मेडिकल की दुनिया में भारत आए दिन नए-नए एक्सपेरिमेंट कर रहा है. इसी कड़ी में भारत हीमोफिलिया को लेकर एक नया ट्रायल कर रहा है. इसकी बदौलत जल्द ही जीन थेरेपी (Gene Therapy) से हीमोफिलिया (Haemophilia) का इलाज हो सकेगा. इसे लेकर देश में इंसानों पर इसका क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो गया है. इसकी सूचना केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने बुधवार को दी है. वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में 'हीमोफिलिया ए' के लिए जीन थेरेपी का पहला ह्यूमन ट्रायल किया गया है.
खून से जुड़ी बीमारी है हीमोफीलिया
हीमोफीलिया एक जेनेटिक डिसऑर्डर (Genetic Disorder) है. इसमें अगर व्यक्ति को चोट लग जाती है तो खून रुकता नहीं है बल्कि ज्यादा बहता है. इसमें खून के थक्के अच्छे से नहीं बन पाते हैं और चोट लगने पर खूब ज्यादा बहता है. हीमोफीलिया के दो मुख्य प्रकार हैं - ए और बी. इसमें हीमोफीलिया ए क्लॉटिंग फैक्टर VIII की कमी की वजह से होता है और हीमोफीलिया बी क्लॉटिंग फैक्टर IX की कमी के कारण. हर साल ये बीमारी लाखों लोगों को प्रभावित करती है. वर्तमान की बात करें, तो अभी इसका कोई भी इलाज नहीं है. हालिया इसके ट्रीटमेंट को लेकर दुनियाभर में अलग-अलग एक्सपेरिमेंट किए जा रहे हैं.
अभी किया जाता है क्लॉटिंग फैक्टर को रिप्लेस
हीमोफीलिया के ट्रीटमेंट के रूप में खून में जो क्लॉटिंग फैक्टर नहीं होता है उसको रिप्लेस यानि उसकी जगह कुछ और लगाया जाता है. इसमें मरीजों को बार-बार इंजेक्शन की आवश्यकता हो सकती है. इस तरह का ट्रीटमेंट काफी समय लेने वाला और असुविधाजनक हो सकता है. इसके अलावा, क्लॉटिंग फैक्टर कॉन्संट्रेट के लंबे समय तक उपयोग से शरीर इसके प्रति एंटीबॉडी बना सकता है. जिसकी वजह से क्लॉटिंग फैक्टर एक लेवल पर आकर बेअसर हो सकता है. इससे ट्रीटमेंट कम प्रभावी हो जाता है.
लेकिन, महंगे ट्रीटमेंट और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के कारण दुनिया के कई हिस्सों में इसके ट्रीटमेंट तक पहुंच सीमित रही है.
जीन थेरेपी को लेकर ट्रायल शुरू
अब जीन थेरेपी को लेकर ट्रायल शुरू हो गए हैं. जीन थेरेपी में रोगी की सेल्स में क्लॉटिंग कारक फैक्टर को ट्रांसफर किया जाता है. ये थेरेपी नॉन-पैथोजेनिक और नॉन-रिप्लिकेटिंग अडेनो एसोसिएट वायरस (AAV) के ट्रांसफर पर आधारित है. इसमें वायरल डीएनए को एक बायोइंजीनियर जीन कैसेट से ट्रांसफर किया जाता है. ऐसा करने के बाद जो क्लॉटिंग फैक्टर खून में नहीं होता है उसका उत्पादन शरीर में होने लगता है.