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Chandrayaan 3: चांद पर उतरने के बाद क्या-क्या करेंगे विक्रम और लैंडर...कितने दिन लगेंगे, कैसे धरती तक आएगी जानकारी, जानिए

चंद्रयान-3 जब चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा, उसके बाद से वैज्ञानिकों का असली काम शुरू होगा.चंद्रयान-3 के चांद पर उतरने के बाद रोवर से जुड़े कामों को शुरू किया जाएगा.चांद का एक लूनर डे यानी चांद पर एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है यानी लैंडर और रोवर चांद पर 14 दिन रहेंगे.

Chandrayaan-3 Chandrayaan-3

अगर चंद्रयान-3  का लैंडर मॉड्यूल शाम 6.04 बजे चंद्रमा पर सही सलामत उतरता है तो भारत में भी जश्न का माहौल होगा. लेकिन इसरो के लिए यह आधा अधूरा काम होगा. इसरो वैज्ञानिकों के लिए असली काम टचडाउन के बाद शुरू होगा क्योंकि इसके बाद वो लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान से भेजे गए डेटा को एनालाइड करेंगे. ये दोनों चांद पर पूरा एक दिन (धरती पर 14 दिन) बिताएंगे और धरती पर डेटा भेजेंगे. चांद की सतह पर लैंडर और रोवर क्या करेंगे और इससे भारत और दुनिया को क्या फायदा होगा, जानिए.

कैसे करेंगे काम?
टचडाउन के तुरंत बाद, विक्रम लैंडर का एक साइड पैनल खुल जाएगा, जिससे प्रज्ञान रोवर के लिए एक रैंप बन जाएगा. राष्ट्रीय तिरंगे और पहियों पर इसरो के LOGO के साथ छह पहियों वाला प्रज्ञान 4 घंटे के बाद लैंडर के पेट से चंद्रमा की सतह पर उतरेगा. 1 सेमी प्रति सेकंड की स्पीड से चलते हुए लूनर के आसपास की चीजों को स्कैन करने के लिए नेविगेशन कैमरों का उपयोग करेगा. जैसे ही यह घूमेगा, रोवर चंद्र रेजोलिथ (मिट्टी) पर तिरंगे और इसरो लोगो के निशान छोड़ देगा, जिससे चंद्रमा पर भारत का निशान बन जाएगा.

रोवर में चंद्रमा की सतह से संबंधित डेटा प्रदान करने के लिए पेलोड के साथ कॉन्फ़िगर किए गए इंस्ट्रूमेंट्स लगे हैं. यह चंद्रमा के वायुमंडल की मौलिक संरचना पर डेटा एकत्र करेगा और लैंडर को डेटा भेजेगा. लैंडर पर तीन पेलोड्स हैं. उसके जिम्मे चांद की प्‍लाज्‍मा डेंसिटी, थर्मल प्रॉपर्टीज और लैंडिंग साइट के आसपास की सीस्मिसिटी मापना है ताकि चांद के क्रस्ट और मैंटल के स्‍ट्रक्‍चर का सही-सही पता लग सके.

इनमें से एक चांद की सतह पर प्लाज्मा (आयन्स और इलेट्रॉन्स) के बारे में जानकारी जुटाएगी. दूसरा चांद की सतह की तापीय गुणों के बारे में अध्ययन करेगा और तीसरा चांद की परत के बारे में जानकारी जुटाएगा. इसके अलावा चांद पर भूकंप कब और कैसे आता है इसका भी पता लगाया जाएगा.

कितने दिन रहना है?
चंद्रयान-3 के रोवर और लैंडर चांद पर एक दिन रहेंगे. इसके बाद वहां रात हो जाएगी. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर तापमान माइनस 238 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. इतने कम टेम्‍प्रेचर पर मशीनें काम नहीं करतीं. एक रिपोर्ट के मुताबिक यह संभव है कि रोवर और लैंडर चांद पर एक और दिन गुजारने में कामयाब रहें.

ISRO के एक सीनियर अधिकारी ने जानकारी दी कि एजेंसी ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिए वैकल्पिक तारीख 27 अगस्त रखने की संभावना बरकरार रखी है. अगर 23 अगस्त को विक्रम मॉड्यूल को उतारना उचित नहीं लगा तो लैंडिंग डेट बढ़ाई भी जा सकती है.

चांद पर धरती के 14 दिन के बराबर एक दिन होता है. ऐसे में साउथ पोल पर लैंड करने के बाद लैंडर और रोवर के पास काम खत्म करने के लिए 14 दिन का समय होगा. इस दौरान चांद पर धूप रहेगा और ये सोलर एनर्जी से अपना काम करते रहेंगे. 14 दिन बाद साउथ पोल पर अंधेरा हो जाएगा ऐसे में लैंडर और रोवर के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा. रोवर प्रज्ञान का वजन 26 किलो है और इसे चलने के लिए 50 वॉट पावर चाहिए होती है.

ऑर्बिटर धरती पर भेजेगा जानकारी
सोमवार को इसरो चेयरमैन ने दिल्ली में अंतरिक्ष मंत्री जितेंद्र सिंह को चंद्रयान-3 की स्थिति के बारे में जानकारी दी और कहा कि सभी प्रणालियां पूरी तरह से काम कर रही हैं इसलिए 23 अगस्त को किसी गड़बड़ी की आशंका नहीं है. अगले दो दिनों में चंद्रयान-3 के हर एक अपडेट पर लगातार नजर रखी जाएगी. उन्होंने कहा, लैंडिंग का अंतिम क्रम दो दिन पहले लोड किया जाएगा और उसका परीक्षण किया जाएगा.

सौर ऊर्जा से संचालित लैंडर और रोवर के पास चंद्रमा के परिवेश का अध्ययन करने के लिए लगभग दो सप्ताह का समय होगा. रोवर केवल लैंडर के साथ संचार कर सकता है और लैंडर विक्रम को जानकारी भेजेगा. विक्रम सारी जानकारी ऑर्बिटर को देगा और वहां से धरती पर जानकारी पहुंचेगी. इसरो का कहना है कि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर का इस्तेमाल किसी गड़बड़ी की स्थिति में भी किया जा सकता है. सोमवार को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने लैंडर मॉड्यूल के साथ संचार स्थापित किया.

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ के मुताबिक, पृथ्वी के 14 दिनों के दौरान रोवर द्वारा तय की गई वास्तविक दूरी का अनुमान अभी नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि यह विभिन्न चीजों (गणना) के आधार पर किया जाएगा. अभी तक चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग कोई भी देश नहीं करा पाया है. रूस ने कोशिश की तो उसका लूना-25 लैंडिंग से ठीक पहले क्रैश हो गया. अगर चांद पर नमी का पता चला तो यह पूरी दुनिया के लिए बड़ी बात होगी.