साइंस लगातार आगे बढ़ रही है, जिसमें आए दिन नए नए इनोवेशन हो रहे हैं. लेकिन आज भी आर्टिफिशियल लाइफ बनाना एक बड़ा विचार है जिसे वैज्ञानिक और लेखक अक्सर तलाशते हैं. हम फिल्मों में देखते हैं कि कुछ लोग इंसानों के बनाए गए डरावने जीवों या प्यारे पालतू जानवरों की कल्पना करते हैं और इसके ऊपर कई फिल्में भी आ चुकी हैं. हालांकि, जहां सभी जीवित चीजें प्रकृति ने बनाई हैं, वहां अब आर्टिफिशियल लाइफ को भी फिट करने का विचार हो रहा है. मेडिकल की दुनिया में आर्टिफिशियल लाइफ को फिट करने को लेकर हाल ही में स्टडी हुई है.
जी हां, हाल ही में हुई स्टडी में पता चला है कि भविष्य में बीमारी ठीक करने के लिए दवा निगलने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसकी जगह आर्टिफिशियल लाइफ ले लेगी, जो अपने आप हमारे शरीर में जाकर किसी भी बीमारी को पहचानेगी और उसका इलाज करेगी.
बीमारियों से लड़ने पर हो रहा है काम
डेनमार्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चेनगुआंग लू और केंट स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हनबिन माओ एक स्पेशल मॉलिक्यूल पर काम कर रहे हैं जो डीएनए और पेप्टाइड्स के कुछ हिस्सों को मिक्स करता है. इस मॉलिक्यूल का उपयोग आर्टिफिशियल लाइफ फॉर्म को बनाने के लिए किया जा सकता है. उम्मीद लगाई जा रही है कि इसकी मदद से भीतर तरीके से बीमारियों से लड़ने में मदद मिल सकेगी.
वायरस को खत्म करने में मिलेगी मदद
स्टडी के मुताबिक, आर्टिफिशियल लाइफ फॉर्म बीमारी पैदा करने वाले वायरस के लिए एक प्राकृतिक दुश्मन की तरह काम करके मदद कर सकते हैं. जैसे कुछ जानवरों में प्राकृतिक शिकारी (Natural Predators) होते हैं, ये आर्टिफिशियल लाइफ फॉर्म हानिकारक वायरस को टारगेट कर सकते हैं और उनसे लड़ सकते हैं. इन्हें हम वायरल इंफेक्शन से बचाने के लिए वैक्सीन के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
कैसे करेगा ये काम?
रिसर्च में ये बताया गया है कि इन छोटे आर्टिफिशियल लाइफ फॉर्म की कल्पना बहुत छोटे रोबोट या मशीनों के रूप में की जा सकती है. ये एक तरह से बीमारियों के ट्रीटमेंट के लिए दवाएं या स्पेशल एलिमेंट ले जा सकते हैं. हम बीमारियों के इलाज में मदद के लिए उन्हें किसी व्यक्ति के शरीर में भेज सकते हैं.
10 साल लग सकते हैं इसे बनाने में
हालांकि, ये इतना आसान नहीं है. आर्टिफिशियल लाइफ फॉर्म बनाने में अभी भी लगभग 10 साल लग सकते हैं. इसमें एक तरह के बिल्डिंग ब्लॉक का सहारा लिया जाएगा. इनका उपयोग लू और उनके सहयोगी इस क्षेत्र में वायरल टीके और आर्टिफिशियल लाइफ बनाने के लिए करने वाले हैं. डीएनए और पेप्टाइड्स प्रकृति में सबसे जरूरी बायो मॉलिक्यूल में से कुछ हैं, जो डीएनए टेक्नोलॉजी और पेप्टाइड टेक्नोलॉजी को आज नैनोटेक्नोलॉजिकल टूलकिट में दो सबसे शक्तिशाली मॉलिक्यूलर बनाते है. जहां डीएनए हमें प्रोग्रामिंग पर सटीक कंट्रोल देता है, तो वहीं पेप्टाइड्स अलग-अलग केमिकल फंक्शन को लेकर काम करते हैं.
हेल्थकेयर इंडस्ट्री में हो सकती है बड़ी छलांग
चेनगुआंग लू का मानना है कि इन सभी प्रयासों से बीमार लोगों का बेहतर ट्रीटमेंट और और इलाज मिलने में मदद मिलेगी. उनका मानना है कि भविष्य में, हम इन बिल्डिंग ब्लॉक्स का उपयोग करके एडवांस मशीनें, वैक्सीन और यहां तक कि आर्टिफिशियल लाइफ फॉर्म्स भी बना सकते हैं. यह मेडिकल हेल्थकेयर इंडस्ट्री में एक बड़ी छलांग हो सकती है.