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mission space : क्या आप जानते हैं आज ही के दिन अंतरिक्ष में भेजा गया था यह कुत्ता, जिसके बाद मनुष्यों के जाने का खुला था रास्ता

क्या आप जानते हैं कि मनुष्य से पहले एक जानवर अंतरिक्ष में जा चुका है. जी हां, आज ही के दिन यानि 3 नवंबर 1957 को लाइका नाम के कुत्ते को अंतरिक्ष में भेजा गया था, जो आसमान के पार जाने वाला पहला जीवित प्राणी था. जिसके बाद मनुष्यों के अंतरिक्ष में जाने का रास्ता खुला था.

अंतरिक्ष में जाने वाला लाइका कुत्ता. अंतरिक्ष में जाने वाला लाइका कुत्ता.
हाइलाइट्स
  • नीले आसमान के पार गया पहला जीवित प्राणी था लाइका

  • स्पेसक्राफ्ट का तापमान सामान्य से ज्यादा हो जाने के कारण लाइका की हो गई थी मौत 

  • यूरी गैगरिन स्पेस पर पहुंचने वाले दुनिया के पहले इंसान थे 

क्या आप जानते हैं कि मनुष्य से पहले एक जानवर अंतरिक्ष में जा चुका है. जी हां, आज ही के दिन यानि 3 नवंबर 1957 को लाइका नाम के कुत्ते को अंतरिक्ष में भेजा गया था, जो आसमान के पार जाने वाला पहला जीवित प्राणी था. जिसके बाद मनुष्यों के अंतरिक्ष में जाने का रास्ता खुला था. हालांकि तत्कालीन सोवियत संघ (अभी का रूस) इससे पहले मानव रहित अंतरिक्ष यान तो भेज चुका था लेकिन इंसान को वहां भेजने का जोखिम उठाने से पहले जीवित प्राणी के रूप में एक कुत्ते को अंतरिक्ष में भेजने का फैसला किया. दुखद यह रहा कि स्पेसक्राफ्ट का तापमान सामान्य से ज्यादा हो जाने के कारण लाइका की मौत हो गई थी. स्पूतनिक-2 पांच महीने बाद 14 अप्रैल, 1958 को धरती पर लौटते समय टुकड़ों में बंट गया था.  लाइका को एक तरह से परीक्षण के लिए भेजा गया था. इस मिशन का एक मकसद यह जानना था कि अंतरिक्ष में किसी इंसान को भेजना कितना सुरक्षित है और वहां की स्थिति कैसी है. सोवियत संघ के यूरी गैगरिन दुनिया के पहले इंसान थे जो स्पेस में गए थे. साल 1961 में वॉस्टॉक-1 अंतरिक्ष यान के जरिए गैगरिन स्पेस में पहुंचे थे. 

अंतरिक्षयान में तकनीकी खामी थी
लाइका की मौत मानवता के लिए बड़ा बलिदान साबित हुआ. मिशन में शामिल वैज्ञानिकों को अंदाजा था कि लाइका का धरती पर जिंदा वापस लौटना संभव नहीं है. उन्होंने जो अंतरिक्षयान बनाया था, उसमें तकनीकी खामी थी. तकनीकी रूप से वह रॉकेट इतना सक्षम नहीं था कि धरती पर वापस लौट सके. दरअसल सोवियत लीडर निकिता ख्रुशचोफ की डिमांड पर जल्दबाजी में रॉकेट को तैयार किया गया था. जल्दबाजी की वजह से उसको तकनीकी रूप से ज्यादा सक्षम नहीं बनाया जा सका था. पहले जो योजना बनाई गई थी, उसमें पूरा इंतजाम करना था ताकि लाइका वापस धरती पर जिंदा लौट सके. ज्यादा अडवांस्ड स्पूतनिक-2 के निर्माण पर काम चल रहा था लेकिन दिसंबर से पहले उसको तैयार करना संभव नहीं था. ख्रोशचोफ ने इस मिशन को प्रौपेगैंडा के तौर पर देखा. वह चाहते थे कि बोल्शेविक क्रांति की 40वीं जयंती पर मिशन को लॉन्च करना ज्यादा फायदेमंद रहेगा.

अंतरिक्ष में और भी जानवर
1947 में काफी ऊंचाई पर रेडिएशन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए V2 रॉकेट में फ्रूट फ्लाइज को भेजा गया था. सोवियत रूस ने अल्बिना नाम की एक डॉगी को भी भेजा था. वह अंतरिक्ष कक्ष के आधे रास्ते तक जाकर लौट आई थी. कुछ स्रोतों का कहना है कि स्पूतनिक-2 में पहले अल्बिना को ही भेजनी की योजना थी लेकिन लाइका को उसको शांत स्वाभाव के कारण चुना गया था.

स्पूतनिक-2 का साइज वॉशिंग मशीन से थोड़ा बड़ा था
स्पूतनिक-2 का साइज एक वॉशिंग मशीन से थोड़ा बड़ा था. लाइका को स्पूतनिक-2 के अंदर जीवित रखने के लिए प्रशिक्षण देने के मकसद से उसे छोटे-छोटे पिंजरों में प्रशिक्षण दिया गया था. लाइका को अंतरिक्ष मिशन पर जाने से पहले पूरा प्यार दिया गया.

मौत के असल कारण को छिपाया
लाइका की मौत का असल कारण लोगों से छिपाया गया था. लोगों के बीच इसको लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैल गई थीं. कुछ कहते थे कि लाइका ने उस जहर को खा लिया था जिसे उसको बेहोश करने के लिए तैयार किया गया था, कुछ  कहते थे कि दम घुटने से उसकी मौत हुई तो कुछ का कहना था कि बैट्री फेल होना मौत का कारण बना. असल कारण 2002 में सामने आया जब सोवियत वैज्ञानिक दिमित्री मालाशेनकोव ने वर्ल्ड स्पेस कांग्रेस में सच्चाई से पर्दा हटाया. उन्होंने कहा कि अंतरिक्षयान का तापमान बढ़ने के कारण उड़ान के चौथे सर्किट के दौरान सात घंटे के अंदर लाइका की मौत हो गई थी. अंतरिक्षयान को जल्दी में बनाया गया था इसलिए उसमें तापमान नियंत्रण प्रणाली सही से लगाई नहीं जा सकी थी जिस वजह से सिस्टम फेल हो गया. स्पूतनिक-2 गर्म से गर्म होता गया और 100 डिग्री फारेनहाइट तापमान को पार कर गया. अंतरिक्षयान के अंदर का तापमान काफी बढ़ने के बाद एक बार फिर लाइका भयभीत हो गई और फिर वैज्ञानिकों ने उसकी धड़कन को तेज से तेज होते सुना. अंत में उन्होंने उसकी धड़कन को शांत होते सुना.