देशभर में ओमिक्रॉन दस्तक दे चुका है. इसके कई मामले दिन ब दिन सामने आ रहे हैं, जो बेहद चिंताजनक है. ओमिक्रॉन वेरिएंट के बारे में पता लगाने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक का नाम आप पिछले कई दिनों से सुन रहे होंगे लेकिन जीनोम सीक्वेंसिंग आखिर है क्या, कैसे पता चलता है कि आपके सैंपल में वेरिएंट ओमिक्रोन पाया गया है या नहीं. इस पूरी प्रक्रिया को समझाने के लिए हमारी टीम एक लैब में घुसी और इस पूरी प्रक्रिया के बारे में पता किया.
क्या है जीनोम सीक्वेंसिंग?
मानव शरीर जैसे DNA से मिलकर बनता है, वैसे ही वायरस भी या तो DNA या फिर RNA से बनता है. कोरोना वायरस RNA से बना है जीनोम सीक्वेंसिंग वो तकनीक है, जिससे इसी RNA की जेनेटिक जानकारी मिलती है. आसान भाषा में कहें तो वायरस कैसा है, कैसे हमला करता है और कैसे बढ़ता है, ये जानने में जीनोम सीक्वेंस ही काम आता है.
कैसे की जाती है जीनोम सीक्वेंसिंग?
सबसे पहले आपके RT-PCR सैंपल को BSL 3 लैब में लाया जाता है. वहां पर उस सैंपल में से आरएनए को अलग किया जाता है. सुखी रहने पर भी पूरी जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया होती है इसलिए आरएनए को उस सैंपल वायरस से अलग करना बेहद जरूरी है. आरएनए अलग करने के बाद इसे -80 डिग्री के टेंपरेचर पर रखा जाता है. इसके बाद सीधे इसे जीनोम सीक्वेंसिंग लैब में लाया जाता है. जहां पर आरएनए प्रोसेसिंग की प्रक्रिया शुरू होती है.
क्या है आरएनए प्रोसेसिंग?
आरएनए प्रोसेसिंग की प्रक्रिया में आरएनए को डीएनए में तब्दील किया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि आरएनए बहुत जल्दी रिएक्ट कर जाता है. जिसके कारण उस पर किसी भी तरह का टेस्ट करना मुमकिन नहीं है. इसलिए इसे डीएनए में कन्वर्ट किया जाता है. डीएनए को कन्वर्ट करने के लिए इसे एक न्यूनतम तापमान पर एक पीसीआर मशीन में डाला जाता है. जब डीएनए आरएनए में कन्वर्ट हो जाता है तब इसे फ्रेगमेंटेशन के लिए भेजते हैं.
क्या है फ्रेगमेंटेशन और इंडेक्सिंग?
फ्रेगमेंटेशन वह प्रक्रिया है जहां पर डीएनए को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा जाता है. चूंकि डीएनए का सैंपल बहुत लंबा होता है, इसलिए उसे सीक्वेंस नहीं किया जा सकता. इसी कारण से उसका फ्रेगमेंटेशन किया जाना बेहद जरूरी है. फ्रेगमेंटेशन के बाद इंडेक्सिंग की प्रक्रिया होती है. इस प्रक्रिया में हर एक सैंपल को नाम देकर टैग किया जाता है.
क्या है जीनोम एनालिसिस?
इंडेक्सिंग के बाद इसे सीक्वेंसिंग के लिए एनालाइजर मशीन में डाला जाता है. एनालाइजर मशीन में यह पता चलता है कि सैंपल की मात्रा और उसकी गुणवत्ता सही है या नहीं. यदि यहां सब सही हुआ तो ग्राफ के जरिए यह पता लगता है कि सैंपल को आगे की प्रक्रिया के लिए भेजा जा सकता है या नहीं.
केमिकल के साथ जीनोम की सीक्वेंसिंग
एनालाइज करने के बाद इस अप्रूव्ड सैंपल को एक मशीन में डाला जाता है. जहां पर कई सारे केमिकल्स के साथ इसे मिक्स किया जाता है. इसी मशीन में पूरी सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया होती है. सीक्वेंसिंग की मशीन को डाटा एनालाइजर मशीन पर डाला जाता है. जिससे पता लग सके कि सैंपल में कौन सा वेरिएंट पाया गया है.
डाटा एनालाइजर मशीन पर आता है रिजल्ट
डाटा एनालाइजर मशीन में जीनोम में होने वाले बदलाव के बारे में पता चलता है. यह बदलाव पुराने वायरस से कितना अलग है यह भी बताता है. सीक्वेंसिंग की मदद से डॉक्टर्स समझ पाते हैं कि वायरस में म्यूटेशन कहां पर हुआ. अगर म्यूटेशन कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में हुआ हो, तो ये ज्यादा संक्रामक होता है. इस पूरी प्रक्रिया में करीब एक हफ्ते का समय लगता ही है.