17वीं सदी के लोगों के पास अपने दांतों को ठीक रखने का एक सीक्रेट तरीका था. वे अपने दांतों को गिरने से बचाने के लिए इस बेहतरीन तरीके को अपनाते थे. और वह था सोने का तार. दरअसल, वैज्ञानिकों ने 17वीं सदी के एक फ्रांसीसी रईस की मृत्यु के 400 साल बाद भी उसके दांतों को वैसा ही पाया है. वह अपने दांतों को गिरने से बचाने के लिए सोने के तार का उपयोग कर रही थी.
400 साल पहला ताबूत
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये ऐनी डी'एलेग्रे थीं जिनकी मृत्यु 1619 में हुई थी, 1988 में उत्तर-पश्चिमी फ़्रांस के चैटो डी लावल में एक पुरातात्विक खुदाई के दौरान इनका शव खोजा गया था. सीसे के ताबूत में लेपित, उनका कंकाल - और दांत दोनों ही अच्छी तरह से संरक्षित थे. उस समय, पुरातत्वविदों ने देखा कि उनके दांत में डेंटल प्रोस्थेटिक था. हालांकि, इसके बारे में ज्यादा जानने के लिए पुरातत्वविदों के पास एडवांस स्कैनिंग टूल्स नहीं थे.
पीरियडोंटल बीमारी से पीड़ित थी डी'एलेग्रे
जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस की रिपोर्ट के अनुसार, पैंतीस साल बाद, पुरातत्वविदों और दंत चिकित्सकों की एक टीम ने पहचान की है कि डी'एलेग्रे पीरियडोंटल बीमारी (periodontal disease) से पीड़ित थी, जिससे उसके दांत ढीले हो रहे थे. एक "कोन बीम" स्कैन, जो 3-डी इमेज बनाने के लिए एक्स-रे का उपयोग करता है, से पता चला कि उसके कई दांतों को एक साथ रखने और कसने के लिए सोने के तार का उपयोग किया गया था. उनके पास पास हाथी के हाथीदांत से बना एक आर्टिफिशियल दांत भी था.
ये तरीका ठीक नहीं
लेकिन फ्रेंच नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्रिवेंटिव आर्कियोलॉजिकल रिसर्च के पुरातत्वविद् और अध्ययन के प्रमुख लेखक रोजेन कोलेटर इस तरीके को ठीक नहीं मानते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल में सोने के तारों को बार-बार कसने की जरूरत पड़ी होगी, जिससे पड़ोसी दांत और अस्थिर हो जाएंगे. डी'एलेग्रे इस ट्रीटमेंट को करवाते हुए दर्द से गुजरी होंगी. उस समय अमीर महिलाओं पर भारी दबाव होता था कि समाज के बनाए हुए नियमों के चलते वे सुंदर दिखें.
साइंस अलर्ट के मुताबिक, कोलेटर ने एएफपी को बताया, डी'एलेग्रे के एम्ब्रोइस पारे, जो कई फ्रांसीसी राजाओं के डॉक्टर थे और उन्होंने इसी तरह के डेंटल प्रोस्थेटिक्स डिजाइन किए थे. उनका दावा था कि अगर किसी मरीज के दांत नहीं हैं, तो उनकी आवाज खराब हो जाती थी. गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अनुमान है कि गंभीर पीरियडोंटल बीमारियां दुनिया के लगभग पांचवें वयस्क को प्रभावित करती हैं.