भगवान कृष्ण के पावन धाम मथुरा और वृंदावन समेत पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां जोरों पर हैं. भक्त अपने आराध्य के प्रकट होने का इंतजार कर रहे हैं. इंतजार है कि कब कान्हा के नन्हें पांव इस जमी पर पड़ें और कब भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाएं. तो जब मुरली गोपाल आपके घर पर आएं तो उनका स्वागत कैसे करना है? उनको मूर्ति स्वरूप को कैसे सजाना है? उनको क्या खिलाना है? ये सब आज हम आपको बताएंगे.
कृष्ण के जन्मदिवस को क्यों कहते हैं जन्माष्टमी?
भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण की अष्टमी तिथि को हुआ था. इस दिन पूरी दुनिया में उनका जन्मदिन मनाया जाता है. भगवान कृष्ण का प्राकट्य रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इस अवसर पर उनके अलग अलग स्वरूपों की स्थापना की जाती है. कहीं शालिग्राम के रूप में, कहीं लड्डू गोपाल के रूप में और कहीं राधाकृष्ण के रूप में. इस दिन व्रत और उपवास रखकर श्रीकृष्ण से विशेष प्रार्थना की जाती है.
कब है जन्माष्टमी?
इस बार कैलेंडरों में जन्माष्टमी दो तारीखों को दी गयी है. 18 अगस्त और 19 अगस्त. इस बार अष्टमी तिथि 18 अगस्त को रात्रि 09.20 पर आरम्भ हो रही है, जो 19 अगस्त को रात्रि 10.59 तक रहेगी. जन्माष्टमी में चंद्रोदय व्यापिनी तिथि ली जाती है. 18 अगस्त को चंद्रोदय व्यापिनी तिथि अष्टमी होगी. तिथि और चन्द्रमा के आधार पर 18 अगस्त की मध्यरात्रि में जन्माष्टमी मनाना ज्यादा उचित होगा.हालांकि वैष्णव परंपरा के लोग 19 अगस्त को जन्माष्टमी मना सकते हैं.
कहते हैं कि जन्माष्टमी के दिन अलग-अलग कामनाओं के लिए कान्हा की अलग तरह की छवि की उपासना की जाती है. अगर आप भी अपनी मनोकामना के मुताबिक कृष्ण की मूर्ति चुनेंगे और उसकी उपासना करेंगे तो इस जन्माष्टमी पर निश्चित ही आपकी कामना पूरी करेंगे नन्द के लाल.
मनोकामना के अनुसार करें मूर्ति की स्थापना
वैसे तो आम तौर पर जन्माष्टमी पर बाल कृष्ण की स्थापना की जाती है. आप अपनी मनोकामना के आधार पर जिस स्वरुप को चाहें स्थापित कर सकते हैं.
प्रेम और दाम्पत्य जीवन के लिए राधा कृष्ण की, संतान के लिए बाल कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें और सभी मनोकामनाओं के लिए बंशी वाले कृष्ण की स्थापना करें. तो आप भी आंखें बंद करके सोचिए और जो कामना सबसे ज्यादा प्रबल हो उसी के मुताबिक कान्हा की मूर्ति घर लाइए. बस कान्हा पधारने वाले हैं.
कैसे मनाएं जन्माष्टमी का पर्व ?
-सुबह स्नान करके व्रत या पूजा का संकल्प लें.
- दिन भर फलाहार ग्रहण करें, सात्विक रहें.
- मध्यरात्रि को भगवान् कृष्ण की धातु की प्रतिमा को किसी पात्र में रखें.
- उस प्रतिमा को पहले दूध ,फिर दही से, इसके बाद शहद से ,फिर शक्कर से और अंत में घी से स्नान कराएं.
- इसी को पंचामृत स्नान कहते हैं, फिर कान्हा को जल से स्नान कराएं.
- श्री कृष्ण को पीताम्बर , पुष्प और प्रसाद अर्पित करें.
- ध्यान रखें कि अर्पित की जाने वाली चीजें शंख में डालकर ही अर्पित करें.
- पूजा करने वाला व्यक्ति इस दिन काले या सफेद वस्त्र धारण ना करें.
- मनोकामना के अनुसार मंत्र जाप करें, प्रसाद ग्रहण करें और दूसरों में भी बांटें.