एक अध्ययन में पता चला है कि अल्जाइमर रोग का पता उसके शुरू के स्टेज में ही पता लगाया जा सकता है. इसे पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने अल्जाइमर रोग के प्रारंभिक चरणों के दौरान पता लगाने के तरीके का पता लगा लिया है. शोधकर्ताओं के अनुसार इसका पता ब्लड टेस्ट करके भी लगाया जा सकता है. ये शोध अध्ययन पत्रिका 'नेचर मेडिसिन' में हाल में प्रकाशित हुआ है.
नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुए शोध के मुताबिक यह पता चला है कि कई रक्त बायोमार्कर, अर्थात फॉस्फो-टीएयू 231 और एबी 42/40, बिना किसी लक्षण वाले प्रतिभागियों में भी अल्जाइमर रोग को पहचान करने के लिए पर्याप्त थे. जिसका इस्तेमाल लोगों में अल्जाइमर के शुरू की स्थिति में पता लगाया जा सकता है. इसका पता लगाने के लिए महंगी आणविक इमेजिंग तकनीक या काठ का पंचर की जरूरत होती है.
6 साल चला शोध
करीब 6 साल चले शोध में पता चला है कि केवल फॉस्फो-टीएयू-217 अल्जाइमर रोग से संबंधित था. जो नोवेल हस्तक्षोपों के प्रासंगिक रोग-संशोधित प्रभावों का पता लगाने के लिए कारगर होगा. वहीं हाल के एक रिपोर्ट के मुताबिक एंटी-एब परीक्षणों में ब्लड टेस्ट से कई बड़े प्रभाव देखने को मिली है.
इस विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने बताया
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के शोध अध्ययन में शामिल डॉ. निकोलस एश्टन के मुताबिक अल्जाइमर रोग की पहचान करने में ब्लड टेस्ट कारगर हो सकते हैं और इसके क्लिनिकल ट्रायल में अलग-अलग भूमिकाएं हो सकती है. इस शोध के बारे में बताया कि अल्जाइमर के विकास के साथ लोंगीटूडियनल के कारण फॉस्फो-टीएयू-217 को विशिष्ट रूप से क्लीनिक सेटिंग और ट्रायल सेटिंग दोनों में रोगियों की निगरानी के लिए टेस्टिंग के रूप में रखा गया है.
ये होगी अहम भुमिका
ऑस्कर हैनसन के मुताबिक क्लिनिकल ट्रायल के डिजाइन में सुधार के अलावा नोवेल ब्लड टेस्ट अल्जाइमर रोग के शुरुआती चरणों को पता लगाने के लिए क्रांति ला सकता है. साथ ही बताया कि फॉस्फो-टीएयू-217 का इस्तेमाल आगे चलकर क्लिनिकल ट्रायल में रोग संशोधित उपचारों के लिए रोगियों में प्रक्रिया की निगरानी के लिए किया जा सकता है.