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Echolocation: इस तकनीक की मदद से आम लोगों की तरह ही 'देख' पाते हैं नेत्रहीन, नई रिसर्च में हुआ खुलासा... जानिए क्या है यह प्रोसेस

इकोलोकेशन एक प्रक्रिया है जिसमें हम ध्वनि तरंगों की मदद से अपने आसपास की दुनिया को समझते हैं. इस प्रक्रिया में जब हमारी आवाज किसी चीज से लौटकर हमारी तरफ आती है तो हम उसकी दूरी और आकार को समझ सकते हैं.

Representational Image (Photo:Unsplash/Osarugue Igbinoba) Representational Image (Photo:Unsplash/Osarugue Igbinoba)

वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक का पता लगा लिया है, जिसकी मदद से नेत्रहीन लोगों को 'आंखें' दी जा सकती हैं. एक नई रिसर्च ने खुलासा किया है कि जब दृष्टिहीन लोगों और देख सकने वाले लोगों को 'इकोलोकेशन' (Echolocation) की ट्रेनिंग दी जाती है तो उनके दिमाग एक ही तरह से काम करते हैं. 

डरहम यूनिवर्सिटी (Durham University) की इस रिसर्च ने देख सकने वाले और न देख सकने वाले लोगों को इकोलोकेशन की ट्रेनिंग दी. यूनिवर्सिटी ने ट्रेनिंग से पहले और बाद में लोगों के दिमाग को स्कैन किया, और नतीजे चौंकाने वाले थे.

क्या है इकोलोकेशन?
इकोलोकेशन एक प्रक्रिया है जिसमें हम ध्वनि तरंगों की मदद से अपने आसपास की दुनिया को समझते हैं. इस प्रक्रिया में जब हमारी आवाज किसी चीज से लौटकर हमारी तरफ आती है तो हम उसकी दूरी और आकार को समझ सकते हैं. इकोलोकेशन का इस्तेमाल चमगादड़ों और डॉलफिन्स में पाया गया, जिसके बाद इंसानों ने नेत्रहीन लोगों के लिए भी इस तकनीक को अपना लिया. 

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इस रिसर्च से पहले डरहम यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट के रिसर्चर देखना चाहते थे कि इकोलोकेशन की ट्रेनिंग दिए जाने पर देख सकने वाले और नेत्रहीन लोगों का दिमाग किस तरह विकसित होता है. यह जानने के लिए शोधकर्ताओं ने 10 हफ्तों तक 12 नेत्रहीन और 14 देख सकने वाले लोगों का अध्ययन किया.

कैसे हुई रिसर्च?
इस रिसर्च के लिए देख सकने वाले लोगों की आंखों को भी बंद कर दिया गया. सभी प्रतिभागियों को देखे बिना चीजों की दूरी और उनका आकार बताना था. या फिर किसी ध्वनि की मदद से किसी रास्ते से बाहर निकलना होता था. सभी प्रतिभागियों को इस टास्क से पहले और बाद में एमआरआई स्कैन से गुज़रना पड़ा. ताकि ये पता लगाया जा सके कि 10 हफ्ते की ट्रेनिंग के बाद इनके दिमाग में कोई बदलाव हुआ है या नहीं.

रिसर्च में क्या आया सामने?
स्कैन से पता चला कि इकोलोकेशन सीखने के बाद, दृष्टिहीन और दृष्टि वाले दोनों प्रतिभागियों के दिमाग का प्राथमिक "विजुअल" कॉर्टेक्स हिस्सा पुनर्गठित हुआ है. और उनके दिमाग में ध्वनि गूंज के प्रति संवेदनशीलता विकसित हुई है. शोधकर्ताओं को नेत्रहीन लोगों में ऐसा बदलाव होने की उम्मीद थी, लेकिन देख सकने वालों में भी यह बदलाव पाया गया.

निष्कर्षों से पता चलता है कि दिमाग के काम करने के तरीके में बदलाव की क्षमता देख सकने वाले और दृष्टिहीन दोनों लोगों में बराबर होती है. यह रिसर्च उन लोगों के लिए बेहद कारगर साबित होगी जो समय के साथ अपनी दृष्टि गंवा रहे हैं. वे इकोलोकेशन सीखकर भविष्य में अपना जीवन आसान बना सकेंगे. 

रिसर्च के प्रमुख लेखक और डरहम विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. लोर थेलर कहते हैं, "हमारी रिसर्च से पता चलता है कि थोड़े समय की इकोलोकेशन ट्रेनिंग के जवाब में दृष्टिहीन और देख सकने वाले लोगों के दिमाग में स्ट्रक्चर और काम करने के तरीके में बदलाव आ सकता है. 

उन्होंने कहा, "इससे पता चलता है कि चाहे आप कितने भी समय से इससे क्यों न जूझ रहे हों, अगर आप दृष्टि की हानि जैसी कमी का अनुभव करते हैं तो आप अभ्यास करके इकोलोकेशन का इस्तेमाल करने के लिए तैयार हो जाएंगे."