपने पिता की सलाह पर श्रील गौरकिशोर दास बाबाजी से आध्यात्मिक शिक्षा ली. श्रील भक्तिसिद्धांत एक विद्वान थे, लेकिन उन्होंने बिना पढ़े-लिखे श्रील गौरकिशोर दास से दीक्षा ली. क्योंकि गौरकिशोर दास एक महान संत थे और वैष्णव आचार्य के तौर पर फेमस थे.
साल 1914 में श्रील भक्तिसिद्धांत के पिता का निधन हो गया. उसके बाद उन्होंने पत्रिका 'सज्जन तोषणी' के संपादक बने. आपको बता दें कि उनसे पहले इस पत्रिका के संपादक उनके पिता थे. श्रील भक्तिसिद्धांत ने गौड़ीय वैष्णव साहित्य प्रकाशन के लिए भागवत प्रेस की स्थापना की.
प्रचार के लिए शिष्यों को दी पश्चिमी पहनावे की इजाजत-
साल 1918 में श्रील भक्तिसिद्धांत ने आध्यात्मिक जीवम में संन्यास ले लिया. इसके बाद उनको श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी महाराज की उपाधि मिली. इसके बाद उन्होंने पूरे देश में गौड़ीय वैष्णव सिद्धांत के प्रचार के लिए 64 गौड़ीय मठों का गठन किया. उन्होंने इस प्रचार आंदोलन का मुख्यालय श्री चैतन्य महाप्रभु के जन्मस्थान श्रीधाम मायापुर में चैतन्य गौड़ीय मठ को बनाया. श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती पहले ऐसे गुरू थे, जो प्रचार के लिए अपने शिष्यों को पश्चिमी पहनावे और गाड़ियों से प्रचार की इजाजत दी थी.
साल 1930 तक श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ने आंदोलन का प्रचार किया और भारतीय आध्यात्मिक जगत में गौड़ीय वैष्णव (Gaudiya Vaishnava) सिद्धांत को बढ़ाया. एक जनवरी 1937 को श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती दुनिया को अलविदा कह दिया.
भक्तिसिद्धांत के शिष्य ने की ISKCON की स्थापना-
भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद के शिष्य अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने भगवान श्रीकृष्ण के संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए 1966 में इस्कॉन (ISKCON) की स्थापना की थी. न्यूयॉर्क में ही पहला ISKCON मंदिर बना था. ISKCON के भक्त मंत्र के तौर पर भगवान श्रीकृष्ण के नाम का जाप करते हैं. बताया जाता है कि दुनियाभर में ISKCON के 500 से ज्यादा केंद्र हैं.
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