दुनिया भर में प्लास्टिक से फैलने वाला प्रदूषण लोगों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. ऐसे में आईआईटी-आईएसएम, धनबाद के वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में पर्यावरण प्रदूषण के लिए सिरदर्द बन चुके प्लास्टिक का विकल्प ढूंढ लिया है. वैज्ञानिकों ने लैब स्तर पर पानी से न भीगने वाला जूट विकसित किया है. इससे बने थैले में खाने की सामग्री जेसे चिप्स, शैंपू, लिक्विड आदि को पैक किया जा सकेगा.
प्लास्टिक का विकल्प बनेगा ये जूट
इस थैली में रखा अनाज और अन्य सामग्री बाहर की नमी से सुरक्षित रहेगी. आने वाले समय में यह जूट प्लास्टिक का विकल्प बन सकता है. इस उत्पाद की लागत काफी कम है और गुणवत्ता भी अच्छी है. इससे पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान भी नहीं होगा. वाटर रेसिस्टेंट जूट बनाने में आईआईटी-आईएसएम के डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आदित्य कुमार और रिसर्च स्कॉलर डॉ. पूनम चौहान के 5 सदस्य भी शामिल हैं. उन्होंने ढाई वर्ष के रिसर्च के बाद इसे विकसित किया है. रिसर्च का पेटेंट पिछले साल में ही पूरा किया हैं.
सस्ती सामग्री से बना है ये जूट
IITISM धनबाद के प्रोफेसर आदित्य कुमार का कहना है कि बताया कि रिसर्च में सस्ती सामग्री का उपयोग किया गया है. जूट पर प्रसार विधि से केमिकल का छिड़काव किया गया. इस प्रक्रिया में किसी भी बड़े उपकरण का प्रयोग नहीं किया गया है. कोटिंग में उपयोग की गई सामग्री बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण के अनुकूल है. इसका मानव के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा. कोटिंग की लागत 70 रुपए लीटर होगी. रिसर्च में वाटर रेसिस्टेंट जूट का उत्पादन व्यावसायिक स्तर पर करने की संभावनाओं के बारे में भी बताया गया है.
क्या है इसे बनाने की प्रक्रिया
IIT-ISM धनबाद की पूनम चौहान ने बताया कि एक सिलेन-आधारित कोटिंग का उपयोग किया गया. सिलेन कोटिन एक तकनीकी रूप से उन्नत प्रक्रिया है जो सामग्री की दीर्घायु में सुधार के लिए एक सुरक्षात्मक बाधा उत्पन्न करती है. जूट बनाने के लिए इस प्रक्रिया को एल्यूमीनियम, कंक्रीट और अन्य सबस्ट्रेट्स के साथ-साथ कपड़ों पर भी लागू किया जा सकता है केमिकल कोटिन में डालने से कलर भी नहीं लगेगी.