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अब आप रोक सकते हैं अपना बुढ़ापा, 17 साल के लक्ष्य कर रहे हैं एंटी एजिंग ड्रग्स पर खोज

लक्ष्य शर्मा ने बताया, "मुझे हाल ही में आईआईटी दिल्ली में एक रिसर्च इंटर्न के रूप में गर्मियों में इस दवा के विकास के लिए कुछ महीनों के लिए आमंत्रित किया गया है, जहां मुझे उम्मीद है कि मानव के लिए सेनोलिटिक ड्रग्स के गठन के साथ सेन्सेंट कोशिकाओं को हटाने का एक संभावित समाधान मिल जाएगा."

17 साल के लक्ष्य कर रहे हैं एंटी एजिंग ड्रग्स पर खोज 17 साल के लक्ष्य कर रहे हैं एंटी एजिंग ड्रग्स पर खोज
हाइलाइट्स
  • 17 साल के लक्ष्य शर्मा कर रहे हैं एंटी एजिंग ड्रग्स पर रिसर्च.

  • लैब में अनुभव ने किताब लिखने के लिए प्रेरित किया.

हममें से कोई भी कभी भी बूढ़ा नहीं होना चाहता है. हम सब चाहते हैं कि हम हमेशा जवान रहें. ऐसे में एंटी एजिंग को लेकर कई सारे शोध और आविष्कार चल रहे हैं. इस पर कई तरह के रिसर्च भी किए गए हैं. लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम निकलकर सामने नहीं आया है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी गुड न्यूज के बारे में बताने वाले हैं जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. दरअसल जिस काम को करने में उम्र बीत जाती है उस काम को गुरुग्राम के रहने वाले लक्ष्य शर्मा ने महज 17 साल की उम्र में कर दिखाया है.  

गुरुग्राम के सेक्टर 45 में रहने वाले 17 साल के लक्ष्य एक ऐसी दवा पर रिसर्च कर रहे हैं जो आपको बूढ़ा नहीं होने देगी. ये दवा आपको ज्यादा दिन युवा रखेगी और साथ-साथ बुढ़ापे से जुड़ी बीमारियां भी खत्म हो जाएंगे. इससे आप ज्यादा दिनों तक जीवित रहेंगे वह भी स्वस्थ, चुस्त और दुरुस्त.  लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी कम उम्र का लड़का इतनी बड़ी रिसर्च की तरफ आया कैसे? इस सवाल पर लक्ष्य कहते हैं कि उनकी दादी की मौत कैंसर से हुई थी. उन्होंने सोचा कि मेरे परिवार में किसी और की मौत इस तरह से न हो. उन्होंने कैंसर के बारे स्टडी करने के लिए IIT बॉम्बे के प्रोटियोमिक्स लेबोरेटरी में संपर्क साधा. उन्होंने वहां जाकर कैंसर से संबंधित कई चीजों की स्टडी की. प्रोटियोमिक्स और प्रोटियोजिनोमिक्स पर पेपर पब्लिश हुआ. अब वो IIT दिल्ली के बायोसेपरेशन और बायोप्रोसेसिंग लेबोरेटरी में उम्र बढ़ाने और बीमारियां घटाने की दवा पर काम करने जा रहे हैं.

