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चोट के कारण हुए थे लकवा के शिकार, इंप्लांट की नई तकनीक ने लौटाई चलने-फिरने की शक्ति

तीन लोग जो मोटरसाइकिल दुर्घटनाओं में लकवाग्रस्त हो गए थे, स्विस शोधकर्ताओं द्वारा विकसित एक प्रणाली की बदौलत फिर से चलने में सक्षम हो गए हैं. रीढ़ की हड्डी में पूरी तरह से चोट लगने के कारण तीनों व्यक्तियों ने अपनी ट्रंक और पैर की मोटर गतिविधियों को खो दिया था. इस प्रक्रिया की दौरान रीढ़ की हड्डी पर इंप्लांट किए गए. एक समाचार सम्मेलन में तीन रोगियों में से एक, मिशेल रोकाटी ने कहा, “प्रशिक्षण शुरू करने के एक दिन बाद मैंने देखा कि मेरे पैर फिर से हिल रहे थे; यह एक बहुत ही खूबसूरत भावना थी.”

इस प्रक्रिया की दौरान रीढ़ की हड्डी पर इम्प्लांट लगाए गए. इस प्रक्रिया की दौरान रीढ़ की हड्डी पर इम्प्लांट लगाए गए.
हाइलाइट्स
  • चार घंटे तक चला ऑपरेशन 

  • सबसे पहले 2018 में मिली सफलता 

  • 2023 में अधिक रोगियों के साथ शुरू करेगी परीक्षण 

तकनीक के इस युग में कुछ भी नामुमकिन नहीं है. आज के युग में लोगों के लिए मेडिकल क्षेत्र में तकनीक का उपयोग उम्मीद की एक नई किरण बन कर सामने आया है. हाल में ही इसका एक उदाहरण सामने आया है. तीन लोग जो मोटरसाइकिल दुर्घटनाओं में लकवाग्रस्त हो गए थे, स्विस शोधकर्ताओं द्वारा विकसित एक प्रणाली की बदौलत फिर से चलने में सक्षम हो गए हैं. रीढ़ की हड्डी में पूरी तरह से चोट लगने के कारण तीनों व्यक्तियों ने अपनी ट्रंक और पैर की मोटर गतिविधियों को खो दिया था. इस प्रक्रिया की दौरान रीढ़ की हड्डी पर इंप्लांट किए गए. एक समाचार सम्मेलन में तीन रोगियों में से एक, मिशेल रोकाटी ने कहा, “प्रशिक्षण शुरू करने के एक दिन बाद मैंने देखा कि मेरे पैर फिर से हिल रहे थे; यह एक बहुत ही खूबसूरत भावना थी.”

चार घंटे तक चला ऑपरेशन 

चार घंटे के ऑपरेशन में, डॉक्टरों ने रीढ़ की हड्डी पर इलेक्ट्रोड लगाएं जो कि न्यूरो सिग्नल की नकल करते हुए सिंक्रोनाइज़्ड इलेक्ट्रिकल सिग्नल भेजते हैं. सामान्य रूप से इस ये सिग्नल रीढ़ की हड्डी के माध्यम से मस्तिष्क के निर्देशों को निचले अंगों तक पहुंचाते हैं. ये इंप्लांट एक आर्टिफिशियल सॉफ्टवेयर के साथ एक कंप्यूटर से जुड़े होते हैं जो रोगी को खड़े होने, चलने और यहां तक ​​कि एक विशेष साइकिल की सवारी और तैराकी जैसी जटिल गतिविधियों को करने  के लिए आवश्यक आवेगों को दोबारा उत्पन्न करता है. नेचर मेडिसिन में सोमवार को प्रकाशित एक पेपर में इस उपलब्धि का वर्णन किया गया है.

सबसे पहले 2018 में मिली सफलता 

कोर्टाइन की टीम वर्षों से लकवाग्रस्त लोगों को फिर से चलने-फिरने लायक बनाने का प्रयास कर रही है. 2014 में शोधकर्ताओं ने कटे हुए रीढ़ की हड्डी वाले चूहों पर अपने सिस्टम का परीक्षण किया. उसके दो साल बाद बंदरों पर भी इसका परीक्षण किया गया. 2018 के अंत में, स्विस टीम ने एक युवा डेविड मज़ी, जो 20 साल की उम्र में आंशिक रीढ़ की हड्डी की चोट के बाद व्हीलचेयर में था, पर इसका इस्तेमाल किया. इस प्रक्रिया के बाद, मजी खड़े हो पा रहे थे और वॉकर के साथ कुछ कदम तक चल भी पा रहे थे.

2023 में अधिक रोगियों के साथ शुरू करेगी परीक्षण 

स्विस टीम ने इस प्रायोगिक प्रणाली से नौ लोगों का इलाज किया है. कोर्टाइन ने अपने सहयोगी ब्लॉच के साथ भविष्य में इस तकनीक का व्यवसायीकरण करने के लिए एक कंपनी भी स्थापित की है. कोर्टाइन ने कहा कि ऑनवर्ड मेडिकल के माध्यम से उनकी टीम आंशिक रूप से, 2023 में अधिक रोगियों के साथ नैदानिक ​​परीक्षण शुरू करने की उम्मीद कर रही है. उन्होंने बताया कि परीक्षणों में अभी कुछ और समय लगेगा. न्यूरोसाइंटिस्ट ने कहा, "हम जितना हो सके, उतनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं."