नवरात्रि का त्यौहार चल रहा है. ऐसे में हर जगह मां दुर्गा के पंडाल लगाए जा रहे हैं. इसी क्रम में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के जानकीपुरम स्थित सेक्टर एफ में दुनिया का सबसे बड़ा पंडाल लगाया गया है. पंडाल लगवाने वाले सौरव बंदोपाध्याय ने बताया कि, यह पंडाल विश्व का सबसे ऊंचा पंडाल है, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की टीम ने इसे दुनिया का सबसे ऊंचा पंडाल माना है. इसकी कुल ऊंचाई 136.675 है.
कुल 52 कारीगरों ने बनाया पंडाल
उत्सव संस्था के चेयरपर्सन सौरभ ने जानकारी देते हुए बताया कि, गिनीज बुक वालों ने पंडाल के ऊपर लगी टावर लाइट को मेजरमेंट में नहीं माना है. उन्होंने इसे अलग कर दिया, शुद्ध रूप से पंडाल की ऊंचाई को ही गिनीज बुक रिकॉर्ड में जगह मिली है, कुल 52 कारीगरों ने पंडाल को बनाया है और जिनमें से 42 कारीगर पिछले 10 साल से हमारे साथ ही हैं. वहीं अन्य 10 कारीगरों को भी कोलकाता से लाया गया है. जो अभी नए हैं लेकिन उनको ऊंचाई के पंडाल बनाने में महारत हासिल है.
कुल एक साल का समय लगा
पंडाल को बनाने में कुल 1 साल का समय लगा है. सौरभ ने बताया कि, पंडाल को वृंदावन में बनने वाले चंद्रोदय मंदिर की तरह बनाया गया था. इस पंडाल की ख्याति सुनकर वृंदावन से मंदिर बनाने वाले यहां आ गए और इसकी खूबसूरती देखकर दंग हैं. उनका कहना है कि यदि यह पंडाल जो मंदिर के रूप में है और जिसकी ऊंचाई 136 फ़ीट से ज्यादा है. ऐसे में जो चंद्रोदय मंदिर बनेगा जिसकी ऊंचाई 700 फीट रहेगी तो उसकी परिकल्पना ही नहीं की जा सकती है. उसका प्रतिबिंब इस पंडाल में देखने को मिल रहा है.
असम से मंगवाया गया डांस
बंदोपाध्याय ने आगे जानकारी साझा की और बताया कि पंडाल बनाने में सबसे दिक्कत बांस की हो रही थी. क्योंकि पंडाल में 32 से 34 फीट लंबे बांस चाहिए थे. जो यूपी में मिलना संभव था. इसलिए हम लोग बांस की खोज में पिछले 6 महीने से लगे थे और फिर असम से बांस को मंगवाया. उसका आर्डर 6 माह पहले ही दे दिया गया था. कुल 12 हज़ार बांस पंडाल में लगे हैं, बांसों के साथ दिक्कत यह होती है कि वह सीधे नहीं मिलते हैं. आगे से मुड़े रहते हैं तो ऐसे में बांसों को सीधा करना बड़ी मेहनत का काम था.
सेमीसिंथेटिक कपड़ों से बना पंडाल
पंडाल बनवाने वाले सौरभ ने बताया कि, पंडाल में लगने वाले कपड़ों का ऑर्डर 2 माह पहले दिया गया था. पंडाल में जो कपड़े लगवाए हैं वह सेमीसिंथेटिक हैं, ताकि उसमें कील मारने पर वह फटे ना, साथ ही यदि पानी बरसे और सूरज की तेज किरणों पंडाल पर पड़े तो ऐसे में जो कपड़े की चमक है, वह खराब न हो और कम से कम 15 दिन तक कपड़े नए लगे. इसलिए हम लोगों ने सेमीसिंथेटिक कपड़ों का इस्तेमाल किया है.
4 ट्रक थर्माकोल का हुआ इस्तेमाल
सौरव बताते हैं कि, सबसे मुसीबत भरा काम सरकार से थर्माकोल लेना था. लेकिन प्रयास करने के बाद थर्माकोल मिल .इस पंडाल में 4 ट्रक थर्माकोल लगाए गए हैं. साथ ही जो थर्माकोल आए हैं, उसका हिसाब हम लोगों ने रखा हुआ है उसे बिना क्षति पहुंचाए फिर वापस किया जाएगा. बंदोपाध्याय ने बताया कि बरसात ने इस दौरान बहुत रुलाया, क्यों यहां पर पंडाल लगाना था, वहां डेढ़ फुट पानी भरा था. 27 सितंबर को इस पंडाल की ओपनिंग होनी थी, हालांकि बारिश की वजह से बहुत दिक्कत हुई.
बंधोपाध्याय बताते हैं कि जब पंडाल 110 फीट का हो गया था, तो हिलने लगा था. उस वक्त हमें लगा कि अब ये इससे आगे नहीं जा पाएगा. लेकिन तभी बंगाल से आए एक कारीगर ने पूरे पंडाल का कायाकल्प कर दिया. जो ठीक तरह से हिंदी भी नहीं बोल सकता था. उसने पूरे पंडाल को सुधार दिया.
20 दिन में तोड़ा जाएगा पंडाल
बंदोपाध्याय दुखी होकर बताते हैं कि, आने वाली 5 तारीख को दशहरे के दिन सबसे ज्यादा उन्हें दुख होगा क्योंकि वह अपने हाथों से सबसे ऊपर का भाग वह तोडेंगे और यह समय उनके जीवन का सबसे दुखद क्षण होगा. इस पंडाल को तोड़ने में ही 20 दिन का समय लगेगा.
(लखनऊ से सत्यम मिश्रा की रिपोर्ट)