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Aeroponics: मिट्टी की बजाय हवा में आलू उगा रहे हैं कृषि वैज्ञानिक, 5 गुना ज्यादा होगी पैदावार

कृषि क्षेत्र में नई-नई तकनीकों के आने से किसानों को आगे बढ़ने के रास्ते मिल रहे हैं. हाइड्रोपोनिक्स के बाद अब कृषि वैज्ञानिक एयरोपोनिक्स तकनीक किसानों को सिखा रहे हैं.

Aeroponics Technique Aeroponics Technique
हाइलाइट्स
  • 5 गुना से ज्यादा होगी पैदावार

  • लटकती हुई जड़ों के जरिए दिए जाते हैं न्यूट्रिएंट्स

हरियाणा के कृषि वैज्ञानिक नई-नई तकनीक ईजाद करके लगातार कमाल कर रहे हैं. अब कृषि वैज्ञानिकों ने हवा में आलू उगाने वाली तकनीक एयरोपोनिक को ईजाद किया है. हरियाणा के करनाल में शामगढ़ स्थित पोटैटो टेक्नोलॉजी केंद्र में एयरोपोनिक तकनीक के जरिए अब बिना जमीन और मिट्टी के हवा में आलू उगा रहे हैं. 

इस तकनीक से किसानों की आय भी दोगूनी होगी. पंजाब, उत्तरप्रदेश, दिल्ली समेत कई राज्यों के किसान पोटैटो टेक्नोलॉजी केंद्र शामगढ़ में एयरोपोनिक तकनीक के बारे में जानकारी लेने के लिए पहुंच रहे है. 

5 गुना से ज्यादा होगी पैदावार
कृषि के क्षेत्र में विकास के लिए खेती की नई-नई तकनीकें आ रही हैं. इसी तरह एयरोपोनिक तकनीक के जरिए अब हवा में आलू उगाया जा रहा है। यह पोटैटो टेक्नोलॉजी केंद्र शामगढ़ का क्रांतिकारी कदम है. एयरोपोनिक तकनीक के जरिए आलू की पैदावार 5 गुना से ज्यादा होगी. इस पोटैटो सेंटर का इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर के साथ एक एमओयू हुआ है. इसके बाद सरकार से एयरोपोनिक प्रोजेक्ट की अनुमति मिल गई है.

हरियाणा के करनाल में बागवानी विभाग की देखरेख में आलू केंद्र इस तकनीक से खेती करने में अपना योगदान दे रहा है. इस तकनीक में शुरुआत में लैब से आलू हार्डनिंग यूनिट तक पहुंचते हैं. इसके बाद पौधे की जड़ों को बावस्टीन में डुबोते हैं ताकि इससे फंगस न लगे. इसके बाद बेड बनाकर, उसमें कॉकोपीट में इन पौधों को लगा दिया जाता है. इसके तकरीबन 10 से 15 दिन बाद इन पौधों को एयरोपोनिक यूनिट के अंदर लगा दिया जाता है. इसके बाद उचित समय के बाद आलू की फसल तैयार हो जाती है.

लटकती हुई जड़ों के जरिए दिए जाते हैं न्यूट्रिएंट्स 
आलू केंद्र करनाल के वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि एयरोपोनिक एक महत्वपूर्ण तकनीक है. इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि एयरोपोनिक्स यानी हवा में आलू को पैदा करना. उन्होंने बताया कि इस तकनीक में जो भी न्यूट्रिएंट्स पौधों को दिए जाते हैं, वह मिट्टी के जरिए नहीं बल्कि लटकती हुई जड़ों के जरिए दिए जाते हैं. इस तकनीक के जरिए आलू के बीजों का बहुत ही अच्छा उत्पादन कर सकते हैं जो किसी भी मिट्टी जनित रोगों से रहित होंगे. 

डॉ जितेंद्र ने बताया कि परंपरागत खेती के मुकाबले में इस तकनीक के जरिए ज्यादा संख्या में पैदावार मिलती है. आने वाले समय में इस तकनीक से अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की कमी पूरी की जा सकेगी. केंद्र में एक यूनिट में इस तकनीक से 20 हजार पौधे लगाने की क्षमता है. इससे आगे फिर करीब 8 से 10 लाख मिनी ट्यूबर्स या बीज तैयार किए जा सकते हैं. 

(कमलदीप की रिपोर्ट)