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Artificial Rain: आईआईटी कानपुर ने ढूंढा दिल्ली के प्रदूषण का समाधान, जानिए कैसे आर्टिफिशियल बारिश कर सकती है मदद

IIT Kanpur's Artificial Rain: दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ रहा है. अस्पतालों में सांस की समस्या वाले मरीजों की संख्या बढ़ रही है.

IIT Kanpur IIT Kanpur
हाइलाइट्स
  • आर्टिफिशियल बारिश के लिए चाहिए अनुकूल मौसम

  • प्रदूषण से सेहत पर असर 

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) कानपुर के पास जहरीली हवा से जूझ रही दिल्ली और उसके पड़ोसी क्षेत्रों के लिए एक क्विक-फिक्स सॉल्यूशन है- "आर्टिफिशियल बारिश," जो प्रदूषकों और धूल को धोने में मदद कर सकती है. आईआईटी कानपुर के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मणिंद्र अग्रवाल ने कहा कि आर्टिफिशियल या कृत्रिम बारिश अच्छी गुणवत्ता वाली हवा के लिए तरस रहे एनसीआर के नागरिकों को अस्थायी ही सही, लेकिन एक सप्ताह तक राहत दे सकती है. 

यह संस्थान कृत्रिम बारिश के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने पर पांच साल से ज्यादा समय से काम कर रहा है. और आखिरकार इस साल जुलाई में किए गए सफल परीक्षणों के बाद यह तैयार है. IIT कानपुर को क्लाउड सीडिंग के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (Directorate General of Civil Aviation) की मंजूरी मिल गई है. अग्रवाल ने मीडिया को बताया, ''हमारे पास क्लाउड सीडिंग अटैचमेंट के साथ विमान उड़ाने के लिए सरकारी अधिकारियों से आवश्यक अनुमति है. ''

आर्टिफिशियल बारिश के लिए चाहिए अनुकूल मौसम
अपनी ओर से, IIT कानपुर दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश का संचालन करने के लिए तैयार है. लेकिन कृत्रिम बारिश कराने के लिए क्लाउड सीडिंग के लिए जरूरी मौसम संबंधी स्थितियों जैसे आवश्यक नमी वाले बादल, हवाएं आदि की भी जरूरत होती है. कृत्रिम बारिश कराने की चेकलिस्ट में न केवल अनुकूल मौसम संबंधी स्थितियां शामिल हैं बल्कि अधिकारियों से कई एप्रुवल भी शामिल हैं. 

अग्रवाल ने कहा कि आईआईटी कानपुर 2018 से कृत्रिम बारिश पर काम कर रहा है और अब इस स्तर पर आगे बढ़ चुका है कि यह राष्ट्रीय राजधानी को वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने में मदद करने के लिए आश्वस्त है. संस्थान ने मई माह में ही कानपुर में ट्रायल शुरू कर दिया था. सबसे पहले, इसने नमी से भरे बादलों में नमक मिश्रण को स्प्रे करने के लिए एक पंप का उपयोग किया ताकि छोटे कणों को बारिश की बूंदों में संघनित किया जा सके और कृत्रिम रूप से बारिश की जा सके. अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने पांच बार ट्रायल किया और एक बार को छोड़कर, वे हर बार बारिश करने में सफल रहे. 

प्रदूषण से सेहत पर असर 
फिर 2019 में, संस्थान ने खुद को अपग्रेड किया. इसने क्लाउड सीडिंग के लिए अमेरिका से फ्लेयर सेट मंगवाए. फ़्लेयर सेट को बादलों में फ़्लेयर शूट करने के लिए फ्लाइट के विंग्स से जोड़ा जाता है. उन्होंने कहा कि फिर परीक्षण शुरू होने से पहले कोविड महामारी हो गई और उनका प्रोजेक्ट आगे बढ़ गया. उन्होंने फिर से इस साल जुलाई में परीक्षण शुरू किया. अग्रवाल ने कहा, पिछले महीने तक उन्होंने पांच परीक्षण पूरे कर लिए हैं.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अस्पतालों में प्रदूषण का असर देखा जा रहा है, जिससे सांस लेने में दिक्कत की शिकायत करने वाले मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. पिछले कुछ दिनों में सांस की समस्याओं वाले रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. यह एक ऐसी समस्या है जो हर साल सामने आती है. अब ऐसी कई स्टडी हैं जो संकेत देती हैं कि वायु प्रदूषण से हृदय रोग, स्ट्रोक और यहां तक ​​कि फेफड़ों के कैंसर जैसी लॉन्गटर्म बीमारियां हो सकती हैं. पिछले लगभग 10 दिनों से, दिल्ली का AQI ज्यादातर गंभीर या खतरनाक श्रेणी में रहा है.