नासा और इसरो के संयुक्त उपक्रम से बना निसार सैटेलाइट अब तैयार है. यह सैटेलाइट जमीन और बर्फ की सतहों का अधिक विस्तार से अध्ययन करने में मदद करेगा. इसके भारत रवाना होने में बस कुछ ही दिन और रह गए हैं. निसार सैटेलाइट की कैलिफोर्निया से बेंगलुरु रवानगी से पहले नासा में विदाई समारोह रखा गया. इसरो के अधिकारियों ने नारियल फोड़ कर इसकी सफलता की कामना की.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने भारत में भेजे जाने से पहले नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) उपग्रह के अंतिम इलेक्ट्रिसिटी टेस्ट की निगरानी की. सोमनाथ ने शुक्रवार को अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया स्थित नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) का दौरा किया. उन्होंने कहा, यह मिशन एक विज्ञान उपकरण के रूप में रडार की क्षमता का एक शक्तिशाली प्रदर्शन होगा. हमें पृथ्वी की गतिशील भूमि और बर्फ की सतहों का पहले से कहीं अधिक विस्तार से अध्ययन करने में मदद करेगा.
2014 में नासा और इसरो में बनी थी सहमति
इसरो और नासा ने 2014 में 2,800 किलोग्राम वजनी उपग्रह बनाने के लिए हाथ मिलाया था. मार्च 2021 में इसरो ने जेपीएल द्वारा निर्मित एल-बैंड पेलोड के साथ एकीकरण के लिए भारत में विकसित अपने एस-बैंड एसएआर पेलोड को नासा को भेजा था. दोनों देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों ने भविष्य में भी एक साथ मिलकर कई नए प्रोजेक्ट पर काम करने की हामी भरी है. इसमें अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट के अलावा दूसरे ग्रहों पर मिशन भी शामिल होंगे. दोनों देशों के शीर्ष अधिकारियों के बीच इसे लेकर सहमति भी बन चुकी है. हाल में ही भारत और अमेरिका के अधिकारियों ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को लेकर बैठक भी की थी.
निसार में दो रडार प्रणालियां
2021 की शुरुआत से JPL के इंजीनियर और टेक्नीशियन NISAR की दो रडार प्रणालियों के इंट्रिग्रेशन और टेस्ट पर काम कर रहे हैं.जेपीएल ने एल-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार बनाया, यह जंगलों के भीतर से भी सतह को देखने की क्षमता रखता है. एस-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार इसरो का है, जिसमें 700 किमी ऊंचाई से किसी खेत में लगी फसल को भी पहचानने की क्षमता है. यह रडार पृथ्वी पर माइक्रोवेव फेंकेंगी, जब ये लौटेंगी तो एक एंटीना इन्हें ग्रहण करेगा. निसार में इसके लिए ड्रम की तरह दिखने वाला 40 फुट व्यास का एक रिफ्लेक्टर एंटीना लगा है. पृथ्वी की सतह के पर्यवेक्षण के लिए निसार सिंगल प्रोसेसिंग तकनीक इंटरफेरोमेट्री सिंथेटिक अपर्चर रडार (इन-सार) का उपयोग करेगा. यह उपग्रह तीन साल तक डाटा जनरेट करेगा.
अगले साल किया जाएगा प्रक्षेपित
विशेष कार्गों में निसार को फरवरी 2023 के आखिर तक 14,000 किमी की यात्रा तय कर बेंगलुरु स्थित यूआर राव उपग्रह केंद्र लाया जाएगा. इसे रॉकेट में स्थापित कर अगले साल आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा.
निसार की खासियत
1. निसार पृथ्वी को व्यवस्थित ढंग से नक्शाबद्ध करेगा. दो अलग-अलग रडार जमीन, पानी, जंगल, कृषि, हिम पर नजर रखेंगी.
2. हर 12 दिन में पूरी धरती की तस्वीरें लेगा. इन्हें 5 जीबी प्रति सेकेंड की रफ्तार से धरती पर भेजेगा.
3. इनसे प्राकृतिक आपदाओं खासतौर से चक्रवातों के खतरे समय रहते पहचानने में मदद मिलेगी.
4. समुद्र स्तर कितना और किस रफ्तार से बढ़ रहा है, किस द्वीप व देश को खतरा है, पता चलेगा.
5. हिम आच्छादित क्षेत्रों में आए बदलाव पर भी हर समय नजर रखा जा सकेगा.
हम एक कदम और आगे बढ़े
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि अब हम निसार के लिए कल्पना की गई विशाल वैज्ञानिक क्षमता को पूरा करने के लिए एक कदम और करीब आ गए हैं. निसार मिशन बायोमास, प्राकृतिक खतरों, समुद्र के स्तर में वृद्धि और भूजल के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए पृथ्वी के बदलते पारिस्थितिक तंत्र, गतिशील स्तरों और बर्फ के द्रव्यमान को मापेगा एवं अन्य तरह की तकनीकी सहायता भी प्रदान करेगा. उधर, जेपीएल के निदेशक लॉरी लेशिन ने कहा कि पृथ्वी ग्रह और हमारी बदलती जलवायु को बेहतर ढंग से समझने की हमारी साझा यात्रा में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. इसरो के साथ हमारा सहयोग इस बात का उदाहरण है कि हम किस तरह से एक साथ जटिल चुनौतियों से निपटते हैं.