
मंगल ग्रह यानी मार्स एक लाल रंग का गृह है. इसको रेड प्लेनेट भी कहा जाता है. दरअसल इसका रंग लाल इसलिए है क्योंकि इसकी सतह पर मौजूद पत्थर आमतौर पर लाल रंग के होते हैं. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मंगल ग्रह पर एक पर्सीवरेंस रोवर (Perseverance Rover) भेजा है, जिसकी मदद से ये पता लगा है कि लाल ग्रह पर एक बैंगनी पत्थर मौजूद है. नासा का कहना है कि पत्थरों पर एक बैंगनी रंग की परत है, जिस कारण ये पत्थर बैंगनी नजर आ रहे हैं. हैरान कर देने वाली बात ये है कि बैंगनी रंग के पत्थर जेजेरो क्रेटर में हर आकार में हर जगह मौजूद हैं.
वैज्ञानिकों के पास नहीं है इसकी जानकारी
हालांकि नासा के वैज्ञानिक अभी तक इस बात का पता नहीं लगा पाए हैं कि इन रहस्यमयी पत्थरों का निर्माण आखिर हुआ कैसे, या फिर अगर ये पत्थरों पर ये कोई परत है तो इसका कारण क्या है. पर्सीवरेंस रोवर से डेटा मिलने के बाद जियोकेमिस्ट एन ओलिला का कहना है कि रहस्यमयी रंगों को लेकर फिलहाल उनके पास कोई जवाब नहीं है. ये जानकारी उन्होंने जियोफिजिकल यूनियन (AGU) में नेशनल जियोग्राफिक (National Geographic) के साथ शेयर की थी.
रासायनिक परीक्षण के नतीजों से साफ होंगी चीजें
ओलिला ने बताया कि यहां मौजूद कुछ पत्थरों पर हल्की परत है तो कुछ पर मोटी और चिकनी, ऐसा लगता है मानो किसी ने इनपर पेंट कर दिया हो. हालांकि अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि ऐसा क्यों हो रहा है. फिलहाल इस पर रासायनिक परीक्षण चल रहा है और परीक्षण के बाद ही ये बात साफ हो पाएगी की ऐसा आखिर क्यों हो रहा है. नतीजों के बाद ही ये मालूम होगा कि ये मंगल गृह के प्राचीन इतिहास का नतीजा है या ये कोई नया डेवेलपमेंट है.
अजूबा नहीं है ये बैंगनी पत्थर
वैज्ञानिकों का ये भी कहना है कि इन बैंगनी पत्थरों का मिलना कोई अजूबा नहीं है. इससे पहले भी नासा के क्यूरियोसिटी रोवर (Curiosity Rover) ने माउंट शार्प के पास हरे रंग के पत्थर खोजे थे. नासा ने ये भी देखा है कि मंगल ग्रह पर चारों तरफ कई अलग-अलग रंग के पत्थर मौजूद हैं. इससे पहले भी नासा के क्यूरियोसिटी रोवर के केमिकल एंड मिनरोलॉजी यंत्र ने बैंगनी रंग के छोटे-छोटे कंकड़ खोजे थे. पहले वैज्ञानिकों को लगा ये एक हेमेटाइट है, जो कि एक प्रकार का लौह अयस्क क्रिस्टल होता है.
जेजेरो क्रेटर के पत्थरों पर जांच करना है मुश्किल
एल ओलिला का ये भी कहना है कि क्यूरोसिटी रोवर जहां पर पत्थरों की खोजबीन कर रहा था वहां पर हवा और उसके साथ बहने वाली रेत के कारण वहाँ के पत्थरों की जांच करना आसान था. उसकी वजह ये है कि वहां के पत्थरों पर ज्यादा धूल जमा नहीं होती है. वहीं जेजेरो क्रेटर के पत्थरों पर जांच करना थोड़ा मुश्किल होता है. हालांकि बैंगनी रंग वाले पत्थर भी कम धूल वाले इलाकों से ही मिले हैं तो इनकी जांच में इतनी दिक्कत नहीं आएगी. फिलहाल इसकी स्टडी पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के ब्रैडली गार्सिन्की की टीम कर रही है.