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सौरमंडल के बाहर के रहस्यों का पता लगाने का भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा नया तरीका

एक्सोप्लैनेट के रिफलेक्टेड प्रकाश को पोलराइज़ करके उसके माप के जरिए एक्सोप्लैनेटरी एटमॉस्फेयर की रासायनिक संरचना और अन्य गुणों के राज़ों पर से पर्दा उठाया जा सकता है. इससे पहले  रेडियल वेलोसिटी और ट्रांजिट फोटोमेट्री की मदद से केवल किनारे वाले ग्रहों का ही पता लगाया जा सकता था.

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हाइलाइट्स
  • दशकों पहले दिया गया था सुझाव

  • पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर अरित्रा चक्रवर्ती ने खोजा ये तरीका 

  • पुराने तरीकों से बेहतर

पिछले कुछ महीनों में एस्ट्रोनॉमर्स ने पता लगाया है कि हमारे सौर मंडल की तरह भी कई अन्य तारों के चारों ओर भी कई ग्रह घूम रहे हैं और अब तक ऐसे लगभग 5000 एक्सोप्लैनेट खोजे जा चुके हैं. इस संबंध में भारतीय वैज्ञानिकों को एक नई उपलब्धि हासिल हुई है. भारतीय एस्ट्रोनॉमर्स ने एक्स्ट्रा सोलर प्लैनेट्स के एटमॉस्फियर को समझने का एक नया तरीका खोजा है. एक्स्ट्रा प्लैनेट्स या एक्सोप्लैनेट्स उन्हें कहते हैं जो सूर्य के बजाय किसी दूसरे तारे की परिक्रमा करते हैं. इनके अध्ययन के लिए ईजाद किए गए इस नई तकनीक में ‘लाइट के पोलराइज़ेशन’ को इस्तेमाल में लाने की बात कही गई है.

दशकों पहले दिया गया था सुझाव 

लगभग कुछ दशक पहले, भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए), बैंगलोर के वैज्ञानिक सुजान सेनगुप्ता ने सुझाव दिया था कि यंग हॉट प्लैनेट्स के थर्मल रेडिएशन और दूसरे तारों की परिक्रमा करने वाले ग्रहों, जिन्हें एक्स्ट्रा सोलर प्लैनेट्स या एक्सोप्लैनेट के रूप में जाना जाता है, के रिफलेक्टेड प्रकाश को पोलराइज़ करके उसके माप के जरिए एक्सोप्लैनेटरी एटमॉस्फेयर की रासायनिक संरचना और अन्य गुणों के राज़ों पर से पर्दा उठाया जा सकता है. ये पोलराइज़ेशन संकेत या लाईट स्कैटरिंग इंटेंसिटी में बदलाव को मौजूदा उपकरणों के साथ देखा जा सकता है और इनका इस्तेमाल करके सौर मंडल से बाहर के ग्रहों की स्टडी में हेल्प मिल सकती है.

पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर अरित्रा चक्रवर्ती ने खोजा ये तरीका 

हाल ही में, सुजान सेनगुप्ता के साथ काम कर रही आईआईए की पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर अरित्रा चक्रवर्ती ने एक विस्तृत ‘थ्री डिमेंशनल न्यूमेरिकल मेथड’ विकसित कर एक्सोप्लैनेट के पोलराइजेशन को ऑब्ज़र्व किया. दूसरे प्लैनेट्स की तरह ही एक्सोप्लैनेट अपने तेजी गति से घूमने के नेचर के कारण थोड़े तिरछे होते हैं. इसके अलावा, तारे के चारों ओर अपनी स्थिति के आधार पर, प्लैनेटरी डिस्क का केवल एक हिस्सा ही तारे की रोशनी से प्रकाशित होता है. प्रकाश क्षेत्र की यह विषमता नॉन जीरो पोलोराइजेशन को जन्म देती है. अरित्रा चक्रवर्ती ने कहा कि यह शोध उपयुक्त सेंसिटिविटी के साथ उपकरणों को डिजाइन करने और ऑब्जर्वर्स को गाइड करने में मदद करेगा.

पुराने तरीकों से बेहतर 

इससे पहले  रेडियल वेलोसिटी और ट्रांजिट फोटोमेट्री की मदद से केवल किनारे पर देखे जाने वाले ग्रहों का पता लगाया जा सकता था. इन पुराने और लोकप्रिय तरीकों के विपरीत, यह पोलरिमेट्रिक विधि कक्षीय झुकाव कोणों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ परिक्रमा करने वाले एक्सोप्लैनेट का पता लगा कर उनकी आगे जांच कर सकती है. इस प्रकार, निकट भविष्य में पोलारिमेट्रिक तकनीक एक्सोप्लैनेट के अध्ययन के लिए एक नया रास्ता बनाएगी और पारंपरिक तकनीकों के कई लिमिटेशंस को दूर कर वैज्ञानिकों की मदद करेगी.