बड़ी से बड़ी बीमारी को ठीक किया जा सकता है बस उसके लिए जरूरी है कि उसके बारे में पहले ही पता लग जाए. ठीक ऐसे ही अगर अल्जाइमर जैसी बीमारी का पहले ही पता चल जाए तो उसका ट्रीटमेंट किया जा सकता है. पिछले चार साल से नई दिल्ली के एम्स में इसी को लेकर रिसर्च चल रही है. शोधकर्ताओं ने एक ब्लड टेस्ट का पता लगाया है जिसकी मदद से अल्जाइमर का शुरुआत में ही पता चल जाएगा.
यह रिसर्च दिल्ली-एनसीआर के मरीजों पर केंद्रित है. ये वो मरीज हैं जो उनके मेमोरी क्लिनिक और जेरिएट्रिक डिपार्टमेंट का दौरा कर रहे हैं. इसमें काफी आशाजनक परिणाम मिले हैं. रोगियों और उनके परिवारों को बीमारी का जल्द पता लगने से बेहतर ट्रीटमेंट हो सकेगा.
90 लोगों पर किया गया टेस्ट
शोधकर्ताओं ने 50 से 75 साल की उम्र के बीच वाले रोगियों को इसमें शामिल किया था. रिसर्च के लिए 90 रोगियों की टेस्टिंग की गई. इन रोगियों के ब्लड में छह मार्करों को लेकर जांच की गई. अल्जाइमर एक ऐसी स्थिति है जिसमें ब्रेन में अमाइलॉइड बीटा (Aβ) और ताऊ प्रोटीन के ग्रुप मेमोरी और प्रोसेसिंग फंक्शन में समस्या पैदा करते हैं. ब्लड में इन प्रोटीनों का अनुपात अल्जाइमर के बारे में बता सकता है.
बता दें, 60 से ज्यादा उम्र के करीब 88 लाख भारतीय किसी न किसी प्रकार के डेमेंशिया से पीड़ित हैं. ऐसे में ये टेस्ट एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है. यह अल्जाइमर से पीड़ित लोगों की पहचान करने में मदद कर सकता है. जिससे बेहतर तरीके से उनका इलाज हो सकता है.
ब्लड मार्कर टेस्ट है जरूरी
एम्स की ये स्टडी यूके मेडिकल जर्नल बायोमेड सेंट्रल में पब्लिश हुई है. एम्स में न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. विष्णु वीवाई ने इसे लेकर इंडियन एक्सप्रेस से बात की. वे बताते हैं, “अगर बड़े सैंपल साइज के साथ बड़े टेस्ट में यह शोध सफल पाया जाता है तो यह थेरेपी प्रोटोकॉल को बदल सकता है. अल्जाइमर को समझने में सबसे बड़ा अंतर बायोमार्कर के लिए ब्लड टेस्ट की कमी है. अभी हमारे पास अच्छे सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (CSF) बायोमार्कर और PET और MRI जैसे इमेजिंग टेस्ट हैं. लेकिन ये बीमारी का पता तभी लगा सकते हैं जब लक्षण पहले ही दिखाई दे चुके हों.”
एम्स ब्लड टेस्ट बीमारी के पूरी तरह विकसित होने से 10 से 15 साल पहले इन बायोमार्कर का पता लगा सकता है. इससे डॉक्टर इस बीमारी के बढ़ने को धीमा कर सकते हैं.