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Tooth-Regrowing Project: नहीं होना पड़ेगा शर्मिंदा! फिर से उग सकेंगे दांत, वैज्ञानिक कर रहे हैं ऐसी दवा पर काम 

Tooth-Regrowing Project: क्लिनिकल ट्रायल में अगर ये दवा सफल हो जाती है तो 2030 तक इसे रेगुलेटरी अप्रूवल मिल सकता है. डेंटल इंडस्ट्री में ये एक बहुत बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकती है.

Tooth-Regrowing Project Tooth-Regrowing Project
हाइलाइट्स
  • अगले साल शुरू होंगे क्लीनिकल ट्रायल 

  • एनोडोंटिया और पार्शियल एनोडोंटिया को टारगेट किया जाएगा 

आने वाले कुछ समय में किसी को भी अपने टूटे दांतों को लेकर शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा. जापान में वैज्ञानिक एक नई दवा पर काम कर रहे हैं जिससे दांत फिर से उग सकेंगे. जापान में एक डेंटल मेडिसिन प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है. जापान की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इसका लक्ष्य दुनिया का पहला टूथ-रीग्रोइंग ट्रीटमेंट विकसित करना है.  

एनोडोंटिया और पार्शियल एनोडोंटिया को टारगेट किया जाएगा 

डेंटल मेडिसिन प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने वाले है इसके लिए सबसे पहले क्लीनिकल ट्रायल होगा. जिसमें एनोडोंटिया वाले रोगियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. ये वो स्थिति होती है जिसमें दांत पूरी तरह से गायब होते हैं. या पार्शियल यानि आंशिक एनोडोंटिया, जिसमे कुछ दांत गायब होते हैं. इस दवा के आ जाने से पहली बार लोगों के दांत फिर से उग सकेंगे. 

अगले साल शुरू होंगे क्लीनिकल ट्रायल 

दरअसल, अगले साल जुलाई में जापान में क्लिनिकल ट्रायल शुरू होने वाले हैं. इन ट्रायल में ये दवा सफल हो जाती है तो 2030 तक दांत दोबारा उगाने वाली दवा के लिए रेगुलेटरी अप्रूवल मिल सकता है. डेंटल इंडस्ट्री में ये एक बहुत बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकती है. 

मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट किटानो अस्पताल के डॉ. कात्सु ताकाहाशी इस नई दांत के उगने वाली थ्योरी से काफी उत्साहित हैं. उनके मुताबिक, अगर एक ऐसी दवा बन जाती है तो ये एक सपने जैसा होगा. ऐसी दवा बनाना जिससे दांत उग आए ये अपने आप सभी डेंटल डॉक्टर्स का सपना है. 

सफर नहीं था आसान

हालांकि, यहां तक का सफर इतना आसान नहीं रहा. डॉ. कात्सु की यात्रा 1991 में जापान के क्योटो यूनिवर्सिटी में मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान शुरू हुई. उनकी रिसर्च टीम ने यूएसएजी-1 प्रोटीन को टारगेट करने के लिए एक एंटीबॉडी बनाई, उनका मानना ​​​​था कि इस प्रोटीन को रोकने से दांतों के अतिरिक्त विकास को बढ़ावा मिल सकता है. 2018 में लैब एक्सपेरिमेंट्स में उन्हें आशाजनक परिणाम देखने को मिले. चूहों में जब इस एंटीबॉडी-आधारित दवा को टेस्ट किया गया तो उसके अंदर नए दांत बनने लगे. 

दांत उगाने में भी हैं कई चुनौतियां 

हालांकि ये रिसर्च काफी आशाजनक है. लेकिन दोबारा उगे दांतों के आकार, जगह और संख्या को नियंत्रित करने में चुनौतियां हो सकती हैं. चूंकि प्रयोग जानवरों के मॉडल पर किए गए थे, इसलिए मनुष्यों पर ये कितना सफल होगा इसे लेकर अभी कहा नहीं जा सकता है. अगर भविष्य में ये दवा सफल साबित होती है, तो दांतों से जुड़ी सभी बीमारी को ठीक किया जा सकेगा.