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Short Naps and Dementia: नियमित नींद की झपकी भी कर सकती है जादू, डिमेंशिया के खतरे को करती है कम 

Short Naps and Dementia: शोध से पता चलता है कि दिन में झपकी लेने से दिमाग में कई सुधार होते हैं. ये झपकी न लेने वालों की तुलना में अलग है. अध्ययनों से पता चलता है कि 30 मिनट से कम की झपकी सबसे अच्छी होती है, इससे रात की नींद प्रभावित होने की संभावना कम होती है.

Short Naps and Dementia Short Naps and Dementia
हाइलाइट्स
  • 3 लाख से ज्यादा लोगों पर की गई स्टडी 

  • 30 मिनट से कम वाली नींद होती है सबसे अच्छी 

छोटी झपकियां भी कई बार काफी फायदेमंद हो सकती हैं. एक नई स्टडी के मुताबिक छोटी झपकी आपके दिमाग को युवा और बीमारियों से दूर रखती है. अमेरिका, ब्रिटेन और उरुग्वे के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक स्टडी पब्लिश की है जिसमें कहा गया है कि शॉर्ट नैप डिमेंशिया और कई दूसरी बीमारियों से दूर रखने में मदद करता है. साथ ही ये भी पता चला कि जो लोग ज्यादा झपकी लेते हैं उनका दिमाग उम्र के हिसाब से काफी युवा था.  

3 लाख से ज्यादा लोगों पर की गई स्टडी 

इस स्टडी के लिए 40 से 69 साल की उम्र के 378,932 लोगों के डेटा का विश्लेषण किया गया. इसमें यह देखा गया कि जो लोग नियमित रूप से शॉर्ट नैप लेते हैं उनकी तुलना में बाकी लोग कितने स्वस्थ रहते हैं. उन्होंने पाया कि नैपर्स का दिमाग उनसे 2.6 से 6.5 साल छोटे लोगों के बराबर स्वस्थ और एक्टिव था. 

साइंस अलर्ट की रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) की न्यूरोसाइंटिस्ट वेलेंटीना पाज कहती हैं, "हमारा अध्ययन झपकी और ब्रेन की कुल मात्रा के बीच एक लिंक की ओर इशारा करती है.”

30 मिनट से कम वाली नींद होती है सबसे अच्छी 

65 साल से ज्यादा उम्र के वयस्कों पर किए गए पिछले शोध से पता चलता है कि दिन में झपकी लेने से दिमाग में कई सुधार होते हैं. ये झपकी न लेने वालों की तुलना में अलग है. हालांकि, नई स्टडी में झपकी की लंबाई नोट नहीं की गई है. लेकिन पहले के अध्ययनों से पता चलता है कि 30 मिनट से कम की झपकी सबसे अच्छी होती है, इससे रात की नींद प्रभावित होने की संभावना कम होती है. 

डिमेंशिया के खतरे को कम किया जा सकता है 

उम्र बढ़ने के दौरान रिस्पांस टाइम और मेमोरी में सबसे ज्यादा गिरावट आती है और बुजुर्गों में ऐसा होना आम है. टीम ने अपने पेपर में लिखा, "नैप  और मस्तिष्क की मात्रा के बीच संबंध अच्छी तरह से पता नहीं चलता है. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि इससे डिमेंशिया जैसी बीमारियों 
के जोखिम को कम किया जा सकता है.”