भारत में अब तक कई लोगों को अलग-अलग क्षेत्रों में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. भारत को केमिस्ट्री के क्षेत्र में पहला नोबेल साल 2009 में मिला, जब रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने "राइबोसोम की संरचना और कार्य के अध्ययन के लिए" वेंकटरमन रामकृष्णन, थॉमस ए. स्टिट्ज़ और एडा ई. योनाथ को संयुक्त रूप से केमिस्ट्री में नोबेल पुरस्कार देने का निर्णय लिया. वेंकटरमन केमिस्ट्री में नोबेल पाने वाले पहले भारतीय बने.
वेंकटरमन रामकृष्णन भारतीय मूल के फिजिस्ट और मॉलेक्यूलर बायोलॉजिस्ट हैं. उन्हें अमेरिकी बायोफिजिसिस्ट और बायोकेमिस्ट थॉमस स्टिट्ज़ और इज़राइली प्रोटीन क्रिस्टलोग्राफर एडा योनाथ के साथ राइबोसोम नामक सेलुलर कणों की परमाणु संरचना और कार्य पर अपने शोध के लिए केमिस्ट्री क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. आपको बता दें कि राइबोसोम RNAऔर प्रोटीन से बने छोटे कण होते हैं जो प्रोटीन सिंथेसिस में विशेषज्ञ होते हैं और सेल्स के भीतर एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम से मुक्त या बंधे पाए जाते हैं.
संयुक्त परिवार में पले-बढ़े
वेंकटरमन का जन्म साल 1952 में तमिलनाडु के चिदम्बरम में हुआ थी. जब वह जन्मे तब उनके पिता सी.वी. रामकृष्णन, प्रसिद्ध एंजाइमोलॉजिस्ट डेविड ग्रीन के साथ मैडिसन, विस्कॉन्सिन में पोस्टडॉक्टरल फ़ेलोशिप पर थे. उन्होंने पिता को पहली बार तब देखा था जब वह लगभग छह महीने के थे. उनकी मां, आर. राजलक्ष्मी, चिदम्बरम में अन्नामलाई विश्वविद्यालय में पढ़ाती थीं, और उस दौरान, उनके दादा-दादी और अन्य सदस्य उनकी देखभाल करते थे. वह लगभग डेढ़ साल के थे जब उनके माता-पिता राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद फ़ेलोशिप पर ओटावा चले गए. वे लगभग एक साल बाद लौटे, और उनकी अनुपस्थिति में उनका पालन-पोषण उनकी दादी और बुआ ने किया.
वेंकटरमन जब तीन साल के थे तब उनके माता-पिता वडोदरा शिफ्ट हो गए और साल 1971 में उन्होंने यहीं से फिजिक्स में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की और 1976 में उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में ओहियो विश्वविद्यालय से फिजिक्स में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की. 1976 से 1978 तक उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो में बायोलॉजी में ग्रेजुएशन के छात्र के रूप में क्लास लीं. हालांकि, वेंकटरमन की पढ़ाई फिजिक्स में करियर बनाने के लिए थी लेकिन बाद में उनकी रुचि मॉलेक्यूलर बायोलॉजी में बढ़ने लगी.
एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी पर किया काम
उन्होंने 1978 से 1982 तक न्यू हेवन, कनेक्टिकट में येल यूनिवर्सिटी से अपनी पोस्टडॉक्टरल रिसर्च पूरी की. येल में उन्होंने अमेरिकी मॉलेक्यूलर बायोफिजिसिस्ट और बायोकेमिस्ट पीटर मूर की प्रयोगशाला में काम किया और बैक्टीरिया एस्चेरिचिया कोली में राइबोसोम के छोटे सबयूनिट की संरचना की जांच करने के लिए न्यूट्रॉन स्कैटरिंग नामक तकनीक का उपयोग करना सीखा (राइबोसोम दो अलग-अलग सबयूनिट से बने होते हैं, एक बड़ा और एक छोटा).
1983 से 1995 तक वेंकटरमन न्यूयॉर्क में ब्रुकहेवन नेशनल लेबोरेटरी में बायोफिजिसिस्ट थे. वहां उन्होंने राइबोसोम और क्रोमैटिन और हिस्टोन नामक प्रोटीन सहित अन्य अणुओं की संरचना को स्पष्ट करने के लिए न्यूट्रॉन स्कैटरिंग के साथ-साथ एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी नामक एक अन्य तकनीक का उपयोग करना जारी रखा. साल 1999 में रामकृष्णन ने इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में मेडिकल रिसर्च काउंसिल लेबोरेटरी ऑफ़ मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में एक पद संभाला.
इसके बाद उन्होंने साइंटिफिक पेपर्स की एक सीरिज पब्लिश की जिसमें उन्होंने थर्मस थर्मोफिलस (एक जीवाणु जो आमतौर पर आनुवंशिकी अनुसंधान में उपयोग किया जाता है) के छोटे राइबोसोमल सबयूनिट की आरएनए संरचना और संगठन पर डेटा प्रस्तुत किया और छोटे सबयूनिट से जुड़ी एंटीबायोटिक दवाओं की संरचनाओं का खुलासा किया. उन्होंने ने बाद में जीन मशीन: द रेस टू डिसिफ़र द सीक्रेट्स ऑफ़ द राइबोसोम (2018) लिखी.
राइबोसोम पर काम के लिए मिला नोबेल
वेंकटरमन को 2004 में यू.एस. नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज का सदस्य और 2008 में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी का एक विदेशी सदस्य चुना गया था. उन्हें 2003 में रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन का फेलो बनाया गया था और बाद में वह रॉयल सोसाइटी के पहले भारतीय मूल के अध्यक्ष (2015-20) बने. रामकृष्णन को 2007 में मेडिसिन के लिए लुइस-जीनटेट पुरस्कार और 2008 में ब्रिटिश बायोकेमिकल सोसाइटी द्वारा हीटली मेडल प्राप्त हुआ.
हालांकि, अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि रही- नोबेल पुरस्कार. सबसे दिलचस्प बात थी कि वेंकटरमन एक फिजिसिस्ट और बायोलॉजिस्ट हैं और उन्हें नोबेल मिला केमिस्ट्री में. उन्होंने सबसे पहले एक राइबोसोमल प्रोटीन संरचना को हल किया, और फिर राइबोसोम में पहले प्रोटीन-आरएनए कॉम्प्लेक्स की संरचना को हल किया. इसके बाद, उन्हें नाइट बैचलर के रूप में 2012 के लिए यूनाइटेड किंगडम की नए साल की सम्मान सूची में शामिल किया गया था. अब वह यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, लियोपोल्डिना और ईएमबीओ के सदस्य और भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के एक विदेशी सदस्य हैं.
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