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चांद और मंगल के बाद अब Venus पहुंचेगा भारत.... साथ ही खोलेगा खुद का Space Station, जानें कौन से मिशन पर करने जा रहा है फोकस

शुक्र की सतह का तापमान 450°C से ऊपर चला जाता है. VOM में ग्रीनहाउस गैसों की उपस्थिति और शुक्र के सल्फ्यूरिक एसिड के बादल को लेकर स्टडी की जाएगी. हालांकि, भले ही शुक्र घने बादलों से ढका हुआ है, लेकिन रडार इमेजिंग से स्पेसक्राफ्ट इसकी सतह की स्टडी कर सकेगा. मिशन की मदद से ज्वालामुखीय गतिविधियों, टेक्टोनिक मूवमेंट और यह शुक्र पर कभी पानी था या नहीं, इसको लेकर जानकारी मिल सकेगी. 

Venu Planet (Representative Image) Venu Planet (Representative Image)
हाइलाइट्स
  • भारत का होगा खुद का स्पेस स्टेशन

  • शुक्र हो सकता है पृथ्वी की जुड़वां बहन 

भारत पिछले कई सालों से अलग-अलग स्पेस प्रोग्राम लॉन्च कर रहा है. इसी कड़ी में अब दो और मिशन पर काम शुरू हो गया है. वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM) और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS-1). वीनस ऑर्बिटर मिशन की मदद से भारत ये जानेगा कि आखिर देखते ही देखते ये ग्रह आग का गोला कैसे बन गया? साथ ही BAS-1 भारत का खुद का स्पेस स्टेशन होगा. 

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS-1) भारत के स्पेस इतिहास के सबसे बड़े प्रोजेक्ट में से एक है. इसका उद्देश्य भारत का पहला अपना स्पेस स्टेशन बनाना है. पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने स्टेशन के पहले मॉड्यूल को बनाने की मंजूरी दे दी है. ऐसा करने के बाद, भारत नासा (अमेरिका) और रोसकॉसमोस (रूस) जैसे इंटरनेशनल खिलाड़ियों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा. 

BAS-1, को 2035 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. ये एक मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन होगा जो पृथ्वी से 400-450 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करेगा. यह भारतीय एस्ट्रोनॉट्स के लिए एक घर जैसा होगा, जहां रहकर वे लंबे समय तक स्पेस  जुड़ी रिसर्च कर सकेंगे. 

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बता दें,  भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन गगनयान प्रोग्राम का ही हिस्सा है. अब, गगनयान प्रोग्राम में आठ मिशन शामिल हैं, जिन्हें 2028 तक पूरा किया जाना है. 

कैसा होगा भारतीय स्पेस स्टेशन?
भारतीय स्पेस स्टेशन में पांच मेटैलिक मॉड्यूल होंगे. इन्हें अलग-अलग उद्देश्यों जैसे रहने के लिए, रिसर्च करने के लिए, कम्युनिकेशन करने के लिए डिजाइन किया गया है. शुरू में इसे तीन एस्ट्रोनॉट के रहने के लिए इसे डिजाइन किया जाना था. अब इसमें कुछ बदलावों के बाद, लंबे समय तक चलने वाले मिशनों के लिए 3-4 एस्ट्रोनॉट और छोटे मिशनों के लिए छह एस्ट्रोनॉट के लिए डिजाइन किया जाएगा.

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (फोटो- NASA)
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (फोटो- NASA)

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) से प्रेरित होकर, BAS में एक कपोल होगा, एक खिड़की वाला मॉड्यूल जहां से एस्ट्रोनॉट पृथ्वी को देख सकेंगे और स्पेस स्टेशन के बाहर हो रही गतिविधियों की निगरानी कर सकेंगे. वहीं, BAS डॉकिंग और बर्थिंग सिस्टम से लैस होगा, जिससे स्पेसक्राफ्ट आसानी से स्टेशन से जुड़ सकेंगे. यह सिस्टम भविष्य के मिशनों के लिए जरूरी है, जिसमें क्रू रोटेशन, कार्गो डिलीवरी आदि. 

BAS बिजली पैदा करने के लिए रोल-आउट सोलर एरे (ROSA) तकनीक का उपयोग करेगा.

शुक्र है पृथ्वी की जुड़वां बहन 
जहां भारतीय स्पेस स्टेशन इंसानों को स्पेस में ले जाने पर केंद्रित है, वहीं भारत का शुक्र ऑर्बिटर मिशन (VOM) ग्रह नई खोज पर है. चंद्रमा और मंगल पर सफल मिशनों के बाद, भारत अब शुक्र की ओर अपनी नजरें गड़ाए हुए है, जिसे अक्सर पृथ्वी की "जुड़वां बहन" कहा जाता है. कहा जा रहा है कि शुक्र अब एक रहने योग्य, गर्म ग्रह बन गया है, जिसकी सतह का तापमान काफी ज्यादा है. इसपर सल्फ्यूरिक एसिड के घने बादल हैं.

वीनस ऑर्बिटर मिशन का उद्देश्य प्लेनेट साइंस के सबसे बड़े सवालों का जवाब देना है कि आखिर दो एक जैसे ग्रह इतने अलग कैसे हो सकते हैं. 

शुक्र की सतह का तापमान 450°C से ऊपर चला जाता है. VOM में ग्रीनहाउस गैसों की उपस्थिति और शुक्र के सल्फ्यूरिक एसिड के बादल को लेकर स्टडी की जाएगी. हालांकि, भले ही शुक्र घने बादलों से ढका हुआ है, लेकिन रडार इमेजिंग से स्पेसक्राफ्ट इसकी सतह की स्टडी कर सकेगा. मिशन की मदद से ज्वालामुखीय गतिविधियों, टेक्टोनिक मूवमेंट और यह शुक्र पर कभी पानी था या नहीं, इसको लेकर जानकारी मिल सकेगी. 

शुक्र ही क्यों?
शुक्र को अक्सर ग्रीनहाउस इफ़ेक्ट वाला ग्रह कहा जाता है. इसमें वैज्ञानिक ये स्टडी कर सकेंगे कि आखिर किसी ग्रह की जलवायु नियंत्रण से बाहर कैसे हो जाती है. पृथ्वी पर वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की चिंता को देखते हुए, शुक्र के जलवायु इतिहास को समझना जरूरी है. 

मिशन की समयावली और बजट
इसरो ने VOM को मार्च 2028 में लॉन्च करने का टारगेट रखा है. 1236 करोड़ रुपये के बजट के साथ, मिशन के लिए एक स्पेसक्राफ्ट बनाया जाएगा. इसमें ग्रह को स्टडी करने के लिए अलग-अलग डिवाइस लगाए जाएंगे. लगभग 824 करोड़ रुपये स्पेसक्राफ्ट पर खर्च किए जाएंगे, जबकि बची हुई राशि को लॉन्चिंग, कम्युनिकेशन और नेविगेशन के लिए लगाया जाएगा.