हनुमान जी के चारों युगों में प्रताप की चर्चा की गई. उनकी प्रियता में राम चरित्र, संत संगति और राम द्वार पर सेवा शामिल है. वक्ता ने साधन संपन्नता के बजाय साधना संपन्नता पर जोर दिया. परिवार और समाज को जोड़ने का संदेश दिया गया, साथ ही आत्मा को परमात्मा से जोड़ने पर बल दिया गया.