scorecardresearch

क्या सच में Pregnancy में मछली खाने से हो सकता है बच्चे में Autism का खतरा कम? डॉक्टर से जानिए किन चीजों का रखें ख्याल

शोध से पता चलता है कि मछली खाने से आपको ज्यादा पोषक तत्व मिलते हैं. इसलिए, ऑटिज्म के जोखिम को कम करने के लिए प्रेग्नेंसी के दौरान बैलेंस्ड डाइट के हिस्से के रूप में मछली खाने की सलाह दी जाती है, न कि केवल ओमेगा -3 के सप्लीमेंट पर निर्भर रहने की. 

Child with Autism Child with Autism
हाइलाइट्स
  • बच्चे में ऑटिज्म का खतरा कम हो सकता है

  • कुछ चीजों का रखना है ख्याल 

प्रेग्नेंसी में मछली खाना फायदेमंद साबित हो सकता है. एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि प्रेग्नेंसी के दौरान मछली खाने से बच्चे में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) होने की संभावना 20% तक कम हो सकती है. 

ये स्टडी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ में Environmental Influences on Child Health Outcomes प्रोग्राम ने फंड की है. 

स्टडी में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि केवल मछली के तेल के सप्लीमेंट लेने से ऑटिज्म के खतरे को कम नहीं किया जा रहा है. बता दें, इनमें ओमेगा -3 फैटी एसिड (Omega-3 fatty acids) होता है. इसका मतलब यह है कि मछली खाने से बच्चे में ऑटिज्म (Autism) होने की संभावना कम होती है. जबकि केवल ओमेगा-3 सप्लीमेंट लेने से उतना फायदा नहीं होता है. 

सम्बंधित ख़बरें

शोध से पता चलता है कि मछली खाने से आपको ज्यादा पोषक तत्व मिलते हैं. इसलिए, ऑटिज्म के जोखिम को कम करने के लिए प्रेग्नेंसी के दौरान बैलेंस्ड डाइट के हिस्से के रूप में मछली खाने की सलाह दी जाती है, न कि केवल ओमेगा -3 के सप्लीमेंट पर निर्भर रहने की. 

मछली पेट में पल रहे बच्चे को कैसे फायदा पहुंचाती है?
मछली ओमेगा-3 फैटी एसिड का एक बड़ा सोर्स है, जो प्रेग्नेंसी के दौरान जरूरी होता है. ये फैटी एसिड मां की हेल्थ को फायदा पहुंचाता है. 

हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि 25% प्रेग्नेंट महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान कभी भी मछली नहीं खाती हैं या महीने में एक बार से भी कम इसका सेवन करती हैं. यहां तक ​​कि बहुत कम महिलाएं ऐसी हैं जो ओमेगा-3 सप्लीमेंट्स लेती हैं. बता दें, अखरोट, अलसी और हरी पत्तेदार सब्जियों में भी ओमेगा-3 पाया जाता है. 

स्टडी में 10,800 प्रेग्नेंट महिलाओं और मछली के तेल की खुराक लेने वाली 12,000 से ज्यादा की डाइट देखी गई. इसमें मछली खाना और बच्चों में ऑटिज्म होने, के बीच में लिंक देखा गया. दिलचस्प बात यह है कि 65-85% प्रतिभागियों ने कहा कि वे मछली के तेल या दूसरे सप्लीमेंट्स नहीं लेती हैं. 

(फोटो-Unsplash)
(फोटो-Unsplash)

बच्चे के लिए जरूरी होता है ये फैटी एसिड 
दरअसल, कई रिपोर्ट्स कहती हैं कि पेट में पल रहे बच्चे के दिमाग के विकास के लिए ओमेगा-3 फैटी एसिड जरूरी होता है. इसके अलावा, मछली में सेलेनियम, आयोडीन, आयरन और विटामिन-डी जैसे दूसरे पोषक तत्व मिलते हैं. ये सभी ब्रेन को बेहतर बनाने के लिए काम करते हैं. 

डॉक्टर्स क्या कहते हैं? 
इस बारे ने GNT डिजिटल ने दिल्ली में स्थित डैफोडिल्स बाय आर्टेमिस में गायनेकोलॉजी कंसलटेंट डॉ. अपूर्वा गुप्ता से बात की. डॉक्टर अपूर्वा गुप्ता ने इस स्टडी को सपोर्ट करते हुए जानकारी दी. उनके मुताबिक, पेट में पल रहे बच्चे के दिमाग के विकास के लिए ओमेगा -3 फैटी एसिड जरूरी होता है. सैल्मन, सार्डिन और मैकेरल जैसी मछलियां इन आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं. 

डॉ. अपूर्वा गुप्ता ने प्रेग्नेंसी के दौरान मछली के सेवन और उसके फायदों पर भी जोर दिया. उन्होंने बताया कि इससे समय से पहले बच्चे के जन्म का कम जोखिम होता है साथ ही बच्चा मेंटली और फिजिकली हेल्दी भी रहता है. 

कुछ चीजों का रखना है ख्याल 
हालांकि, उन्होंने कुछ प्रकार की मछलियों में मरकरी (Mercury) के संभावित खतरों के बारे में चेतावनी दी. मरकरी एक प्रकार का जहरीला मेटल होता है जो मछली के शरीर में जमा हो सकता है. डॉ. अपूर्वा ने कहा, "प्रेग्नेंट महिलाओं को कुछ मछलियों में मिलने वाले मरकरी के लेवल के प्रति सचेत रहना जरूरी है. इसका ज्यादा लेवल हो तो ये मां और भ्रूण दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है. 

डॉ. अपूर्वा गुप्ता ने इस बात पर भी जोर दिया कि भले ही स्टडी के रिजल्ट आशाजनक आए हैं लेकिन मछली खाने से ऑटिज्म को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है. डॉक्टर कहती हैं, “यह शोध डिलीवरी से पहले एक प्रॉपर डाइट की बात करती है. हालांकि, यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह पेट में पल रहे बच्चे में ऑटिज्म को रोकने का एकमात्र समाधान नहीं हो सकता है. यह बीमारी के होने को काफी हद तक कम कर सकता है लेकिन ये रोकथाम की गारंटी नहीं देता है."

ऑटिज्म क्या है? 
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक डेवलपमेंटल कंडीशन (Developmental condition) है. इसमें व्यक्ति के सीखने, समझने और बात करने की क्षमता प्रभावित होती है. ऑटिज्म से पीड़ित लोग अपने साथियों से अलग व्यवहार कर सकते हैं. ऐसे लोगों के लिए दूसरे लोगों के साथ बात करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (CDC) के अनुसार, आठ साल की उम्र के हर 44 बच्चों में से एक को ऑटिज्म हो सकता है. लड़कियों की तुलना में लड़कों में ये स्थिति ज्यादा देखी जाती है.