चूहों पर किए गए टेस्ट में दिखा फायदा 
 
लक्ष्य शर्मा ने बताया कि सेन्सेंट शरीर में ट्यूमर को बनने से रोकने के लिए एक तंत्र के रूप में उत्पन्न होते हैं और हमें कैंसर से बचाते हैं.  एक बार जब इन कोशिकाओं ने कैंसर की रोकथाम के लिए अपना काम पूरा कर लिया है तो वे जरूरी नहीं रह जाते हैं और उम्र बढ़ने के साथ शरीर में जमा हो जाते हैं. एक व्यक्ति जो 70 वर्ष का है, उसके शरीर में 20 साल के व्यक्ति की तुलना में ज्यादा सेन्सेंट कोशिकाओं की संख्या होती है. जैसे ही वे जमा होते हैं, इन कोशिकाओं का शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, विडंबना यह है कि कैंसर और उम्र से संबंधित पुरानी बीमारियां जैसे श्रवण हानि, दृष्टि हानि, ऑस्टियोआर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों का कमजोर होना), स्मृति हानि, मधुमेह, सरकोपेनिया होने लगती हैं. चूहों के मॉडल में इन कोशिकाओं से छुटकारा पाने के परिणामस्वरूप औसत जीवनकाल और स्वास्थ्य अवधि में वृद्धि हुई है.

17 साल के लक्ष्य कर रहे हैं एंटी एजिंग ड्रग्स पर खोज
17 साल के लक्ष्य कर रहे हैं एंटी एजिंग ड्रग्स पर खोज

बहुत कम लोग एंटी एजिंग पर काम कर रहे हैं

लक्ष्य शर्मा कहते हैं वो अपने प्रकाशन "सेलुलर सेनेसेंस एंड सेक्रेटरी फेनोटाइप्स थ्रू द लेंस ऑफ एजिंग, इन विवो रिप्रोग्रामिंग टेक्नोलॉजी" के साथ सेनेसेंस के क्षेत्र में सबसे कम उम्र के प्रकाशक हैं.  उन्होंने बताया, "वर्तमान में दुनिया भर में बहुत कम लोग एंटी एजिंग के विषय पर काम कर रहे हैं क्योंकि यह नया शोध क्षेत्र है. हमें कुछ ऐसे सेनोलिटिक दवाओं पर काम करने की ज़रूरत है जो शरीर से सेन्सेंट कोशिकाओं को हटाने में मदद करें." उन्होंने कहा कि चूहों पर सफल सेनोलिटिक दवाओं का परीक्षण किया गया है और वर्तमान में, संयुक्त राज्य अमेरिका में ​​​​परीक्षण चल रहे हैं जहां वे मनुष्यों पर सेनोलिटिक दवाओं का परीक्षण कर रहे हैं. लक्ष्य शर्मा ने आगे बताया, "मुझे हाल ही में आईआईटी दिल्ली में एक रिसर्च इंटर्न के रूप में गर्मियों में इस दवा के विकास के लिए कुछ महीनों के लिए आमंत्रित किया गया है, जहां मुझे उम्मीद है कि मानव के लिए सेनोलिटिक ड्रग्स के गठन के साथ सेन्सेंट कोशिकाओं को हटाने का एक संभावित समाधान मिल जाएगा."

लैब में अनुभव ने किताब लिखने के लिए प्रेरित किया

लक्ष्य शर्मा कहते हैं, "मैंने IIT बॉम्बे, IIT कानपुर, IIT जम्मू, IIT BHU, IIT रोपड़, IISC बैंगलोर जैसे विभिन्न भारतीय अनुसंधान संस्थानों में प्रोफेसरों के साथ पिछले कुछ वर्षों में व्यक्तिगत रूप से कुछ महीनों के लिए एक अकादमिक शोधकर्ता (रिसर्च इंटर्न) के रूप में काम किया है.  सोल्वे जैसी कंपनियों के साथ, जहां मुझे मेरी शैक्षणिक योग्यता, पिछले अनुभवों, शोध पत्रों और मेरी पुस्तक के आधार पर एक शोधकर्ता के रूप में चुना गया था. आईआईटी बॉम्बे प्रोटिओमिक्स लेबोरेटरी में मेरे अनुभव ने मुझे कैंसर में प्रोटीन विश्लेषण के विषय को समझने में मदद की जिसने मुझे अपनी किताब लिखने के लिए प्रेरित किया." लक्ष्य ने बताया, "मुझे हाल ही में मेरे शोध प्रयासों के लिए रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ), भारत (भारत सरकार का प्रमुख शोध संस्थान) के निदेशक द्वारा मान्यता दी गई है."