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भगवान शिव का वो मंदिर जहां बिना आग के बनता है खाना

हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने की वजह से पड़ा. हिमाचल के मंडी जिला के करसोग से साथ सतलुज के किनारे लगने वाली जगह को तत्तापानी कहा जाता है . तत्तापानी मतलब गर्मपानी यहां भी सतलुज के किनारे गर्म पानी निकलता है और गर्म पानी के चश्मों ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से हैरान कर रखा है.

हिमाचल प्रदेश को देवताओं की भूमि कहा जाता है हिमाचल प्रदेश को देवताओं की भूमि कहा जाता है
हाइलाइट्स
  • हिमाचल प्रदेश का अनोखा शिव मंदिर

  • यहां पर कम चीनी से भी मिलती दिल खुश करने वाली मिठास

हिमाचल प्रदेश का नाम सुनते ही वहां की कुदरती खूबसूरती और वादियां याद आ जाती है. वैसे तो इस राज्य में तमाम बेहतरीन चीजें हैं जो इसे खास बनाती हैं. आज के इस आर्टिकल में हिमाचल प्रदेश की इन्हीं खासियतों की बात करेंगे. 

अनोखा शिव मंदिर

हिमाचल प्रदेश के शिव मंदिर के दूसरी तरफ गुरू नानक जी का ऐतिहासिक गुरूद्वारा है. नदी से जुड़े होने की वजह से दोनों ही धार्मिक स्थलों का वातावरण मन मोहने वाला है. यहां पर दोनों से लगती हुई पार्वती नदी बहती है. 

कम चीनी में मिलती है दिल खुश कर लेने वाली मिठास 

इस ठंडे प्रदेश का पानी भी खूब ठंडा होता है तो वहीं दूसरी तरफ गर्म भी.  इसलिए यहां पर नहाने का अपना अलग ही एहसास है. यहां पर कई ऐसी नदियां हैं- जहां पर पानी खूब गर्म होता है और सूरज की रौशनी उनमें आग का काम करती है.  जहां पर अगर चावल, चने से भरी पोटली रख दी जाए तो वो कुछ ही देर में बन कर तैयार हो जाती है. और नदियों के पानी की मिठास ऐसी कि अगर इस पानी में चाय बना रहे हैं तो आपका काम बिना चीनी के ही चल जाएगा.  पर्यटकों के लिए कपड़े में चावल बाधंकर उसी पानी में चावल  उबाल कर बेचा जाता है. 

हिमाचल प्रदेश की खासियत और भी है .. 

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के भुंतर से पार्वती घाटी में पार्वती नदी के किनारे बसा मणिकर्ण हिंदुओं और सिखों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है यहां पर शिव और माता पार्वती ने साथ 11 हजार साल तक तप किया था और ये गर्म पानी के चश्मों के लिए प्रसिद्ध है. देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों पर्यटक सालाना यहां आते हैं. यहां के गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन नहाने से गठिया और चर्म रोग जैसी बीमारियां ठीक हो जाती हैं.

गर्म पानी की नदियां करती हैं हैरान

हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने की वजह से  पड़ा.  हिमाचल के मंडी जिला के करसोग से साथ सतलुज के किनारे लगने वाली जगह को तत्तापानी कहा जाता है. तत्तापानी मतलब गर्मपानी यहां भी सतलुज के किनारे गर्म पानी निकलता है और गर्म पानी के चश्मों ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से  हैरान कर रखा है. 

तत्तापानी और मणिकर्ण के अलावा भी हिमाचल में ऐसी बहुत सी जगहें  हैं जहां पर गर्म पानी के चश्मे फूटते (जमीन के अंदर से पानी निकलना) हैं. इसी तरह ही कांगड़ा के बैजनाथ और  रैत में भी भूगर्भ से गर्म पानी निकलता है. इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है . मणिकर्ण गुरूद्वारे में गुरू नानक देव जी भाई बाला और मर्दाना के साथ पहुंचे . मर्दाने को जब भूख लगी तो उन्होंने कहा मेरे पास आटा है, पर आग और बरतन का इतेंजाम नहीं है तब गुरूजी ने मर्दाना को एक पत्थर हटाने को कहा पत्थर हटाने पर खौलते पानी का चश्मा फूटा ( जमीन के अंदर से पानी निकलना ) था. 

गुरू जी ने खौलते पानी में आटा डालने को कहा रोटियां डालते ही डूब गई. गुरूजी ने मर्दाने से कहा कि भगवान से प्रार्थना कर एक रोटी भगवान के नाम दूंगा. इसके बाद सारी रोटियां तैयार होकर बनकर ऊपर आ गई. गुरू नानक के लिए फूटे इस चश्मे में आज भी इसी करह लंगर पकता है.