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Subhash Mukherjee Birth Anniversary: भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक थे डॉ. सुभाष मुखर्जी, जीते-जी नहीं पा सके थे सम्मान

डॉ. सुभाष मुखर्जी को भारत में Architect of India's First Test Tube Baby के रूप में जाना जाता है. हालांकि, उन्हें यह पहचान उनकी मृत्यू के कई सालों बाद मिली.

Dr. Subhash Mukherjee Dr. Subhash Mukherjee
हाइलाइट्स
  • ब्रिटिश भारत में जन्मे थे मुखर्जी

  • मिला सामाजिक बहिष्कार और अपमान

डॉ. सुभाष मुखर्जी एक भारतीय वैज्ञानिक और चिकित्सक थे. डॉ. सुभाष को भारत में IVF या Test Tube Baby के जनक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) का उपयोग करके भारत के पहले और दुनिया के दूसरे टेस्ट ट्यूब बेबी को पैदा कराया. मुखर्जी ने क्रायोबायोलॉजिस्ट सुनीत मुखर्जी और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सरोज कांति भट्टाचार्य के साथ मिलकर यह इतिहास रचा था. 

मुखर्जी भारत में IVF करने वाले ब्रिटिश चिकित्सकों पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स के बाद भारत के पहले और दुनिया के दूसरे फिजिशियन बने. उनकी पहले के कारण एक टेस्ट ट्यूब बेबी 'दुर्गा' (कनुप्रिया अग्रवाल) का जन्म हुआ. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आज भी IVF के लिए ज्यादातर मुखर्जी के तरीके को ही अपनाया जाता है. 

ब्रिटिश भारत में जन्मे थे मुखर्जी
मुखर्जी का जन्म 16 जनवरी 1931 में बिहार के हज़ारीबाग़  में हुआ था. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से फिजियोलॉजी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की, और कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज से MBBS पूरा किया. मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से 'Reproductive Physiology' में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. 1967 में, उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से 'Reproductive Endocrinology' में अपनी दूसरी पीएचडी की डिग्री की. मुखर्जी ने 1968 से 1975 तक एनआरएस मेडिकल कॉलेज, कोलकाता में फिजियोलॉजी के प्रोफेसर के रूप में काम किया.

मिला सामाजिक बहिष्कार और अपमान
दुर्गा का जन्म यूनाइटेड किंगडम में पहले IVF बच्चे के ठीक 67 दिन बाद 3 अक्टूबर 1978 को हुआ था. हालांकि, इस उपलब्धि के बाद, मुखर्जी को तत्कालीन पश्चिम बंगाल राज्य सरकार से सामाजिक बहिष्कार और अपमान का सामना करना पड़ा. भारत सरकार ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. 

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, डॉ. सुनीत मुखर्जी ने दावा किया था कि शुरू में, सुभाष मुखर्जी नहीं चाहते थे कि किसी को पता चले कि वह क्या काम कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि आईवीएफ प्रयोग का परिणाम क्या होगा. सुनीत मुखर्जी के दावों की जांच के लिए एक सरकारी पैनल का गठन किया गया था. कमेटी ने सुभाष मुखर्जी के खिलाफ फैसला सुनाया और उनका अपमान किया.

मुखर्जी अपना अपमान को सहन नहीं कर सके और 19 जून, 1981 को अपने कलकत्ता निवास में सुसाइड से अपना जान ले ली. 

मौत के बाद मिली काम को पहचान 
मुखर्जी की मौत के पांच साल बाद, भारत में रिप्रोडक्टिव बायोलॉजिस्ट, टीसी आनंद कुमार ने टेस्ट ट्यूब बेबी के बारे में साइंटिफिक डॉक्यूमेंट पब्लिश किया. अगस्त 1986 में, भारत की पहली आधिकारिक टेस्ट ट्यूब बेबी हर्षा चावड़ा का जन्म हुआ और आनंद को आधिकारिक तौर पर भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी बनाने वाले वैज्ञानिक के रूप में श्रेय दिया गया. 

लेकिन, आनंद ने मुखर्जी के खुद लिखे गए नोट्स और रिसर्च पेपर्स की जांच की और उन्होंने पाया कि मुखर्जी सही थे और वही भारत में टेस्ट टेयूब बेबी के जनक हैं. इसके बाद, आनंद ने 8 फरवरी, 1997 को कोलकाता में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी और बांझपन प्रबंधन में प्रगति (Assisted Reproductive Technology and Advances in Infertility Management) पर आयोजित तीसरे राष्ट्रीय कांग्रेस में सुभाष मुखर्जी मेमोरियल ओरेशन दिया और "भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के वास्तुकार: डॉ. सुभाष मुखर्जी" टाइटल से एक लेख प्रकाशित किया. डॉ. आनंद के प्रयासों के कारण, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने अंततः मुखर्जी के काम को मान्यता दी.