मंगल ग्रह पर जाने की बात पिछले कई साल से चल रही है. सभी इसे लेकर काफी उत्साह में हैं कि आखिर हम कब मंगल ग्रह पर जाएंगे? लेकिन अब ये प्लान जल्द ही मुमकिन होने वाला है. जी हां, हम कुल 45 दिन में मंगल ग्रह पर पहुंच सकेंगे. इसके लिए पूरी योजना तैयार की जा रही है. दरअसल, मंगल ग्रह पर आम लोगों को ले जाने वाले प्लान पर काम करने वाले और कोई नहीं बल्कि एलन मस्क हैं. कुछ साल पहले एलन मस्क ने कहा था कि मानव प्रजातियों को जीवित रहने के लिए इंटरप्लेनेटरी होना चाहिए. इसी पर अब उनकी कंपनी काम कर रही है.
एक ग्रह से दूसरे ग्रह जा सकेंगे
बताते चलें कि इंटरप्लेनेटरी का मतलब है कि आप एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर आसानी से जा सकें. इसके लिए एलन मस्क काम भी कर रहे हैं. वे एक ऐसा स्पेसशिप का बनाने का काम कर रहे हैं, जो इंसानों को को पहले चंद्रमा और फिर मंगल ग्रह पर ले जा सकती है. इस साल के आखिर में स्टारशिप का पहला ऑर्बिटल लॉन्च होने वाला है.
हालांकि, गेड प्लेनेट या जिसे हम मंगल ग्रह भी कहते हैं, वो काफी दूर है. वहां पहुंचने के लिए जो समय लगेगा, उसे कम करने के लिए अलग अलग वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. वे इस समय को कुछ महीनों से घटाकर कुछ दिनों तक करने का प्लान कर रहे हैं. वर्तमान में, 39,600 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से यात्रा करने वाले अंतरिक्ष यान को मंगल तक पहुंचने में लगभग सात महीने लगते हैं. लेकिन प्रस्तावित न्यूक्लियर थर्मल एंड न्यूक्लियर इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन (NTNEP) आपको 45 दिनों में मंगल ग्रह पर ले जा सकता है.
कैसे हो सकेगा ऐसा मुमकिन
नासा इनोवेटिव एडवांस्ड कॉन्सेप्ट्स (NIAC) ने एक ऐसा न्यूक्लियर कांसेप्ट चुना है जिसकी बदौलत वे इंटरस्टेलर स्पीड को काफी बढ़ा सकते हैं, और आज की स्पीड की तुलना में तेज गति से मंगल ग्रह पर ले जा सकते हैं. बायमॉडल न्यूक्लियर प्रोपल्शन सिस्टम, वेव रोटोर टॉपिंग साइकिल का इस्तेमाल करके केमिकल रॉकेट परफॉरमेंस को दोगुना कर सकता है. इसकी मदद से केमिकल रॉकेट परफॉरमेंस को 900 सेकंड से 10000 सेकंड तक किया जा सकता है.
नासा भी करेगा इसके लिए मदद
नासा इसके लिए 12,500 डॉलर की आर्थिक मदद भी करने वाला है. यूनिवर्स टुडे के अनुसार, फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में हाइपरसोनिक्स प्रोग्राम एरिया लीड प्रो. रेयान गोसे ने इस कॉन्सेप्ट के बारे में बताया है.
गौरतलब है कि स्पेसक्राफ्ट जो मंगल ग्रह के लिए जाता है, सात महीने से अधिक समय तक स्पेस के वैक्यूम में रहता है. वह भी तब जब वे पृथ्वी और मंगल एक दूसरे के सबसे करीब होते हैं, जो कि 26 महीने होता है. अगर इसका समय कम कर दिया जाए तो मिशन की लागत को भी कम किया जा सकता है.