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Chandrayaan 3: पानी से लेकर खनिज तक... विक्रम लैंडर का Pragyan Rover चांद पर करेगा इन चीजों की तलाश

Chandrayaan 3 Mission: चंद्रयान 3 का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर लैंड कर चुका है. प्रज्ञान रोवर भी चांद की सतह पर सैर कर रहा है. प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर खनिज और पानी की तलाश करेगा. चंद्रयान 3 मिशन पिछले 2 मून मिशनों की स्टडी को आगे बढ़ाएगा.

चंद्रयान 3 मिशन के तहत चांद पर पानी और खनिज की तलाश की जाएगी चंद्रयान 3 मिशन के तहत चांद पर पानी और खनिज की तलाश की जाएगी

भारत का चंद्रयान 3 की चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग हुई है. इसके बाद 6 पैरों वाला 26 किलोग्राम का प्रज्ञान रोवर नीचे उतरा और सतह पर सैर करना शुरू कर दिया. अगले 14 दिनों तक रोवर चंद्रमा के बारे में जानकारी जुटाएगा. प्रज्ञान 500 मीटर के दायरे में सैर करेगा. चंद्रयान 3 के पेलोड्स पिछले 2 मून मिशनों की रिसर्च को आगे बढ़ाएंगे. इस मिशन में चांद पर भूकंप, खनिज, इलेक्ट्रॉन और आयरन को लेकर जानकारी जुटाई जाएगी. चंद्रयान 1 को चांद पर पानी खोजने में सफलता मिली थी.

मिशन में क्या होगा- 
विक्रम लैंडर 4 एक्सपेरिमेंट किए गए हैं. जबकि प्रज्ञान रोवर दो साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट किए गए हैं. चलिए सबसे पहले आपको लैंडर के एक्सपेरिमेंट के बारे में बताते हैं.

  • रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फियर (RAMBHA) चांद की सतह के पास इलेक्ट्रॉन और आयरन का अध्ययन करेगा और वो कैसे समय के साथ बदलते हैं.
  • चांद का सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE) पोलर रीजन के पास चांद की सतह पर थर्मल गुणों पर रिसर्च करेगा. चंद्रयान 3 मिशन 70 डिग्री दक्षिण अक्षांश पर उतरा है, जो चांद के साउथ पोल के सबसे करीब उतरने वाले स्पेसक्राफ्ट है.
  • इंस्ट्रूमेंट ऑफ लूनर सिस्मिक एक्टिविटी (ILSA) लैडिंग साइट के पास लूनर भूकंप को मापेगा. इसके अलावा चांद की पपड़ी और  मेंटल की स्टडी करेगा.
  • लेजर रेट्रोरेफ्लेक्टर एरे (LRA) को नासा ने भेजा है, जो भविष्य के मिशन के लिए बहुत सटीक माप के लिए लेजर के टारगेट के तौर पर काम करता है. रोवर पर दो साइंटिपिक एक्सपेरिमेंट. 

प्रज्ञान रोवर को लेकर भी 2 एक्सपेरिमेंट किए गए हैं. चलिए आपको उनके बारे में बताते हैं.

  • प्रज्ञान रोवर पर लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS) लगाया गया है, जो चांद की सतह के केमिडल और मिनरल कंपोजिशन के बारे में बताएगा.
  • अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) चांद की मिट्टी और चट्टानों में मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, पोटैशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और आयरन जैसे तत्वों की संरचना के बारे में पता चलाएगा.

पानी की खोज-
चांद का साउथ पोल इलाके में गहरे गड्ढे हैं, जिसमें हमेशा अंधेरा रहता है. यहां बर्फ के रूप में पानी के होने की संभावना है. चंद्रयान 1 मिशन के दौरान चांद की सतह पर पानी और हाइड्रॉक्सिल की खोज की गई थी. भारत का मून इंपैक्ट प्रोब (MIP) एक पेलोड है, जिसे चांद की सतह पर क्रैश कराया गया था. उससे चांद की सतह पर वायुमंडल में पानी और हाइड्रॉक्सिल मॉल्यूकल्स पर अध्ययन करने में मदद मिली. 
मिनी-एसएआर नाम के एक दूसरे पेलोड ने दक्षिणी ध्रुव के पास क्रेटर्स में बर्फ के तौर पर पानी के होने पता लगाने में मदद की.
तीसरा पेलोड को नासा ने बनाया था, जिसे मून मिनरलॉजी मैपर या एम3 कहा जाता है. इसने चांद की सतह पर इन अणुओं का पता लगाने में मदद की.
चंद्रयान 2 को चांद पर पानी को लेकर स्टडी को आगे बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया था. लेकिन लैंडिंग के समय क्रैश हो गया.

लावा ट्यूब का पता लगाना-
चंद्रयान 1 के टैरेन मैपिंग कैमरा और हाइपर स्ट्रेपक्टरल इमेजर ने एक भूमिगत लावा ट्यूब का पता लगाया था. जिसके लेकर वैज्ञानिकों का मानना है कि ये भविष्य में इंसानों के लिए चांद पर सेफ वातावरण मुहैया करा सकता है. ये रेडिएशन, उल्कापिंड के असर, तापमान और धूल के तूफान से रक्षा कर सकता है.

मैग्मा महासागर थीसिस-
माना जाता है कि धरती के एक टुकड़े के अलग होने से चांद का निर्माण हुआ है. माना जाता है कि इसके प्रभाव से उत्पन्न ऊर्जा की वजह से चांद की सतह पिघल गई. इसे मैग्ना महासागर परिकल्पना कहा जाता है.
चंद्रयान 1 के एम3 पेलोड ने चांद की सतह पर एक विशेष प्रकार के हल्के-घनत्व वाले क्रिस्टल पाए थे, ये सतह पर तभी पाए जाते हैं, जब वो कभी लिक्विड रहा हो.
चंद्रयान 2 ऑबिटर के सोलर एक्स-रे मॉनिटर कई सौर माइक्रोफ्लेयर का ऑब्जर्व करने में सक्षम था. इस तरह का ऑब्जर्वेशन अब तक सिर्फ बड़े सोलर फ्लेयर के लिए किए गए थे. लेकिन अब ये वैज्ञानिकों को कोरोनल हीटिंग के बारे में सुराग दे सकते हैं.

खनिजा का पता लगाना-
क्लास एक्स-रे फ्लौरेसेंस एक्सपेरिमेंट ने पहली बार चंद्रमा के 95 फीसदी हिस्से को एक्स-रे में मैप किया है. इसरो के मुताबिक पिछले 50 सालों में चांद पर भेजे गए एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर सतह के सिर्फ 20 फीसदी हिस्से को को ही कवर कर पाए हैं. दोनों चंद्रयान मिशनों ने उन क्षेत्रों की भी मैपिंग की गई है, जहां से सैंपल लाने का मिशन नहीं हुआ है.
इन अध्ययनों से पता चला है कि चंद्रमा पर खनिजों के भीतर ऑक्साइड के तौर पर प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन मौजूद है. वैज्ञानिकों का विश्वास है कि इसका इस्तेमाल भविष्य के मिशनों के लिए किया जा सकता है.

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