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25Th July in History: ऐतिहासिक है 25 जुलाई का दिन, आज के दिन ही पैदा हुई थी दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी

25 जुलाई 1978 को इंग्लैंड के ओल्डहैम शहर में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ था. उसका नाम लुइस ब्राउन रखा गया था. करीब ढाई किलोग्राम वजन की लुइस सरकारी अस्पताल में पैदा हुई थी. अब तक IVF प्रोसेस से लाखों कपल्स की गोद भर चुकी है. साल 2010 में डॉ. एडवर्ड्स को इस खोज के लिए नोबल पुरस्कार मिला था.

Newborn (Symbolic Picture) Newborn (Symbolic Picture)

आज का दिन यानी 25 जुलाई को साल 1978 में दुनिया की पहली बच्ची थी, जो IVF प्रोसेस  के जरिए पैदा हुई थी. इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) से जन्म लेने वाली पहली बच्ची का नाम लुइस जॉय ब्राउन है, जो इंग्लैंड में पैदा हुई थी. आज IVF प्रोसेस आम बात हो गई है. यूएस सोसाइटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी की साल 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 1987 से 2015 के बीच IVF या असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी से 1 मिलियन बच्चे पैदा हुए हैं. आज दुनिया भर में 8 मिलियन से भी ज्यादा IVF बच्चे हैं.

पहली बार IVF से कैसे पैदा हुई थी बच्ची-
लेस्ली ब्राउन और उनके पति जॉन ने नौ साल तक गर्भधारण करने की कोशिश की थी. हालांकि, लेस्ली को फैलोपियन ट्यूब के बंद होने के कारण बांझपन का सामना करना पड़ा था. नवंबर 1977 में ब्रिटिश गायनोकॉलोजिस्ट पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स ने लेस्ली के ओवरी से एक अंडा निकाला और उसे लैब में उनके पति के स्पर्म के साथ मिलाकर भ्रूण बनाया. कुछ दिनों बाद उन्होंने भ्रूण को लेस्ली के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया. यह प्रोसेस सफल रहा और 9 महीने बाद लुईस का जन्म हुआ.

लुईस का जन्म एक महत्वपूर्ण मौका था, जिसने बांझपन की शिकार कई महिलाओं में उम्मीद की किरण जगा दी थी. हालांकि इसको लेकर विवाद भी हुआ. कई लोगों ने इसकी नैतिकता पर सवाल उठाया. धार्मिक लीडर्स ने आर्टिफिशियल इंटरफेरेंस के इस्तेमाल को लेकर चिंता जताई.

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लुईस की फैमिली को मिलती थी धमकी-
साल 2015 में अपनी आत्मकथा में लुईस ने बताया कि कैसे उसके जन्म के बाद उसके परिवार को कई चिट्ठियां मिलती थीं. जिसमें उनको धमकी दी जाती थी. जिससे फैमली को डर भी लगता था. उन्होंने आत्मकथा में एक पैकेज का जिक्र किया है, जिसमें एक लाल चिट्ठी, एक टूटी हुई कांच की टेस्ट ट्यूब और एक प्लास्टिक का भ्रूण था.

आज IVF तकनीक एक खरब रुपये के कारोबार में बदल गया है. यह तकनीक 46 साल पहले कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के 52 साल के फिजिशियन रॉबर्ट एडवर्ड्स की देन है. उन्होंने ही लुइस ब्राउन को टेस्ट ट्यूब बेबी के रूप में दुनिया में आने का मौका दिया. इसके साथ ही बांझपन की शिकार महिलाओं में औलाद पाने की एक उम्मीद जगाई.

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