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International Space Station: यहां से हर दिन 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं अंतरिक्ष यात्री… स्पेस में किसने और क्यों बनाई थी ये तैरती हुई लैब? 

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा स्ट्रक्चर है. इसे दुनिया के अलग-अलग देशों ने मिलकर बनाया है. इस स्टेशन का मुख्य निर्माण 1998 और 2011 के बीच हुआ. लेकिन अभी भी इसे और विकसित किया जा रहा है. नियमित रूप से इसमें नए मिशन और एक्सपेरिमेंट जोड़े जा रहे हैं.

International Space Station (Photo/NASA) International Space Station (Photo/NASA)
हाइलाइट्स
  • किसी एक देश का मालिकाना हक नहीं

  • ISS एक रिसर्च की जगह 

अंतरिक्ष का कुछ प्रतिशत हिस्सा ही ऐसा है जिसके बारे में वैज्ञानिक अब तक जान पाए हैं. अभी भी ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में वैज्ञानिक खोज करने में लगे हैं. हालांकि, धरती से ऐसा कर पाना काफी मुश्किल है. इसके लिए अंतरिक्ष में ही इंसानों ने अपना अड्डा बना रखा है. इसे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन कहा जाता है.  नवंबर 2000 से, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) की बदौलत हमेशा कम से कम एक व्यक्ति तो अंतरिक्ष में रहा ही है. 

ये एक तैरती हुई लेबोरेटरी है, जिसने पिछले कितने सालों में इंसानों के लिए एक स्पेस लैब का काम किया है. आईएसएस केवल एक साइंटिफिक रिसर्च प्लेटफॉर्म नहीं है बल्कि भविष्य में होने वाले स्पेस टूरिज्म को आकार देने का काम रहा है. 

अब इसी ISS पर भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स फंसी हैं. साथ ही उनके साथी एस्ट्रोनॉट बुच विलमोर भी फंसे हैं. मौजूदा समय में ISS में लोगों की कुल संख्या 19 हो गई है. ऐसे में ज्यादातर लोगों के मन में सवाल है कि आखिर ये सभी लोग वहां कैसे रह रहे हैं? क्या कोई भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में रह सकता है? इसे क्यों बनाया गया था? इसपर मालिकाना हक किसका है?
 
स्पेस में बना आज तक का सबसे बड़ा स्ट्रक्चर है ये 
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा स्ट्रक्चर है. इसे दुनिया के अलग-अलग देशों ने मिलकर बनाया है. इस स्टेशन का मुख्य निर्माण 1998 और 2011 के बीच हुआ. लेकिन अभी भी इसे और विकसित किया जा रहा है. नियमित रूप से इसमें नए मिशन और एक्सपेरिमेंट जोड़े जा रहे हैं. दुनियाभर के एस्ट्रोनॉट ने लिए ये जगह एक रिसर्च-एक्सपेरिमेंट लैब और स्पेस एक्सप्लोरेशन के रूप में काम कर रही है. 

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सबसे पहले ISS का विचार शीत युद्ध के समय में उभरा. इस दौरान अंतरिक्ष यात्रा करने वाले देशों ने पृथ्वी की निचली ऑर्बिट में एक लैब बनाने का सोचा और उन्हें इसके एक स्पेस स्टेशन की जरूरत महसूस हुई. अमेरिका और रूस, जो कभी स्पेस की दौड़ में एक दूसरे के विरोधी हुआ करते थे, दोनों ने मिलकर इस पूरे प्रोजेक्ट को लीड किया. धीरे-धीरे दूसरे देश भी इसमें जल्द ही शामिल हो गए. 

स्पेस स्टेशन
स्पेस स्टेशन

किसी एक देश का मालिकाना हक नहीं है इसपर 
ISS का एक सबसे रोचक पहलू यह है कि इसपर किसी एक देश का मालिकाना हक नहीं है. इसके बजाय, यह पांच स्पेस एजेंसियों का एक मिला जुला प्रोजेक्ट है. इन पांच देशों में- NASA (अमेरिका), Roscosmos (रूस), यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA), जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA), और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी (CSA) शामिल हैं. ये सभी एजेंसियां ISS का संचालन, फंडिंग और उपयोग का मैनेजमेंट देखती हैं. 

स्पेस डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, ISS को चलाने के लिए नासा को लगभग $3 बिलियन प्रति वर्ष खर्च होता है. ये इसके ह्यूमन स्पेसफ्लाइट बजट का लगभग एक तिहाई है. सभी देश इसमें अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से योगदान देते हैं. कुल मिलाकर, 15 राष्ट्र ISS में योगदान करते हैं, और मई 2022 तक, 20 देशों के 258 व्यक्तियों ने स्टेशन का दौरा किया है. इसमें अमेरिका और रूस के अंतरिक्ष यात्री प्रमुख थे.

