scorecardresearch

Neuralink Technology: इस तकनीक से बिना छुए चला सकते हैं स्मार्टफोन और कंप्यूटर, जानें इंसानों के दिमाग को पढ़ने वाली न्यूरो टेक्नोलॉजी के बारे में 

Neuralink Technology: न्यूरो टेक्नोलॉजी के बारे में एक बार फिर से चर्चा होने लगी है. इस तकनीक से बिना छुए स्मार्टफोन और कंप्यूटर चला सकेंगे. इंसानों के दिमाग को पढ़ने वाली इस टेक्नोलॉजी को न्यूरालिंक कहा जाता है.

Neuralink Neuralink
हाइलाइट्स
  • बिना छुए चला सकते हैं स्मार्टफोन और कंप्यूटर,

  • दिमाग को पढ़ सकेंगे न्यूरो टेक्नोलॉजी से

साइंस की दुनिया में आए दिन नए-नए अविष्कार होते रहते हैं. इसी तरह इंसानों के दिमाग को पढ़ने के लिए न्यूरोटेक्नोलॉजी पर काम हो रहा है. 2019 में एलन मस्क ने बताया था कि उनकी कंपनी न्यूरालिंक न्यूरो टेक्नोलॉजी पर काम कर रही है. पिछले सात साल में, कंपनी ब्रेन में इम्प्लांट करने के लिए एक कंप्यूटर चिप बना रही है, जो दिमाग के हजारों न्यूरॉन्स की सक्रियता पर नजर रख सकती है. इसे चिप को आधिकारिक तौर पर "ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस" (BCI) कहा जा रहा है. हालांकि, अब बहस ये चल है कि क्या सचमुच में कोई ऐसी चिप बनाई जा सकती है जो ब्रेन को पढ़ सके? 

द मैट्रिक्स फिल्म जैसा कॉन्सेप्ट है ये

दरअसल, एलन मस्क इंसानों के दिमाग को कंप्यूटर से लिंक करना चाहते हैं ताकि हमारे अंदर जो इन्फॉर्मेशन और यादें हैं उन्हें डाउनलोड किया जा सके. ये कुछ कुछ 1999 की साइंस फिक्शन फिल्म "द मैट्रिक्स" के जैसा कॉन्सेप्ट है. इस टेक्नोलॉजी से अंधेपन और पैरालिसिस जैसी बीमारियों वाले लोगों के मन को पढ़ा जा सकेगा. दरअसल, कुछ साल पहले कंपनी न्यूरालिंक ने एक बंदर का अपने दिमाग से पिंग पोंग खेलने का वीडियो शेयर किया था. जिसके बाद एलन मस्क ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि भविष्य की इस टेक्नोलॉजी को साल के आखिर तक इंसानों में टेस्ट किया जा सकता है.

क्या है न्यूरालिंक? 

दरअसल, न्यूरालिंक एक गैजेट है जिसे न्यूरोसर्जन रोबोटिक्स का उपयोग करके सर्जरी से इंसानों के ब्रेन में डालेंगे. इस प्रक्रिया में, लिंक नाम के एक चिपसेट को दिमाग में इम्प्लांट किया जाता है. इसमें इलेक्ट्रोड से जुड़े कई इंसुलेटेड तार होते हैं जिनका उपयोग इस पूरे प्रोसेस में किया जाता है. इतना ही नहीं बल्कि इससे स्मार्टफोन और कंप्यूटर को बिना छुए भी चलाया जा सकता है. 

कैसे काम करती है न्यूरालिंक? 

यह समझने से पहले कि न्यूरालिंक कैसे काम करती है, इससे पहले इंसानों के दिमाग के पीछे के विज्ञान को समझना जरूरी है. दरअसल, हमारे ब्रेन में न्यूरॉन्स होते हैं जो मांसपेशियों, नर्व, ग्लैंड और दूसरी न्यूरॉन सेल्स सहित शरीर में सेल्स को संकेत देती हैं. हर न्यूरॉन तीन भागों से बना होता है जिन्हें डेन्ड्राइट, सोमा (सेल बॉडी) और एक्सोन कहा जाता है. हर पार्ट का अपना काम है. जैसे डेन्ड्राइट सिग्नल रिसीव करता है. सोमा इन सिग्नल को प्रोसेस करता है. एक्सोन सिग्नल को दूसरी सेल्स तक पहुंचाता है. 

सिनैप्सिस की मदद से ही न्यूरॉन्स एक दूसरे से जुड़े होते हैं जो न्यूरोट्रांसमीटर छोड़ते हैं. इन केमिकल पदार्थों को फिर दूसरे न्यूरॉन सेल के डेन्ड्राइट में भेजा जाता है जिससे न्यूरॉन्स में करंट का फ्लो होता है. इलेक्ट्रोड जो न्यूरालिंक का हिस्सा हैं. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक डिवाइस को सीधे ब्रेन में इम्प्लांट किया जाता है क्योंकि इसे सिर के बाहर रखने से ब्रेन द्वारा पैदा किए गए सिग्नल्स को सही तरीके से डिटेक्ट नहीं किया जा सकेगा.  

न्यूरालिंक क्या करता है?

न्यूरालिंक का उपयोग एन्सेफैलोपैथी को ऑपरेट करने के लिए किया जा सकता है. इसे इंसानों के ब्रेन और टेक्नोलॉजी के बीच एक संबंध के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसका मतलब है कि पैरालिसिस से पीड़ित लोग अपने फोन और कंप्यूटर को सीधे अपने दिमाग से आसानी से चला सकते हैं. इसका मुख्य उद्देश्य टेक्स्ट या वॉइस मैसेज के जरिए लोगों को कम्यूनिकेट करने में मदद करना है.