
कैंसर का इलाज आज भी दुनिया के सबसे मुश्किल ट्रीटमेंट में से एक है. ट्रेडिशनल रेडियोथेरेपी का उपयोग दशकों से कैंसर के ट्रीटमेंट में हो रहा है, लेकिन इसके कई साइड इफेक्ट भी हैं, खासकर जब यह इलाज हेल्दी टिश्यू (tissues) को नुकसान पहुंचाता है. हालांकि, फ्लैश रेडियोथेरेपी नामक एक नई तकनीक कैंसर ट्रीटमेंट में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है. यह तकनीक ट्रेडिशनल रेडियोथेरेपी की तुलना में ज्यादा तेज, प्रभावी और सुरक्षित मानी जा रही है. कहा जा रहा है कि इसकी मदद से सेकेंडों में कैंसर ठीक किया जा सकता है.
क्या है फ्लैश रेडियोथेरेपी?
फ्लैश रेडियोथेरेपी एक एडवांस रेडियोथेरेपी टेक्नोलॉजी है, जिसमें रेडिएशन को एक सेकंड से भी कम समय में मरीज के शरीर में दिया जाता है. ट्रेडिशनल रेडियोथेरेपी में कैंसर सेल्स को खत्म करने के लिए कई सेशन लगते हैं, लेकिन इस नई तकनीक में कुछ ही सेशन में इलाज संभव है.
फ्लैश रेडियोथेरेपी में रेडिएशन की डोज (dose) पारंपरिक तरीकों से 300 गुना ज्यादा होती है. यह डोज रेडिएशन एक विशेष प्रभाव पैदा करता है जिसे FLASH प्रभाव कहा जाता है. इस प्रभाव के कारण ट्यूमर की कैंसर सेल्स खत्म होती हैं, लेकिन आस-पास के हेल्दी टिश्यू को कम नुकसान पहुंचता है.
ट्रेडिशनल रेडियोथेरेपी और फ्लैश रेडियोथेरेपी
ट्रेडिशनल रेडियोथेरेपी में मरीज को रेडिएशन सेशन की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी थकाने वाला हो सकता है. इसके विपरीत, फ्लैश रेडियोथेरेपी में कम सेशन में इलाज संभव है.
ट्रेडिशनल रेडियोथेरेपी |
फ्लैश रेडियोथेरेपी |
कई हफ्तों तक चलने वाले सेशन |
एक या कुछ सेशन में इलाज |
हेल्दी टिश्यू को नुकसान का खतरा |
हेल्दी टिश्यू को कम नुकसान |
साइड इफेक्ट जैसे थकान, स्किन की जलन और सूजन |
इलाज प्रक्रिया में तेजी और मरीज के लिए आरामदायक अनुभव |
कैसे काम करता है फ्लैश इफेक्ट?
फ्लैश रेडियोथेरेपी में अल्ट्रा-हाई डोज रेडिएशन बहुत ही तेज स्पीड से दिया जाता है. यह प्रक्रिया न केवल कैंसर सेल्स को प्रभावी ढंग से खत्म करती है बल्कि आसपास के नॉर्मल टिश्यू को भी बचाती है. इस तकनीक से ब्रेन कैंसर जैसे मामलों में भी हेल्दी टिश्यू को होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिल सकती है.
इंसानों पर हो चुका ट्रायल
फ्लैश रेडियोथेरेपी को अब तक जानवरों पर टेस्ट किया जा चुका है. इसके काफी सकारात्मक और सुरक्षित परिणाम सामने आए हैं. इसके बाद 2022 में इसका पहला ह्यूमन ट्रायल किया गया, जिसमें मेटास्टैटिक कैंसर (शरीर के दूसरे भागों में फैला हुआ कैंसर) से पीड़ित मरीजों पर रिसर्च की गई. इस टेस्ट के दौरान यह तकनीक न केवल सुरक्षित पाई गई, बल्कि दर्द कम करने में भी प्रभावी साबित हुई.
विशेषज्ञों की राय
यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी कैंसर सेंटर में रेडियोथेरेपी एक्सपर्ट डॉ. एमिली सी. डॉहर्टी कहती हैं, "हमारी स्टडी बताती है कि प्रोटॉन आधारित फ्लैश रेडियोथेरेपी एक प्रभावी तरीका हो सकता है, जो दर्द को कम करता है और ट्रेडिशनल रेडिएशन के साइड इफ्फेक्ट को कम करने की क्षमता रखता है."
डॉ. जॉन ब्रेनेमैन, जो फ्लैश रेडियोथेरेपी पर रिसर्च कर रहे हैं, कहते हैं, "क्योंकि फ्लैश रेडियोथेरेपी अल्ट्रा-हाई डोज पर दी जाती है, यह नॉर्मल टिश्यू को कम नुकसान पहुंचाती है. इससे हम कैंसर सेल्स को खत्म करने के लिए हाई डोज रेडिएशन दे सकते हैं, जिससे मुश्किल से मुश्किल ट्यूमर के इलाज में सफलता मिलने की संभावना बढ़ सकती है."
तकनीकी चुनौतियां
हालांकि फ्लैश रेडियोथेरेपी एक क्रांतिकारी तकनीक है, लेकिन इसके रास्ते में कई चुनौतियां हैं. जैसे- मौजूदा समय में जो रेडियोथेरेपी मशीनें हैं फ्लैश रेडिएशन देने में सक्षम नहीं हैं. इन नई मशीनों की लागत ज्यादा होने के कारण यह तकनीक अभी सभी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है. फ्लैश रेडियोथेरेपी को अभी और ट्रायल की जरूरत है. इसपर अभी और रिसर्च होनी बाकी है.
फ्लैश रेडियोथेरेपी कैंसर के इलाज की दुनिया में एक नई उम्मीद जगाती है. यह तकनीक ट्रेडिशनल रेडियोथेरेपी की खामियों को दूर करने का काम करेगी और इसकी मदद से मरीजों को तेजी से और सुरक्षित इलाज दिया जा सकेगा. (स्टडी लिंक)