दुनियाभर में हैकिंग को लेकर सभी संस्थाएं परेशान रहती हैं. हर कोई अपनी डिजिटल सुरक्षा को और भी कड़ा करने में लगा हुआ है. इसी कड़ी में राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भी इसी समस्या से जूझ रहा है. कथित तौर पर इसरो हर दिन 100 से अधिक हैकिंग प्रयासों से निपट रही है. यानि हर दी करीब 100 से ज्यादा हैकिंग अटेंप्ट्स किए जाते हैं. इसके पीछे कोई भी हो सकता है.
हर दिन होते हैं 100 से ज्यादा हैकिंग अटेम्प्ट्स
दरअसल, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस बात का खुलासा हाल ही में कोच्चि में एक साइबर सिक्योरिटी इवेंट के दौरान इसरो के अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने किया. टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसरो के अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने बताया कि इन साइबर अटैक्स से बचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के पास हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों सहित मजबूत सुरक्षा उपाय हैं.
इसरो प्रमुख के अनुसार, हैकिंग के कई प्रयास हुए हैं, लेकिन वे इसरो के सिक्योरिटी सिस्टम को ब्रीच नहीं कर सके. इसे तोड़ने में कामयाब नहीं हो पाए.
कैसे करता है इसरो अपनी सुरक्षा?
इसरो इन हैकिंग अटेम्प्ट्स से बचने के लिए अलग-अलग उपाए करती है. अपनी सिक्योरिटी की बाहरी लेयर से आगे जाने से रोकने के लिए कई फायरवॉल और सुरक्षा उपायों का उपयोग करती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वे सुनिश्चित करते हैं कि ये हैकिंग प्रयास उनकी सैटेलाइट और रॉकेट सॉफ्टवेयर इंटीग्रिटी को प्रभावित नहीं करते हैं. ये वो सैटेलाइट और रॉकेट सॉफ्टवेयर हैं जो चंद्रमा पर लैंडिंग जैसे मिशनों के लिए जरूरी होती है.
छोटा मिशन लॉन्च करने में भी होता है हैकिंग का खतरा
इसरो अध्यक्ष ने कहा कि भारत को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक बहुत मजबूत साइबर सेफ्टी समझ और जानकारी की जरूरत है. अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने यह भी बताया कि चंद्रमा पर लैंडिंग से जुड़ा एक छोटा सा कार्यक्रम चलाना कितना मुश्किल था और ऐसी किसी भी स्पेस से जुड़े कार्यक्रम को करने का जोखिम कितना बड़ा होता है.
गगनयान की तस्वीर की है शेयर
इस बीच, इसरो ने हाल ही में गगनयान अंतरिक्ष यान की पहली तस्वीरें शेयर की है. ये वही गगनयान है जो दिसंबर 2024 में मनुष्यों को अंतरिक्ष में ले जाएगा. इसरो ने यह भी कहा कि वह गगनयान मिशन के लिए मानव रहित फ्लाइट टेस्ट शुरू करेगा. इसरो ने अपने बयान में कहा, फ्लाइट टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन-1 (टीवी-डी1) की तैयारी चल रही है.
गगनयान मिशन में दो से तीन सदस्यों के दल को 1-3 दिन के मिशन के लिए पृथ्वी के चारों ओर लगभग 400 किमी. की गोलाकार ऑर्बिट में ले जाना और उन्हें वापस लाना शामिल है.
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