दुनियाभर में भारत के चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के लिए वाहवाही मिल रही है. चांद पर इस ऐतिहासिक लैंडिंग की भी दुनिया भर में व्यापक रूप से प्रशंसा की जा रही है. हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि चंद्रयान-3 को ये नाम कैसे मिला. दरअसल, यह ऐतिहासिक प्रयास दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक: संस्कृत पर प्रकाश डालता है.
चंद्रयान-3 स्पेस क्राफ्ट संस्कृत में "चंद्रयान" (चंद्र का अर्थ "चंद्रमा"; यान का अर्थ "शिल्प" या "वाहन") है, जो चंद्रमा पर जाने वाले मिशन के लिए सबसे अच्छा नाम है. छह पहियों वाला रोवर, प्रज्ञान, जो अब चंद्रमा की मिट्टी का विश्लेषण करने के लक्ष्य के साथ चंद्रमा पर चल रहा है, संस्कृत में "ज्ञान" कहलाता है.
कैसे मिले ये नाम?
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल की शुरुआत में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष श्रीधर सोमनाथ ने कहा था, "संस्कृत में लिखा गया भारतीय साहित्य अपने मूल और दार्शनिक रूप में बेहद समृद्ध है. यह वैज्ञानिक रूप में भी महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट में कहा गया कि प्राचीन भाषा की संरचना और वाक्य-विन्यास इसे वैज्ञानिक विचारों और प्रक्रियाओं को दर्शाने के लिए आदर्श बनाते हैं.
विक्रम नाम कैसे रखा गया?
जबकि चंद्रयान -3 का लैंडर, विक्रम भी एक संस्कृत नाम है, जिसका अर्थ है "वीरता". यह विशेष रूप से इंडियन स्पेस प्रोग्राम के जनक स्व. विक्रम साराभाई के सम्मान में रखा गया है. विक्रम साराभाई ने इसरो के पहले अध्यक्ष के रूप में काम किया है और नवंबर 1947 में, फिजिक्स रिसर्च लेबोरेटरी (PRL) की स्थापना की. ये आजाद भारत की पहली लैब मानी जाती है. ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने के लगभग तीन महीने बाद पीआरएल की स्थापना की गई थी.
बता दें, भारत के अहमदाबाद में स्थित, PRL के वैज्ञानिकों ने वास्तव में चंद्रयान -3 मिशन के लिए जो सामान इस्तेमाल हुआ है वह बनाया है. उन्होंने प्रज्ञान रोवर पर स्थापित एक स्पेक्ट्रोमीटर बनाया, जिसका उद्देश्य चंद्रमा की संरचना के बारे में जानकारी इकट्ठी करना था, और लैंडर पर एक थर्मल जांच थी, जो पहली बार, चांद की मिट्टी में तापमान को मापेगी.
विकास नाम के पीछे क्या है कहानी?
इतना ही नहीं, विक्रम साराभाई की देखरेख में फले-फूले स्पेस एप्लिकेशन सेंटर ने इसके लिए आठ कैमरे बनाए हैं जो लैंडर और रोवर पर लगाए गए हैं. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इन उपकरणों ने चंद्रमा की सतह पर उतरने में सहायता की और अब वे प्रज्ञान को चंद्रमा पर घूमने में मदद कर रहे हैं. संस्कृत में लिक्विड फ्यूल वाले रॉकेट इंजन का नाम भी रखा गया है. इसका नाम विकास जिसका अर्थ है "प्रगति", रखा गया है. इसका उपयोग जुलाई में चंद्रयान -3 स्पेसक्राफ्ट को कक्षा में पहुंचाने वाले तीन चरण वाले रॉकेट के मुख्य चरण को शक्ति देने के लिए किया गया था. विकास को व्यापक रूप से साराभाई के पूरे नाम - विक्रम अंबालाल साराभाई का प्रतीक भी माना जाता है.
मिशन मंगलयान के पीछे भी है ऐसी ही कहानी
दरअसल, चंद्रयान-3 संस्कृत-नाम से आया एकमात्र भारतीय मिशन नहीं है. इसरो पहले भी इस भाषा का इस्तेमाल कई प्रोजेक्ट के नामों के लिए कर चुका है. इसमें पहला मंगल ऑर्बिटर मिशन मंगलयान भी शामिल है, जिसे 2013 में लॉन्च किया गया था और कक्षा से मंगल ग्रह की सतह और वातावरण का अध्ययन करने में सफल रहा था. पिछले साल जब इसकी बैटरी खत्म हो गई तो इसका संचार बंद हो गया.
इस सप्ताह, भारत सूरज का अध्ययन करने के लिए अपना पहला मिशन शुरू करेगा: आदित्य-एल1, जिसे संस्कृत में "सूर्य" कहा जा रहा है. इसके अलावा पाइपलाइन में देश का ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम, गगनयान है, जिसका लक्ष्य 2025 से पहले कम से कम तीन अंतरिक्ष यात्रियों को लो-अर्थ ऑर्बिट में लॉन्च करना है.