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परमाणु बम के जनक Robert Oppenheimer के पीएचडी गाइड Max Born ने IISc में किया था काम, 15000 रुपए के साथ रहने के लिए मिला था घर

परमाणु बम के जनक रॉबर्ट ओपेनहाइमर के पीएचडी गाइड और मशहूर गणितज्ञ मैक्स बॉर्न बेंगलुरु के IISc में 6 महीने तक पढ़ाया था. इसके लिए बॉर्न को 15 हजार रुपए पेमेंट किए गए थे. ये रकम उस समय कैंब्रिज के मानदेय से ज्यादा थी, जहां वो अस्थाई पद पर थे.

साल 1937 में बेंगलुरु में मैक्स बॉर्न अपनी पत्नी हेडी के साथ भारतीय परिधान में (Photo/Wikipedia) साल 1937 में बेंगलुरु में मैक्स बॉर्न अपनी पत्नी हेडी के साथ भारतीय परिधान में (Photo/Wikipedia)

साइंटिस्ट रॉबर्ट ओपेनहाइमर बायोपिक की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है. इस फिल्म में परमाणु बम बनाने से लेकर उनकी जिंदगी के कई पहलुओं को दिखाया गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ओपेनहाइमर के पीएचडी गाइड और मशहूर गणितज्ञ मैक्स बॉर्न ने भारत में अपनी जिंदगी के 6 महीने बिताए थे. सीबी रमन की कोशिशों की बदौलत बॉर्न ने बेंगलुरु के आईआईएससी में पढ़ाया था.

15 हजार रुपए के साथ मिला था घर-
परमाणु बम के जनक ओपेनहाइमर के पीएचडी गाइड और क्वांटम फिजिक्स के वैज्ञानिक मैक्स बॉर्न को आईआईएससी के कार्यकाल के लिए 15 हजार रुपए पेमेंट किए गए थे. इतना ही नहीं, बॉर्न और उनकी पत्नी को रहने के लिए आईआईएससी ने एक बंगला भी दिया था. आपको बता दें कि बॉर्न को दी गई रकम उस समय के कैंब्रिज के मानदेय से ज्यादा थी, जहां बॉर्न अस्थाई पद पर थे.

ओपेनहाइमर के पीएचडी गाइड थे बॉर्न-
साल 1926 में मैनहट्टन प्रोजेक्ट की अगुवाई करने से कई साल पहले ओपेनहाइमर मैक्स बॉर्न की निगरानी में गॉटिंगन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की थी. ओपेनहाइमर ने गॉटिंगन यूनिवर्सिटी जाने के लिए कैंब्रिज छोड़ दिया था. गॉटिंगन यूनिवर्सिटी उस समय सैद्धांतिक फिजिक्स के लिए दुनिया की बेहतरीन केंद्रों में से एक था. यहां रहने के 3 दशक बाद बॉर्न को फिजिक्स का नोबल पुरस्कार मिला था.

IISc को थी वर्ल्ड क्लास विद्वानों की जरूरत-
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक आईआईएससी की त्रैमासिक पत्रिका 'कनेक्ट' के अनुसार आईआईएससी की स्थापना के करीब 25 साल बाद साल 1933 में सीवी रमन को डायरेक्टर बनाया गया था. उस समय संस्थान में 4 डिपार्टमेंट जनरल कमेस्ट्री, ऑर्गेनिक केमिस्ट्री, बॉयो केमिस्ट्री और इलेक्ट्रिकल टेक्नोलॉजी के थे. रिपोर्ट के मुताबकि पत्रिका के दिसंबर 2022 के अंक में बताया गया कि सीवी रमन के मुख्य कामों में फिजिक्स डिपार्टमेंट की स्थापना करना था, जिसकी सिफारिश सरकार की नियुक्त दो समीक्षा समितियों ने किया था. ये समितियां पोप समिति (1921) और सेवेल समिति (1931) थी. सीवी रमन ने फौरन फिजिक्स डिपार्टमेंट की स्थापना की. हालांकि इसमें वो एकमात्र फैकल्टी मेंबर थे. उन्होंने फिजिक्स में अनुसंधान शुरू किया. लेकिन उन्होंने महसूस किया कि अगर बेंगलुरु को फिजिक्स का वर्ल्ड क्लास सेंटर बनाना है तो इसके लिए वर्ल्ड क्लास विद्वानों की जरूरत पड़ेगी. दरअसल सीवी रमन आईआईएससी एटॉमिक फिजिक्स का सेंटर बनाना चाहते थे.

6 महीने के लिए IISc आए थे बॉर्न-
जब आईआईएससी में डायरेक्टर के तौर पर सीवी रमन का कार्यकाल शुरू हुआ, उसी समय जर्मनी में नाजी पार्टी का शासन शुरू हुआ. जर्मनी से यहूदियों को भगाया जा रहा था. सीवी रमन ने हिटलर के अत्याचार से बचने के लिए भाग रहे मशहूर वैज्ञानिकों को अपने संस्थान में भर्ती करने की रणनीति बनाई. टीओआई की रिपोर्ट के मुताबहिक इसका जिक्र सीवी रमन के भतीजे एस. रामासेन ने 'करंट साइंस' के एक लेख में किया है.
इसके बाद रमन ने बॉर्न को आईआईएससी में आमंत्रित किया. कई चिट्ठियों के आदान-प्रदान के बाद 17 जनवरी 1935 को बॉर्न को सैद्धांतिक फिजिक्स में रीडर के पद के लिए नियुक्ति पत्र भेजा गया. यह एक अक्टूबर 1935 से अगले 6 महीने के लिए एक विशेष नियुक्ति थी. बॉर्न 28 सितंबर 1935 को अपनी पत्नी हेदी के साथ आईआईएससी पहुंचे.
हालांकि सीवी रमन ने बॉर्न को आईआईएससी में स्थाई पद का ऑफर दिया था. लेकिन 52 साल के बॉर्न उम्र और भारत के क्लाइमेट का हवाला देकर इस ऑफर को ठुकरा दिया.

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