कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट की पहचान सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में जीनोम सर्विलांस के जरिए की गई थी. इसके लिए जीनोम मैपिंग की जाती है. दुनिया में कई ऐसे देश हैं जो अपने देश की नागरिकों की जीनोम मैपिंग करके उनके यूनिक जेनेटिक ट्रेट को समझने में लगे हुए हैं. ताकि किसी भी बीमारी के प्रति उनकी संवेदनशीलता का पता लगाकर दवाइयां बनाई जा सकें.
दरअसल, अगर किसी के सार्स-कोव-2 सैंपल से S-जीन गायब होता है तो इससे ओमिक्रॉन की उपस्थिति का पता लगाया जाता है. अलग-अलग देशों में जीनोमिक सिक्वेंसिंग का उपयोग इसी S-जीन को जांचने के लिए किया जा रहा है.
जीनोमिक सिक्वेंसिंग क्या है?
दरअसल, जीनोमिक सिक्वेंसिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से वैज्ञानिक किसी भी जीव या सेल टाइप के पूरे जेनेटिक मेक-अप का पता लगाते हैं. इसके माध्यम से कोरोना वायरस के जेनटिक मेकअप को नोट किया जा सकता है और उसकी निगरानी की जा सकती है. जीनोम हमारी सेल के अंदर जो जिनोमिक मटेरियल होता है जैसे आरएनए, डीएनए होता है इसके माध्यम से हम जान सकते हैं किसको कौन सी बीमारी हो सकती है, या किसका शरीर किस बीमारी के प्रति ज्यादा संवेदनशील है. किन बीमारियों का पहले पता लगाया जा सकता है, ये सभी पता लगाया जा सकता है.
SARS CoV-2 वायरस जेनेटिक मटेरियल के मुख्य भागों में ORF1a प्रोटीन, ORF1b प्रोटीन, स्पाइक प्रोटीन और दूसरे छोटे जीन जैसे E, N, M और Rd Rp शामिल होते हैं.
ओमिक्रॉन में पाए गए हैं 50 म्यूटेशन्स
आपको बता दें, इस प्रक्रिया के माध्यम से ही आज ओमिक्रॉन के 50 से अधिक वेरिएंट का पता लगाया जा चुका है. एएनआई के अनुसार, डांग्स लैब के निदेशक डॉ नवीन डांग बताते हैं कि "अलग-अलग वेरिएंट्स का मतलब है कि एक या अधिक जीन में म्युटेशन हुआ है. ओमिक्रॉन में बहुत बड़ी संख्या में म्यूटेशन हुए हैं. इसमें लगभग 50 म्यूटेशन पाए गए हैं. इनमें से लगभग 30 स्पाइक प्रोटीन में हैं.
जीनोम सिक्वेंसिंग कैसे की जाती है?
जीनोम सिक्वेंसिंग लैब में वायरस पार्टिकल से जेनेटिक मटेरियल को RNA के फॉर्म में आइसोलेट किया जाता है. इसे डीएनए में बदला जाता है और इसके सीक्वेंस का विश्लेषण किया जाता है. सार्स-कोव-2 के RNA में करीब 30,000 मोलेक्युल्स होते हैं जिनकी अपनी अलग-अलग प्रॉपर्टीज होती हैं. इन मोलेक्युल्स को देखकर वैज्ञानिक उस वायरस के जीनोम के सीक्वेंस को निर्धारित करते हैं.
इसके बाद वे आखिर में इस सीक्वेंस की तुलना पिछले स्ट्रेन के साथ करते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह एक स्ट्रेन नया है या पुराना ही है. इस प्रकार वायरस में हुए म्यूटेशन का पता लगाया जाता है.
दुनिया भर के वैज्ञानिक अपने जीनोम सीक्वेंस रिजल्ट्स को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटाबेस में पब्लिश करते हैं, जिसके माध्यम से अलग-अलग सरकारों द्वारा कोविड-19 की स्थिति पर वैश्विक जागरूकता को एक दिशा दी जाती है.
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