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Explainer: क्या स्पेसक्राफ्ट में होता है कोई ब्रेक? धरती से स्पेस तक और फिर स्पेस से वापस धरती पर कैसे आते हैं एस्ट्रोनॉट?

Earth to space and then back to Earth: स्पेसक्राफ्ट के पृथ्वी पर लौटने में लगने वाला समय कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे मिशन और स्पेसक्राफ्ट का प्रकार, स्टार्टिंग पॉइंट आदि. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS), जो समुद्र तल से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की परिक्रमा करता है, से लौटने में आमतौर पर लगभग 3.5 घंटे लगते हैं.

Spacecraft reentry (Photo: NASA) Spacecraft reentry (Photo: NASA)

21 जुलाई 1961 को लगभग 15 मिनट के लिए, एस्ट्रोनॉट गस ग्रिसम को ऐसा लगा जैसे वे दुनिया के टॉप पर हैं… और असल में वे थे भी. 
गस ग्रिसम ने 100 मील की ऊंचाई से अटलांटिक महासागर में छलांग मारी थी. ये छलांग पैराशूट के साथ मारी गई थी. 

दरअसल, स्पेस से जुड़ी कोई भी चीज काफी आकर्षण का विषय रहती है. एस्ट्रोनॉट पृथ्वी से कैसे जाते हैं? क्या कोई ब्रेक लगा होता है? वे सुरक्षित रूप से घर वापस कैसे आते हैं? ये सभी सवाल लगभग सभी के मन में रहते हैं. स्पेस इंडस्ट्री में लॉन्चिंग एक चमत्कार जैसा है, लेकिन एस्ट्रोनॉट की वापसी की यात्रा भी उतनी ही प्रभावशाली और मुश्किल होती है.

आज हम यही जानेंगे कि आखिर स्पेसक्राफ्ट स्पेस से पृथ्वी पर कैसे लौटते हैं, सुरक्षित उतरने के लिए किन तकनीकों का उपयोग किया जाता है, पैराशूट क्यों जरूरी होते हैं और पानी में उतरना क्यों प्राथमिकता दी जाती है? 

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स्पेस से पृथ्वी की यात्रा
अपना मिशन पूरा करने के बाद, चाहे वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर हो या किसी कैप्सूल में स्पेस की विशालता का पता लगा रहे हों, एस्ट्रोनॉट को पृथ्वी पर लौटना होता है. वापसी की इस यात्रा को “रीएंट्री” कहा जाता है, जिसमें कई चुनौतियां होती हैं. स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी के वायुमंडल में सटीक एंगल, स्पीड और जरूरी एक्विमेंट के साथ एंट्री करनी होती है. इसकी मदद से ही सेफ लैंडिंग होती है. 

इसमें एक सटीक गणना और सावधानीपूर्वक योजना शामिल होती है. यह वापसी वाली यात्रा केवल "पृथ्वी पर वापस गिरने" की नहीं होती है. स्पेसक्राफ्ट को एक ट्राजेक्टोरी का पालन करना होता है. अगर बहुत तेजी से स्पेसक्राफ्ट एंट्री करें तो यह पूरी तरह से जल सकता है. वहीं, अगर एंगल या स्पीड बहुत कम है, तो ये वाला स्पेस में भी जा सकता है. 

(फोटो- AP)
(फोटो- AP)

पृथ्वी पर लौटने में कितना समय लगता है?
स्पेसक्राफ्ट के पृथ्वी पर लौटने में लगने वाला समय कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे मिशन और स्पेसक्राफ्ट का प्रकार, स्टार्टिंग पॉइंट आदि. उदाहरण के लिए, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS), जो समुद्र तल से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की परिक्रमा करता है, से लौटने में आमतौर पर लगभग 3.5 घंटे लगते हैं.

इसके विपरीत, चंद्रमा के मिशनों जैसे अपोलो प्रोग्राम से चंद्र कक्षा से पृथ्वी पर लौटने में लगभग तीन दिन लगे थे. मंगल ग्रह जैसे दूर के ग्रहों से लौटने में कई महीने लग सकते हैं, क्योंकि ग्रहों के बीच की दूरी काफी ज्यादा होती है.

स्पेसक्राफ्ट को कैसे रोका जाता है?
रीएंट्री का सबसे आकर्षक पहलू यह है कि स्पेसक्राफ्ट की स्पीड कैसे कम की जाती है. जब एक स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी की निचली ऑर्बिट (LEO) में होता है, तो यह लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे (17,500 मील प्रति घंटे) की स्पीड से यात्रा करता है. इतनी तेज स्पीड पर, स्पेसक्राफ्ट को रोकना कोई आसान काम नहीं है.

