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Chandrayaan-3: इतिहास रचने जा रहा भारत, चंद्रयान-3 अब चांद से महज 25 किलोमीटर दूर, ISRO ने बताया लैंडिंग का समय

सभी देशवासियों की निगाहें चंद्रयान-3 पर टिकी है. भारत का चंद्रयान-3 चांद की ड्योढ़ी तक पहुंच गया है. लैंडर विक्रम इस समय चांद के ऐसे ऑर्बिट में है, जहां चंद्रमा का निकटतम बिंदु 25 किमी है. इसी कक्षा से यह 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा.

विक्रम लैंडर अब चांद से मात्र 25 किलोमीटर दूर रह गया है.  (फोटोः इसरो) विक्रम लैंडर अब चांद से मात्र 25 किलोमीटर दूर रह गया है. (फोटोः इसरो)
हाइलाइट्स
  •  लैंडिंग से पहले मॉड्यूल को आंतरिक जांच से गुजरना होगा

  • अभी चंद्रमा पर रात है, 23 तारीख को वहां सूर्योदय होगा

भारत इतिहास रचने जा रहा है. जी हां, चंद्रयान-3 चांद के बेहद करीब पहुंच गया है. विक्रम लैंडर रविवार (20 अगस्त) सुबह 2 से 3 बजे के बीच चांद के और करीब पहुंच गया. अब विक्रम चांद से महज 25 किलोमीटर दूर रह गया है. इससे पहले वह 113 किमी x157 किमी की ऑर्बिट में था. चांद पर उतरने की कोशिश करने जा रहे चंद्रयान-3 के लैंडिंग का सटीक समय पता चल गया है. इसरो ने ट्वीट कर बताया कि चंद्रयान-3 आने वाले 23 अगस्त को करीब 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा पर लैंड करने को तैयार है.

सीधा प्रसारण का लिंक भी किया शेयर
इसरो ने लैंडिंग के सीधा प्रसारण का लिंक भी शेयर किया है. इस लिंक पर जाकर आप चांद पर भारत के पहुंचने की ऐतिहासिक घटना के साक्षी बन सकते हैं. इसरो ने बताया है कि जिस पल का देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है, उसका लाइव प्रसारण 23 अगस्त 2023 को शाम 5.27 बजे से किया जाएगा. इसे इसरो की वेबसाइट, यूट्यूब, फेसबुक पेज और डीडी नेशनल चैनल सहित विभिन्न प्लेटफॉर्म पर देखा जा सकेगा. इसरो ने कहा है कि चांद पर उतरना एक ऐसा क्षण होगा जो न केवल जिज्ञासा को बढ़ाएगा बल्कि हमारे युवाओं के मन में अन्वेषण (खोज) के लिए जुनून और उत्साह भी जगाएगा. इसरो ने देशभर के सभी स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों को इस ऐतिहासिक घटना के समय सक्रिय भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया है. संस्थानों को इस इवेंट के बारे में छात्रों, अध्यापकों को बताने के साथ-साथ अपने परिसर में चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग की लाइव स्ट्रीमिंग दिखाने को कहा गया है. 

दूसरा डी-बूस्टिंग ऑपरेशन पूरा 
दूसरे डी-बूस्टिंग ऑपरेशन (रफ्तार कम करने की प्रक्रिया) ने ऑर्बिट को 25 किमी x134 किमी तक कम कर दिया है यानी अब चांद की सतह से विक्रम लैंडर की दूरी 25 किलोमीटर ही बची है. अब बस 23 को सफल लैंडिंग का इंतजार है. लैंडिंग से पहले मॉड्यूल को आंतरिक जांच से गुजरना होगा और निर्दिष्ट लैंडिंग स्थल पर सूर्योदय का इंतजार करना होगा. इसरो ने बताया कि लैंडर मॉड्यूल 23 अगस्त 2023 को शाम करीब 5.45 बजे चांद की सतह पर उतर सकता है.

चंद्रयान-3 को क्यों है सूर्योदय का इंतजार
इस डी-बूस्टिंग के साथ विक्रम लैंडर चांद की सबसे निचली कक्षा में पहुंच गया है. अब वह चांद के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. चंद्रयान-3 को अब बस चंद्रमा की सतह पर सूर्य के उदय होने का इंतजार है. अभी चंद्रमा पर रात है और 23 तारीख को वहां सूर्योदय होगा. विक्रम लैंडर सूरज की रोशनी और ताकत का इस्तेमाल कर अपना मिशन आगे बढ़ाएगा. रोवर दोनों ही पावर जेनरेट करने के लिए सोलर पैनल यूज करेंगे. इस मिशन में प्रज्ञान रोवर अगले 14 दिन तक अपनी जिम्मेदारियों को निभाएगा. भारत का चंद्रयान-3 मिशन चांद की सतह पर पानी की खोज करेगा, साथ ही चांद पर रसायनिक विश्लेषण भी करेगा. 

चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिन के होता है बराबर
चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. यही वजह है कि चंद्रयान 3 मिशन 14 दिनों तक चांद की सतह पर रिसर्च करेगा. 23 अगस्त को चांद की सतह पर लैंडिंग के साथ ही लैंडर विक्रम अपना काम शुरू कर देगा. 

दक्षिणी ध्रुव पर होगी सॉफ्ट लैंडिंग
लैंडर विक्रम इस समय चांद के ऐसे ऑर्बिट में है, जहां चंद्रमा का निकटतम बिंदु 25 किमी और सबसे दूर 134 किमी है. इसी कक्षा से यह बुधवार (23 अगस्त) को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा. अभी तक दक्षिणी ध्रुव पर कोई मिशन नहीं पहुंचा है. यही वजह है कि इसरो ने चंद्रयान को यहां पर भेजा है. लैंडर विक्रम स्वचालित मोड में चंद्रमा की कक्षा में उतर रहा है. दरअसर यह स्वयं फैसला ले रहा है कि इसे आगे की प्रक्रिया को किस तरह से करना है. चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग के बाद भारत इस सफलता को हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा. अभी तक अमेरिका, सोवियत संघ (वर्तमान रूस) और चीन ही ऐसा कर सके हैं.

चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को किया गया था लॉन्च
इसरो ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया था. 5 अगस्त को यह पहली बार चांद की कक्षा में प्रवेश किया था. 16 अगस्त को इसने अपना आखिरी मैन्युवर पूरा किया था. 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल से लैंडर मॉड्यूल अलग हो गया था. इस बार अधूरा सपना पूरा होने वाला है. भारत ने साल 2019 में चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च किया था, जो सॉफ्ट लैंडिंग से ठीक पहले गड़बड़ा गया था और मिशन अधूरा रह गया था. अब उसी मिशन को पूरा करना है.

Chandrayaan-3 Mission:

The second and final deboosting operation has successfully reduced the LM orbit to 25 km x 134 km.

The module would undergo internal checks and await the sun-rise at the designated landing site.

The powered descent is expected to commence on August… pic.twitter.com/7ygrlW8GQ5

लैंडिंग के लिए इन चुनौतियों को करना होगा पार
1. चंद्रमा की सतह असमान है और गड्ढों, पत्थरों से भरी हुई है. इस तरह की सतह पर लैंडिंग खतरनाक साबित हो सकती है. चंद्रमा पर लैंडिंग के अंतिम कुछ किलोमीटर पहले के हालात सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं क्योंकि उस वक्त अंतरिक्षयान के थ्रस्ट से गैस निकलती है. इन गैसों के कारण चंद्रमा की सतह से काफी बड़ी मात्रा में धूल उड़ती है जो ऑनबोर्ड कंप्यूटर और सेंसर्स को नुकसान पहुंचा सकती है या भ्रमित कर सकती है.
2. चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग के लिए बड़ी मात्रा में ईंधन की जरूरत पड़ती है जिसके जरिए अपोजिट डायरेक्शन में बल लगाकर नीचे उतरने की स्पीड कम की जाती है. हालांकि, इतना ईंधन लेकर उड़ान भरना खतरनाक हो सकता है. 
3. लैंडिंग इसलिए भी चुनौती से भरी है क्योंकि चंद्रमा पर पृथ्वी के मुकाबले वातावरण करीब 8 गुना पतला है. ऐसे में पैराशूट के जरिए भी किसी अंतरिक्ष यान को उतारा नहीं जा सकता है.

विक्रम लैंडर के लेग्स को बनाया गया है मजबूत 
हालांकि हमारे वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के लिए लैंडर की तकनीक में बड़ा बदलाव किया. विक्रम लैंडर के लेग्स को बहुत मजबूत बनाया गया है. यदि विक्रम को किसी बड़े गड्ढे में भी लैंडिंग करनी पड़े तो उसे कोई परेशानी नहीं आएगी. लैंडर के बाहर एक खास कैमरा लगाया गया है. इसे लेजर डॉप्लर वेलोमीटिर कहते हैं. इस लेजर की रोशनी लगातार चांद को छूती रहेंगी. इसरो के कंट्रोल रूम में बैठे वैज्ञानिक का इस पर पूरा नियंत्रण रहेगा.