
चांद पर पहुंचना एक समय पर सिर्फ अमेरिका और सोवियत रूस जैसे देशों के लिए ही संभव था. धीरे-धीरे दूसरे देशों ने भी चांद तक पहुंचने का सपना देखा. भारत, चीन और जापान को इसमें सफलता भी मिली. अब प्राइवेट खिलाड़ियों भी चांद तक पहुंचने का सपना देखने लगे हैं. और सफल हो रहे हैं.
एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, फायरफ्लाई एयरोस्पेस के ब्लू घोस्ट लैंडर ने चांद पर सफल लैंडिंग कर ली है. यह लैंडर चांद के मेयर क्रिसियम क्षेत्र की एक प्राचीन ज्वालामुखी की ढलानों पर उतरा है. यह लैंडर क्यों खास है और किस मकसद से चांद पर गया है, आइए जानते हैं.
क्यों खास है यह प्राइवेट लैंडर?
ब्लू घोस्ट को चांद पर पहुंचाकर फ़ायरफ़्लाई एयरोस्पेस दुनिया की ऐसी पहली प्राइवेट कंपनी बन गई है जिसका स्पेसक्राफ्ट बिना दुर्घटना के चंद्रमा पर पहुंचा है. रूस, अमेरिका, चीन, भारत और जापान ही सिर्फ ऐसे देश हैं जो ब्लू घोस्ट के अलावा यह कर सके हैं. इनके अलावा जिन देशों ने भी ऐसा करने की कोशिश की है, उन्हें नाकामी मिली है.
लैंडिंग के ठीक 30 मिनट बाद ब्लू घोस्ट ने चांद की सतह से तस्वीरें प्रसारित करना शुरू कर दिया. पहली तस्वीर एक सेल्फी थी जो सूरज की चमक से कुछ हद तक अस्पष्ट थी. दूसरी फोटो में पृथ्वी को देखा जा सकता था जो अंतरिक्ष के सियाह आसमान में एक नीले बिंदू जैसी मालूम हो रही थी. यह मिशन दो सप्ताह तक चलने की उम्मीद है.
नासा के लिए क्यों खास है ब्लू घोस्ट?
फायरफ्लाई एयरोस्पेस का यह मिशन नासा के लिए खास था क्योंकि ब्लू घोस्ट नासा की कमर्शियल चंद्र पेलोड सर्विसेज (CLPS) पहल का हिस्सा है. आसान शब्दों में कहें तो नासा छोटे-मोटे उपकरणों को चांद पर पहुंचाने का काम प्राइवेट कंपनियों से करवाना चाहता है.
इससे न सिर्फ नासा का काम आसान और सस्ता होगा, बल्कि कंपनियों के बीच बेहतर तकनीक विकसित करने की होड़ भी बढ़ेगी. नासा ने लैंडर पर दस वैज्ञानिक और तकनीकी प्रयोगों की डिलीवरी के लिए 10.1 करोड़ डॉलर का भुगतान किया. साथ ही उपकरण के लिए अतिरिक्त 4.4 करोड़ डॉलर का भुगतान किया.
अगर ब्लू घोस्ट को अंतरिक्ष में भेजने के उद्देश्यों की बात करें तो इस लैंडर में चांद की मिट्टी के नमूने इकट्ठा करने के लिए एक वैक्यूम और सतह से 10 फीट नीचे तक तापमान मापने में सक्षम एक ड्रिल मौजूद है. इसमें चांद की धूल को खत्म करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक उपकरण भी शामिल है. यह नासा के अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों के सामने एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि वे अपने स्पेससूट और उपकरणों से चिपकी हुई धूल से जूझ रहे थे.
एपी की रिपोर्ट के अनुसार, ब्लू घोस्ट ने चांद की ओर जाते हुए पृथ्वी की कई तस्वीरें लीं. साथ ही उसने चांद पर पहुंचते ही उसकी गड्ढों भरी जमीन की भी तस्वीरें लीं. लैंडर के एक ऑनबोर्ड रिसीवर ने अमेरिकी जीपीएस और यूरोपीय गैलीलियो कॉन्सटलेशन (सैटलाइट्स का एक समूह) से सिग्नल भी प्राप्त किए हैं. इससे भविष्य में चांद पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स को रास्ते समझने में मदद मिलेगी.