स्पेसक्राफ्ट में कारों या साइकिलों की तरह नॉर्मल ब्रेक नहीं होते हैं. इसके बजाय, वे एटमोस्फेरिक ड्रैग, हीट शील्ड्स, रेट्रो-रॉकेट्स और पैराशूट पर निर्भर होते हैं.

(फोटो- Reuters)
(फोटो- Reuters)

1. एटमोस्फेरिक ड्रैग: जब स्पेसक्राफ्ट धरती के एटमॉस्फेयर में एंट्री करता है, तो हवा काफी घनी होती है जिससे काफी मुश्किल हो सकती है. इससे फ्रिक्शन पैदा होता है जिससे स्पेसक्राफ्ट धीमा करने में मदद मिलती है. हालांकि, इससे काफी गर्मी भी पैदा होती है—लगभग 1,650 डिग्री सेल्सियस (3,000 डिग्री फारेनहाइट) तक. यही वह जगह है जहां हीट शील्ड्स काम आती हैं.

2. हीट शील्ड्स: स्पेसक्राफ्ट को रीएंट्री के समय जलने से बचाने के लिए, इसे एक हीट शील्ड से लैस किया जाता है. ये शील्ड्स आमतौर पर विशेष सामग्रियों से बने होते हैं जो गर्मी को एब्सॉर्ब करते हैं. जिससे स्पेसक्राफ्ट और उसके यात्रियों को खतरनाक तापमान से बचाया जा सके. 

3. रेट्रो-रॉकेट्स: कुछ मिशनों में, रीएंट्री से ठीक पहले यात्रा की विपरीत दिशा में छोटे रॉकेट दागे जाते हैं. ये रेट्रो-रॉकेट स्पेसक्राफ्ट की गति को कम करने और का काम करते हैं.

4. पैराशूट: जब स्पेसक्राफ्ट काफी धीमा हो जाता है और पृथ्वी के करीब होता है, तो पैराशूट तैनात किए जाते हैं. ये विशाल पैराशूट स्पीड को और कम करने में मदद करते हैं. जब स्पेसक्राफ्ट सतह से कुछ किलोमीटर ऊपर होती है तो तब इसे खोल दिया जाता है. बिना पैराशूट के, स्पेसक्राफ्ट जमीन या पानी से इतनी तेजी से टकराएगा कि यह यात्रियों के लिए जानलेवा हो सकता है.

पैराशूट का उपयोग क्यों किया जाता है?
जब स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग होती है तब उसकी स्पीड 320 किलोमीटर प्रति घंटे (200 मील प्रति घंटे) होती है. पैराशूट इसे लगभग 27 किलोमीटर प्रति घंटे (17 मील प्रति घंटे) तक धीमा करने का काम करता है.

इसके लिए कई सारे पैराशूटों का इस्तेमाल किया जाता है. ताकि अगर एक काम न करे, तो दूसरे काम आ जाएं. कई स्पेस मिशनों में, स्पेसक्राफ्ट पहले एक छोटा ड्रोग पैराशूट तैनात करता है, इसके बाद मुख्य पैराशूटों को तैनात किया जाता है, जिससे आसानी से लैंडिंग होती है. 

पानी में लैंडिंग क्यों होती है?
पानी में लैंडिंग को "स्प्लेशडाउन," कहा जाता है. इसके लिए बड़े-बड़े महासागरों को चुना जाता है. क्योंकि पानी में की जाने वाली लैंडिग ठोस भूमि की तुलना में ज्यादा आसान होती है. पानी में लैंडिंग से चोट या स्पेसक्राफ्ट को नुकसान का जोखिम काफी कम हो जाता है. दूसरा, बड़े महासागर में जमीन की तुलना में ज्यादा स्पेस होता है. 

बता दें, नासा के अपोलो मिशन चंद्रमा से लौटने के बाद प्रशांत महासागर में उतरे थे. एस्ट्रोनॉट के लिए बाकायदा रिकवरी टीम्स जहाजों और हेलीकॉप्टरों के साथ तैयार रहती है. हालांकि एडवांस स्पेसक्राफ्ट जैसे स्पेसएक्स का क्रू ड्रैगन और बोइंग का स्टारलाइनर जमीन पर लैंड होने के लिए डिजाइन किए गए हैं. फिर भी कई मिशनों के लिए वाटर लैंडिंग एक सुरक्षित विकल्प बना हुआ है.