मानव शरीर से निकाले जाने के बाद लीवर आमतौर पर 12 घंटे बाद तक ही जीवित रहता है. हालांकि, ज्यूरिख के वैज्ञानिकों की एक टीम ऐसा कमाल कर दिखाया है जहां एक लीवर तीन दिन तक एक मशीन के अंदर जीवित रहा और टीम उसे ट्रांसप्लांट करने में सफल रही.
स्विस टीम ने नेचर बायोटेक्नोलॉजी पत्रिका (Nature Biotechnology) को बताया कि मशीन ने वैज्ञानिकों को अंग की जीवन क्षमता को तीन दिनों तक बढ़ाने की अनुमति दी और इसे 10 दिन तक भी बढ़ाया जा सकता है. इस उपलब्धि में यूनिवर्सिटी अस्पताल ज्यूरिख (UHZ), ईटीएच ज्यूरिख (ETH Zurich) और ज्यूरिख विश्वविद्यालय के बीच सहयोग शामिल था.
24 घंटे से अधिक रहेगा सुरक्षित
यूएचजेड के प्रोफेसर पियरे-एलैन क्लावियन ने कहा, "हमारी चिकित्सा से पता चलता है कि छिड़काव मशीन में लीवर का इलाज करके, मानव अंगों के काम करने की कमी को कम करना और जीवन बचाना संभव है." UHZ के प्रोफेसर पियरे-एलैन क्लावियन (Pierre-Alain Clavien) ने कहा, "हमारी चिकित्सा से पता चलता है कि परफ्यूशन मशीन में लीवर का इलाज करके, मानव अंगों के काम करने की कमी को कम करना और जीवन बचाना संभव है." इन मशीनों के जरिए लीवर जैसे अंगों को 24 घंटे से अधिक तक सुरक्षित रखना संभव हो गया है.
खराब लीवर का किया गया ट्रांसप्लांट
टीम एक लीवर को ट्रांसप्लांट करने में सफल रही जिसे मूल रूप से बहुत खराब गुणवत्ता वाला माना जाता रहा था. ऐसा करने के लिए वैज्ञानिकों ने मल्टी-डे परफ्यूशन के माध्यम से लीवर मेटाबॉलिज्म को अनुकूलित किया. आमतौर पर इन प्रक्रियाओं को करने में समय का दवाब रहता है क्योंकि लीवर जितना ज्यादा शरीर के बाहर रहता है उतनी ज्यादा उसकी लाइफ कम होती जाती है.
कैसे करता है काम?
हालांकि परफ्यूजन मशीन मानव शरीर के बाहर लीवर की लाइफ को बढ़ाने में सक्षम है. मशीन में एक पंप हृदय के रूप में कार्य करता है. एक ऑक्सीजनेटर फेफड़ों की जगह लेता है और एक डायलिसिस यूनिट एक किडनी का कार्य करती है. नॉर्मोथर्मिक परफ्यूजन के जरिए अंग को निरंतर खून की सप्लाई दी जा सकती है.
स्विस ट्रांसप्लांट सूची के मुताबिक नया लीवर एक कैंसर रोगी को मिला है, जिसको डोनर से चार दिन पहले ही हटा लिया गया था. बता दें कि डोनर एक 29 वर्षीय महिला थी जिसकी मई 2021 में मृत्यु हो गई थी. रोगी 12 दिनों बाद अस्पताल छोड़ने में सक्षम था और एक साल बाद भी उनकी हालत ठीक है. रोगी ने कहा,"मैं जीवन रक्षक अंग पाकर बहुत आभार महसूस कर रहा हूं. मेरे तेजी से बढ़ते ट्यूमर के कारण, मुझे उचित समय के भीतर वेटिंग लिस्ट से लीवर मिलने की बहुत कम संभावना थी."
अभी और रिसर्च की आवश्यकता
इस नई मशीन के जरिए रिसर्च टीम को उन डोनर ऑर्गन की संख्या को कम करने में मदद मिलेगी जिन्हें बेकार समझकर छोड़ दिया जाता है. दरअसल टिसूज और ऑर्गन्स को कम तापमान में संरक्षित करने से सेल को काफी नुकसान हो सकता है. अब तक परिणाम बहुत आशाजनक लग रहे हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए अधिक रोगियों के साथ लंबी अवधि के लिए और अधिक रिसर्च की आवश्यकता है. ETH Zurich के प्रोफेसर मार्क टिबिट ने कहा, "इस परियोजना में शामिल जटिल जैव चिकित्सा चुनौतियों को हल करने के लिए अलग-अलग अध्ययन की आवश्यकता है और यही मेडिसिन का भविष्य है."
Liver4Life प्रोजेक्ट में अगला कदम अन्य रोगियों पर प्रक्रिया की समीक्षा करना और बहुकेंद्रीय अध्ययन के रूप में इसकी प्रभावकारिता और सुरक्षा को जांचना है. अगर ये सफल होती है तो वैज्ञानिक एक आपातकालीन प्रक्रिया जैसे अंग प्रत्यारोपण को एक योजना योग्य वैकल्पिक सर्जरी में बदलने में सक्षम होंगे. इसके अलावा अन्य लोग जो इस पर शोध कर रहे हैं वो दवाओं, अणुओं और हार्मोन के जरिए इसका इलाज ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.