ISS एक रिसर्च की जगह 
ISS पृथ्वी की सतह से लगभग 250 मील (402 किलोमीटर) की ऊंचाई पर स्थित है और लगभग 17,500 मील प्रति घंटे (28,000 किलोमीटर प्रति घंटा) की गति से यात्रा करता है. यह हर 90 मिनट में पृथ्वी के चारों ओर एक पूरा चक्कर लगाता है, जिसका मतलब है कि स्टेशन पर मौजूद अंतरिक्ष यात्री हर दिन 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं. धरती से देखा जाए तो ये स्टेशन एक चमकती हुई चीज जैसा दिखता है.

ISS एक रिसर्च की जगह 
ISS पृथ्वी की सतह से लगभग 250 मील (402 किलोमीटर) की ऊंचाई पर स्थित है और लगभग 17,500 मील प्रति घंटे (28,000 किलोमीटर प्रति घंटा) की गति से यात्रा करता है. यह हर 90 मिनट में पृथ्वी के चारों ओर एक पूरा चक्कर लगाता है, जिसका मतलब है कि स्टेशन पर मौजूद अंतरिक्ष यात्री हर दिन 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं. धरती से देखा जाए तो ये स्टेशन एक चमकती हुई चीज जैसा दिखता है.  

International Space Station का आकार एक छोर से दूसरे छोर तक 356 फीट (109 मीटर) है, और इसके सोलर पैनल एक एकड़ क्षेत्र को कवर करते हैं. अंदर, स्टेशन में 13,696 घन फीट रहने की जगह है. इसमें सात अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सोने की जगह, दो बाथरूम, एक जिम, और कूपोला, 360 डिग्री का व्यू देने वाली एक  विंडो शामिल है. 

International Space Station पर, अंतरिक्ष यात्री अलग-अलग चीजों पर कई एक्सपेरिमेंट करते हैं. इसमें बायोलॉजी, फिजिक्स, एस्ट्रोनॉमी और मटेरियल साइंस शामिल है. यह एकमात्र माइक्रोग्रैविटी लैब, जिसमें 2,500 से ज्यादा एक्सपेरिमेंट किए जा सकते हैं.

एस्ट्रोनॉट को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं?
1. लिविंग क्वार्टर:
अंतरिक्ष यात्रियों के पास अलग-अलग स्लीपिंग पॉड होते हैं जिसमें स्लीपिंग बैग, व्यक्तिगत वस्तुओं और कंप्यूटर रखे होते हैं. इसके अलावा, माइक्रोग्रैविटी में काम करने के लिए डिजाइन किए गए बाथरूम भी हैं. 

2. भोजन और पानी: आईएसएस में एक गैली (रसोई क्षेत्र) भी है. यहां अंतरिक्ष यात्री भोजन तैयार करते हैं और खाते हैं. ज्यादा खाने को लंबे समय तक स्टोर करने के लिए फ्रीज में रख दिया जाता है या पैक किया जाता है. अंतरिक्ष यात्री इस खाने को फिर हाइड्रेट करते हैं और खाते हैं. 

3. स्वास्थ्य और व्यायाम: स्पेस में ग्रेविटी नहीं होती है, इससे कई बार मांसपेशियों और हड्डियों में कमजोरी आ सकती है. ऐसे में एस्ट्रोनॉट के एक्सरसाइज करने के लिए ट्रेडमिल, स्टेबल बाइक और कई मशीनें रखी गई हैं. 

कैसे बनाया गया था इसे?
ISS अब तक शुरू किए गए सबसे मुश्किल इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट में से एक है. इसे बनाने में एक दशक से ज्यादा तक का समय लगा था. आईएसएस को स्पेस में ही टुकड़े-टुकड़े करके बनाया गया था. इसमें कई मॉड्यूल शामिल हैं. लैब के लिए अलग, रहने वाले क्वार्टर और डॉकिंग स्टेशन अलग. इन मॉड्यूलों को व्यक्तिगत रूप से स्पेस में लॉन्च किया गया और फिर ऑर्बिट में इकट्ठा किया गया.

इसे बनाने का काम 1998 में शुरू हुआ था. आईएसएस को पूरी तरह से निचली पृथ्वी की ऑर्बिट (पृथ्वी से लगभग 400 किमी ऊपर) में इकट्ठा किया गया था. हर मॉड्यूल को स्पेस शटल या रूसी सोयुज रॉकेट द्वारा ले जाया गया था. अंतरिक्ष यात्रियों ने इसके लिए स्पेसवॉक किया और स्पेस में इन मॉड्यूलों को जोड़ने और इकट्ठा करने के लिए रोबोटिक हथियारों का इस्तेमाल किया.