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Mission Currently Observing Sun: भारत के आदित्य-एल1 के अलावा ये 5 मिशन फिलहाल कर रहे हैं सूरज को लेकर खोजबीन 

Aditya-L1: नासा के सोलर सिस्टम एक्सप्लोरेशन के अनुसार, लैग्रेंज पॉइंट अंतरिक्ष में ऐसे स्थान हैं जहां वहां भेजी गई वस्तुएं वहीं रुक जाती हैं. लैग्रेंज पॉइंट पर, दो बड़े mass का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव एक छोटी वस्तु को उनके साथ चलने के लिए आवश्यक सेंट्रिपेटल फाॅर्स के बराबर होता है.

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हाइलाइट्स
  • सूरज को और एक्सप्लोर करने की जरूरत है  

  • सूरज पर चल रहे हैं मिशन

चंद्र मिशन चंद्रयान-3 के बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) हमारे सौर मंडल के केंद्र में स्थित तारे सूर्य का अध्ययन करने के लिए पूरी तरह तैयार है. भारत अब सूरज के रहस्यों से पर्दा उठाने वाला है. ISRO के वैज्ञानिक सूर्य की अलग-अलग गतिविधियों का पता लगाने और अंतरिक्ष के मौसम पर सूर्य के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए 2 सितंबर को आदित्य-एल1 ऑब्जर्वेटरी स्पेसक्राफ्ट लॉन्च करने वाले हैं. इतना ही नहीं इसकी मदद से इसरो गैलेक्सी और उसमें मौजूद दूसरे तारों के बारे में और अधिक जान सकेंगे. हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब कोई देश सूरज के बारे में जानने के लिए कोई मिशन लॉन्च कर रहा है. इससे पहले भी कई देश ऐसा कर चुके हैं. 

आदित्य-एल1 (Aditya-L1)

आदित्य-एल1 पृथ्वी की निचली ऑर्बिट में पहली भारतीय स्पेस-बेस्ड ऑब्जर्वेटरी होगी. इसके बाद, इसे लैग्रेंज पॉइंट (L1) की ओर लॉन्च किया जाएगा. लॉन्च से एल1 तक की कुल यात्रा का समय लगभग चार महीने होने की उम्मीद है. आदित्य भारत के बनाए हुए 7 पेलोड कैरी करेगा और मैग्नेटिक फील्ड डिटेक्टर्स और पार्टिकल और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक का उपयोग करके फोटोजफेयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य (कोरोना) की सबसे बाहरी परतों का निरीक्षण करेगा. 

क्या हैं लैग्रेंज पॉइंट? 

नासा के सोलर सिस्टम एक्सप्लोरेशन के अनुसार, लैग्रेंज पॉइंट अंतरिक्ष में ऐसे स्थान हैं जहां वहां भेजी गई वस्तुएं वहीं रुक जाती हैं. लैग्रेंज पॉइंट पर, दो बड़े mass का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव एक छोटी वस्तु को उनके साथ चलने के लिए आवश्यक सेंट्रिपेटल फाॅर्स के बराबर होता है. अंतरिक्ष में इन पॉइंट्स का उपयोग स्पेसक्राफ्ट द्वारा पोजीशन में बने रहने के लिए जरूरी फ्यूल की खपत को कम करने के लिए किया जा सकता है. पांच लैग्रेंज पॉइंट में से तीन अस्थिर हैं और दो स्थिर हैं.

सूरज को और एक्सप्लोर करने की जरूरत है  

आज की वर्तमान टेक्नोलॉजी के साथ, सूर्य को भौतिक रूप से एक्स्प्लोर करना मानवीय रूप से संभव नहीं है. हालांकि, वैज्ञानिकों को पृथ्वी के भविष्य और हमारी आकाशगंगा, मिल्की वे के दूसरे आंकड़ों की बेहतर समझ के लिए इसके बारे में और अधिक जानने की उम्मीद है. दूसरे खगोलीय पिंडों की तुलना में सूरज की विशालता और आकार को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि यह सौर मंडल के द्रव्यमान (Mass) का लगभग 99.86% है.

उम्मीद लगाई जा ही है कि हमारा सूर्य आकाशगंगा में कम से कम 100 अरब तारों में से एक हो सकता है. सूर्य किसी भी अन्य तारे की तुलना में हमारे करीब है. 

सूरज पर चल रहे हैं मिशन

प्लैनेटरी सोसाइटी के अनुसार, वर्तमान में पांच मिशन सूर्य को ऑब्जर्व कर रहे हैं. पार्कर सोलर प्रोब के अलावा, उनमें 2020 में ईएसए के नेतृत्व वाला सोलर ऑर्बिटर मिशन भी शामिल है जो पहली बार सूर्य और उसके कोरोना के विशाल हिस्से की करीब से इमेजिंग कर रहा है.

2010 से, नासा का सोलर डायनेमिक्स आब्जर्वेटरी (SDO) यह समझने के लिए सूर्य के सक्रिय क्षेत्रों का व्यापक रूप से मानचित्रण कर रहा है कि सोलर फ्लेयर्स कैसे बनती हैं और और फूटती हैं. वहीं, 2006 से, नासा का स्टीरियो-ए अंतरिक्ष यान हमें सौर विस्फोटों पर इन इनसाइट्स दे रहा है.

वेबसाइट के अनुसार, "ESA-NASA SOHO स्पेसक्राफ्ट 1995 से सूर्य की जांच-पड़ताल कर रहा है. विशेष रूप से कोरोना को बेहतर ढंग से देखने और सोलर फ्लेयर्स ट्रैक करने के लिए सूर्य के प्रकाश को ब्लॉक करने के लिए अपने कोरोनोग्राफ का उपयोग कर रहा है."